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एक ही मामले में दो एफआईआर क्यों ?

 

सीओ - डॉग हैंडलर प्रकरण में ब्लैकमेलिंग के अलावा जनजाति के अपमान का भी मामला बनाया गया है.


लेकिन इसमें रोचक यह है कि एक ही बात के लिए दो एफआईआर दर्ज की गयी है. एक तो सीओ मैडम की ओर से जो ब्लैकमेलिंग करके 6 लाख रुपए वसूलने की एफआईआर हुई है, उसमें सेमवाल मैडम ने जनजाति का होने के चलते जातिसूचक गालियां देने का आरोप लगाया है.


लेकिन इसके अलावा जनजाति का अपमान करने की एक एफआईआर और दर्ज हुई है, जिसमें जनजाति के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया है.

यह एफआईआर एक निजी व्हाट्स ऐप चैट पर आधारित है. यह सही बात है कि व्हाट्स ऐप चैट में बहुत अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया गया है जो कि निंदनीय है. लेकिन तथ्य यह भी है कि यह दो लोगों के बीच का निजी व्हाट्स ऐप चैट है. कहा जा रहा है कि यह चैट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था. तो सवाल है कि निजी चैट को वायरल किसने किया ? आरोपी डॉग हैंडलर महिला ने तो खुद अपना चैट वायरल नहीं किया होगा ? तो फिर वायरल किसने किया ? क्या उस तथाकथित धर्मरक्षक ने जो इस मामले में बीच में था और जिसने लगता है कि मामले में डबल क्रास किया ? आखिर जब वायरल करने से पहले उक्त स्क्रीनशॉट में डीपी (डिस्प्ले पिक्चर) छुपाई गयी तो नंबर क्यों छुपाया नहीं गया, उसे जानबूझ कर सार्वजनिक क्यों रहने दिया गया ? प्रश्न यह भी है कि क्या इस मामले में एफआईआर कर्ता का दूसरे एफआईआर कर्ता से किसी तरह का कनेक्शन है ? उसे यह निजी चैट कहां से मिला, किसने दी ? एफआईआर दर्ज कराने वाले का हवाई किस्म का पता, बिना मोबाइल नंबर के क्यों है, एफआईआर में ? 


एक मामले में एफआईआर 3 मई को हुई और दूसरे मामले में 4 मई को हुई है.सवाल यह भी है कि एक दिन के अंतराल पर एक तरह के आरोपों में एक ही महिला पर दो एफआईआर होना संयोग है या प्रयोग ?  


जनजाति के लोगों द्वारा बीते दिनों भी जनजाति के अपमान वाले मामले में प्रदर्शन किया गया. पुलिस पर भी सवाल है कि एफआईआर में जब आरोपी महिला का नाम साफ-साफ लिखा है और पुलिस उक्त महिला को एक एफआईआर में गिरफ्तार कर चुकी है तो वो जनजाति के प्रदर्शनकारी लोगों को यह क्यों नहीं बता रही है कि आरोपी महिला गिरफ्तार की जा चुकी है ? इसके पीछे भी कोई एजेंडा है क्या ? 


और यह सवाल तो अपनी जगह खड़ा ही है कि सीओ साहब एक मामूली डॉग हैंडलर से इतना ब्लैकमेल क्यों हुए कि उन्होंने छह लाख रुपए तक दे डाले ? 


क्या पुलिस की हायरार्की (hierarchy - पदानुक्रम) में यह संभव है कि डीएसपी जैसे अफसर पद पर आसीन व्यक्ति का डॉग हैंडलर जैसे सामान्य पद पर कार्यरत महिला से ब्लैकमेल होने तक का नाता स्थापित हो जाए ? 


यह भी सवाल है कि यह प्रकरण इतने तक ही सीमित है या यह जाल काफी बड़ा है, जिसके लपेटे में कई और भी हैं ? और क्या आरोपी महिला मुकदमे का सामना करने के लिए सुरक्षित रह पायेगी ? 


सब इंस्पेक्टर महिला द्वारा कांस्टेबल पर रेप के आरोप लगाने और डीएसपी द्वारा डॉग हैंडलर पर ब्लैकमेलिंग के आरोप लगाने के बाद यह सवाल भी बार- बार पूछना ही पड़ेगा कि ये दो मामले अपवाद हैं या ऐसी धींगामुश्ती आम चलन में है, उत्तराखंड पुलिस में ? 







-इन्द्रेश मैखुरी


( नोट : इस प्रकरण में छपी हुई पुरानी खबर संदर्भ के लिए पुनः पोस्ट की गयी है )

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