भाजपा राज नए-नए जुमलों और शिगूफ़ों का राज है. जुमला
सीरीज के शुरुआती जुमलों में था- सांसदों द्वारा गांव गोद लेना ! इस जुमले का क्या
हुआ, जुमला
सृजक ही जाने ! लोग तो सोशल मीडिया में पूछते-पूछते थक गए कि जो
गांव सांसदों ने गोद लिए थे, वे चलने लगे हैं या अभी भी गोद में
ही हैं ! पर जुमला राज की विशेषता यह भी है कि वे न जवाब देते हैं, ना जवाबदेही लेते हैं !
जुमला राज के डबल इंजन की एक प्रमुख चौकी है- उत्तराखंड.
यहां भी समय-समय पर नए जुमले उछाले जाते हैं. और कुछ न हुआ तो मुख्यमंत्री सबसे हैंडसम
है, गोया मुख्यमंत्री ना हुआ किसी ब्यूटी कॉन्टेस्ट का प्रतियोगी ठहरा ! कुछ न
हो रहा हो तो इसी बात का जश्न माना लिया कि एक अखबार द्वारा घोषित 100 सबसे शक्तिशाली
भारतीयों की सूची में हमारे मुख्यमंत्री 32 वें नंबर पर हैं. पहले, दूसरे, तीसरे नंबर पर आने का जश्न तो सुना था, लेकिन 32 वें नंबर पर आने का जश्न इसी जुमला राज में सुना ! और 32 वें नंबर
पर भी तब आए जब अखबारों का पेट गले-गले तक विज्ञापनों से भर दिया. हालत यह है कि जिस
दिन के अखबार में मुख्यमंत्री के 32 वें नंबर पर आने की घोषणा हुई और जश्न मनाया गया, उस अखबार में भी पहले पन्ने पर मुख्यमंत्री का विज्ञापन था !
उत्तराखंड के
जुमला राज में नया जुमला उछाला गया है कि थाना गोद लिया जाएगा ! थाना गोद लिया जाएगा
और सेवारत पुलिस अफसरों द्वारा लिया जाएगा ! वैसे सरकार यदि पूँजीपतियों, धन्नासेठों, शराब, रेता- बजरी
वालों की गोद में भी थाने को दे दे तो कोई क्या कर लेगा !
हकीकत जो भी हो पर यह सुनना में तो बड़ा विचित्र लगता है
कि थाना किसी ने गोद ले लिया या किसी को गोद दे दिया गया ! आम तौर पर गोद तो असहाय, अनाथों को लेने का चलन समाज में रहा है. थाने तो किसी भी इलाके के शक्तिपुंज
जैसे होते हैं, जहां गलत-सही कानून से ज्यादा थाने में कुर्सी
पर बैठे अफसर की मर्जी से तय होता है !
जिन थानों पर कानून-व्यवस्था कायम करने और पीड़ितों, असहायों को न्याय दिलाने का दारोमदार है, वे ही इतने
असहाय हैं कि उन्हें अलग से गोद लेने की जरूरत पड़ रही है, तो
यह जो मजबूत, सशक्त देश बीते ग्यारह वर्षों से बन रहा था, वो कहां बन रहा था ?
थानों को गोद लेने की रस्म बाकायदा बद्रीनाथ के थाने से
शुरू कर दी गयी है. कुछ अरसा पहले बद्रीनाथ से लगते हुए माणा गांव को प्रधानमंत्री
ने देश के आखिरी गांव से बदल कर पहला गांव घोषित कर दिया था ! अब उसी माणा से लगा हुआ
बद्रीनाथ थाना, गोद लिए जाने वाला पहला थाना बन गया है- जय हो जुमला
सरकार की !
चमोली पुलिस के फेसबुक पेज पर बहुत हर्षोल्लास से ऐलान
किया गया कि बद्रीनाथ थाना, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी तृप्ति भट्ट द्वारा
गोद ले लिया गया है ! उक्त घोषणा यह भी कहती है कि मैडम तृप्ति भट्ट द्वारा थाना गोद
लिया जाना मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के विजन का नतीजा है ! क्या विजन पाया है मुख्यमंत्री
जी ने कि अच्छे-भले, चलते-फिरते थाने को उसी विभाग के अफसरों
की गोद में सौंप दिया जाए ! अब अफसर जाने कि उनकी गोद में थमाए थाने का वे क्या कर
सकते हैं, क्या-क्या कर सकते हैं !
चमोली पुलिस की फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि थाना गोद
देने-लेने के इस कार्यक्रम का उद्देश्य- “बुनियादी ढांचे में सुधार और पुलिस कर्मियों
के कल्याण पर ध्यान केन्द्रित कर.......” किसी जिले में पुलिस के बुनियादी ढांचे से
लेकर पुलिस कर्मियों की बेहतरी के बारे में सोचना तो उस जिले के पुलिस अधीक्षक का ही
काम है. एक जिले में थाने तो पुलिस अधीक्षक की कमान में रहेंगे, लेकिन उनमें से कुछ, अन्य पुलिस अफसर की “गोद” में रहेंगे, यह कैसा गज़ब विजन और अजब व्यवस्था है, मुख्यमंत्री जी
?
चूंकि अभी बद्रीनाथ थाना ही गोद दिया गया है तो उसी पर सवाल केन्द्रित रखते हैं कि इस थाने में बुनियादी ढांचे और पुलिस कर्मियों के कल्याण पर जो धनराशि व्यय होगी, वो तो पहले भी सरकारी खजाने से आती होगी ! अब मैडम तृप्ति भट्ट द्वारा इसे गोद लिए जाने के बाद क्या इस धनराशि का इंतजाम उनके जिम्मे होगा ? अगर हाँ तो वो ये पैसा कहां से लेकर आएंगी ? अगर पैसा पूर्व की भांति सरकारी खजाने से आएगा तो फिर गोद लेना कार्यक्रम क्या उन अफसरों को बहलाने के लिए है, जिन्हें सरकार, पता नहीं किन अज्ञात कारणों से मुख्य जिम्मेदारियों में नहीं रख रही है ! अधिकांश बड़े जिले चलाएँगे पीपीएस से प्रमोट हुए अफसर और डाइरैक्ट आईपीएसों को जिलों में से एक-आध थाने गोद में खिलाने को दे दिये जाएंगे ! वाह भय्या धाकड़-हैंडसम क्या विजन पाया है आपने !
फरवरी में उत्तराखंड की विधानसभा में पेश किए गए वर्ष 2025-26 के बजट में पुलिस और जेल के लिए 3043.70 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में 08 जनवरी 2025 को छपी कल्याण दास की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय की ओर से राज्य सरकार को पुलिस आधुनिकीकरण के लिए 393 करोड़ रुपए का प्रस्ताव सौंपा गया.
इस रिपोर्ट के अनुसार उक्त प्रस्ताव को स्वीकार
करते हुए राज्य सरकार द्वारा पहले चरण में 51 करोड़ रुपये जारी करने की जानकारी भी उक्त
रिपोर्ट में दी गयी थी. जब इतने भारी-भरकम बजट के प्रावधान हैं तो उसके बाद ये थानों
को अफसरों की गोद में बैठाने पर क्यूं आमादा हो सरकार ? इतने भारी भरकम बजट के बावजूद थाना गोद देने-लेने के नाम पर किसी भी जिले
में दो शक्ति केंद्र बनेंगे, जिससे नयी जटिलता और अहम का टकराव
पैदा होगा ! ऐसा न हो कि इस जटिलता के चलते गोद वाले चलना-फिरना ही भूल जाएं !
-इन्द्रेश मैखुरी
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