इस वर्ष केदारनाथ की यात्रा 4 मई से शुरू हुई. केदारनाथ समेत चार धामों की यात्रा न केवल धार्मिक यात्रा है बल्कि इन धामों के इर्दगिर्द के क्षेत्रों के वाशिंदों के लिए रोजगार का आधार भी है.
केदारनाथ यात्रा मार्ग पर भी न केवल बड़े होटल, रिजॉर्ट आदि से बल्कि छोटी-छोटी दुकानों के जरिये भी स्थानीय लोग जीविकोपार्जन करते हैं.
ऐसी ही छोटी-छोटी अस्थायी दुकानों के जरिये रोजगार करने वालों में गौरीकुंड गेट के पास वाले दुकानदार हैं. इनमें वृद्ध महिला से लेकर नौजवान तक शामिल हैं, जो यात्राकाल में छोटी- छोटी दुकानें चला कर अपना वर्षभर का गुज़ारा चलाते हैं. इनमें से अधिकांश अनुसूचित जाति के हैं.
लेकिन इस बार लगता है कि रुद्रप्रयाग जिले के प्रशासन ने ठान रखा है कि इन गरीबों व अनुसूचित जाति के लोगों को रोजगार नहीं करने देना है और इनकी दुकानें हर हाल में उजाड़ देनी है. इसलिए जिस दिन से यात्रा शुरू हुई है, इन गरीबों की दुकानें उखाड़ने में रुद्रप्रयाग जिले के प्रशासन ने पूरा जोर लगाया हुआ है. यात्रा की लगभग शुरुआत में ही स्थानीय तहसीलदार इनके दुकानें उजाड़ने पहुंचे और उनका वीडियो सोशल मीडिया पर भी काफी वायरल हुआ.
लेकिन उसके बाद भी प्रशासन अपनी कोशिशों में लगा हुआ है.
ऐसा नहीं है कि ये लोग बिना अनुमति के दुकानें लगा रहे हों. इसके लिए इन्होंने बकायदा रुद्रप्रयाग जिला प्रशासन से अनुमति ली है. यह अनुमति भी निशुल्क नहीं है. यात्रा शुरू होने से महीना- दो महीना पहले रुद्रप्रयाग के मुख्य विकास अधिकारी के नाम छह हजार रुपए का बैंक चालान लगाया गया.
उसके बाद ही उपजिलाधिकारी उखीमठ ने इनको दुकान लगाने के अनुमति पत्र निर्गत किये.
उसके बावजूद अब स्थानीय प्रशासन इन्हें उजाड़ने पर उतारू है. बीते दिनों इन दुकानदारों के समर्थन में पहुंचे केदारनाथ के पूर्व विधायक मनोज रावत ने तो फेसबुक लाइव में आरोप लगाया कि प्रशासन को जमा कराए गए शुल्क के अतिरिक्त दो हजार रुपए भी भाजपा नेताओं द्वारा बनाई गयी समिति द्वारा लिए गए हैं.
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इनमें से एक बुजुर्ग महिला हैं, जो अपने पति की मृत्यु के बाद जीवनयापन करने के लिए यह दुकान चलाती हैं. उनके प्रार्थनापत्र पर तो केदारनाथ की भाजपा विधायक श्रीमती आशा नौटियाल की अनुशंसा है कि उक्त महिला को उसी स्थल पर दुकान आवंटित की जाए.
इतना सब होने के बावजूद प्रशासन हर हाल में इनको उजाड़ना चाहता है. उजाड़े जाने की मार से जूझ रहे लोगों में एक स्वयंभू भैरव सेना वाले भी हैं, जो बाकी जगह लोगों को उजाड़ने के काम को गर्व के साथ अपना कर्तव्य समझते हैं. विडंबना देखिये, जिस हिंदुत्ववादी राजनीति को खाद- पानी देने के लिए वो इस उन्माद- उत्पात के खेल में भागीदार बनते हैं, आज उसी राजनीतिक विचार वाली सत्ता, उनके रोजगार के ठिकाने को तहस-नहस करने पर उतारू है.
स्थानीय प्रशासन का यह तर्क बेहद खोखला है कि भीड़ की अधिकता से जाम की स्थिति ना बने इसलिए इन लोगों को हटाया जा रहा है. जिस स्थान पर इन लोगों की दुकानें हैं, वह इस यात्रा मार्ग पर सर्वाधिक चौड़े स्थानों में से एक है. अनुमति देने के बाद जब लोग रोजगार चलने की आस में कर्ज लेकर भी सामान ले आये हैं, उन्हें उजाड़ने सरासर अन्याय है. अपना छोटा- छोटा रोजगार करके जीविकोपार्जन कर रहे गरीबों की उजाड़ने की भाजपा की पुष्कर सिंह धामी सरकार की कोशिश निंदनीय है. एक तरफ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कपाट खुलने के दिन भंडारे में खाना बांटने का फोटो सेशन करवाएंगे और दूसरी तरफ उनके अफसर उसी केदार घाटी के गरीबों का रोजगार और मुंह का निवाला छीनने में पूरा जोर लगा देंगे, यह दोहरा रवैया बिल्कुल स्वीकार्य नहीं. इन गरीबों का रोजगार उजाड़ने की कोशिशों पर तत्काल रोक लगाने की मांग हम मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से करते हैं. गरीबों को उजाड़ने की कोशिश हर हाल में बंद होनी चाहिए.
-इन्द्रेश मैखुरी
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