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लिखना-बोलना- भिन्न मत रखना संवैधानिक अधिकार, उसका अतिक्रमण न हो







प्रति,
    श्रीमान पुलिस महानिदेशक महोदय,
     उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय, देहरादून.

महोदय,
      आपको नयी पुस्तक “साइबर एंकाउंटर” के प्रकाशन पर बधाई.
यह विडंबना है कि एक तरफ आपकी पुस्तक का विमोचन हो रहा था और दूसरी तरफ एक पंक्ति फेसबुक पर लिखने के लिए आपकी पुलिस हमारे साथ डॉ.कैलाश पांडेय को थाने तलब कर रही थी. आपकी पुस्तक यदि साइबर अपराध से लोगों को आगाह करती है तो डॉ.कैलाश पांडेय की लिखी पंक्ति भी जनता को वाजिब अधिकार मिले, इसकी ही वकालत करती है. 






 
महोदय, कॉमरेड डॉ.कैलाश पांडेय, भाकपा(माले) के केंद्रीय कमेटी के सदस्य हैं, पार्टी के नैनीताल जिले के सचिव हैं. ढाई-तीन दशक से सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं. तीन विषयों में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. जितना ज्ञात हो सका, उसके अनुसार, उनकी लिखी जिस पंक्ति के लिए डॉ.कैलाश पांडेय को नैनीताल जिले के मुखानी थाने तलब किया गया है, वो पंक्ति है- “जोशीमठ में सरकार के प्रयास नाकाफी” ! 
इतना लिखना क्या ऐसा जघन्य अपराध है, जिसके लिए व्यक्ति को निरंतर विभिन्न थानों की पुलिस तलब करेगी ? यह प्रश्न इसलिए क्यूंकि इससे पहले, इसी मसले पर 17 अप्रैल 2023 को हल्द्वानी कोतवाली से फोन करके कॉमरेड कैलाश पांडेय को तलब किया था. उस समय भी आपको पत्र भेज कर मैंने ऐसी निरुद्देश्य जांच को बंद करने का निवेदन किया था. मेरे पत्र पर आप गौर कर पाये या नहीं, मैं नहीं जानता. लेकिन पुनः एक अन्य थाने से कॉमरेड कैलाश पांडेय को तलब किया जाना दर्शाता है कि इस तरह के निरुद्देश्य कामों पर पुलिस काफी वक्त निवेश कर रही है. क्यूं, यह या तो राज्य की सरकार जानती होगी या फिर आप ही समझ सकते हैं !

 
महोदय, लिखना-बोलना- भिन्न मत रखना, यह अधिकार भारत का संविधान देश के हर नागरिक को देता है. संविधान का अनुच्छेद 19 जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है, उसी में इस बात का उल्लेख भी है कि इस स्वतंत्रता पर पाबंदी युक्तिसंगत (reasonable) होनी चाहिए और वह पाबंदी, उसी दशा में हो सकती है, जबकि अभिव्यक्ति के जरिये सार्वजनिक व्यवस्था(public order), देश की सुरक्षा, विदेशी राज्य के साथ देश के संबंध और देश की संप्रभुता पर प्रतिकूल असर पड़ता हो.








 
मैं तो नहीं समझता कि “जोशीमठ में सरकार के प्रयास नाकाफी”-कॉमरेड कैलाश पांडेय के यह लिखने से सार्वजनिक व्यवस्था, देश की सुरक्षा, विदेशी राज्य के साथ देश के संबंध और देश की संप्रभुता पर कोई प्रतिकूल असर पड़ता हो. इसलिए उनके विरुद्ध यह जांच और जांच के नाम पर थाने तलब करना बंद होना चाहिए.
महोदय, यह भी विचारणीय है कि क्या सोशल मीडिया में सरकार की तार्किक आलोचना करने वाली हर पोस्ट पर ऐसी जांच बैठाई जाएगी ? क्या पुलिस के लिए मुमकिन है कि वह इस तरह की जांच करे ? ऐसे में तो सिर्फ ऐसी ही पोस्टों की जांच के लिए एक और पुलिस बल खड़ा करना होगा.  

 
आप बेशक किताब लिखिए, उससे यह बोध होता है कि पुलिस सिर्फ लाठी ही नहीं कलम भी चलाती है. लेकिन जिस पुलिस का मुखिया कलम चलाने वाला हो, वह पुलिस एक सामान्य सी पंक्ति लिखने के लिए किसी को भी थाने तलब कर ले, यह समझ से बाहर है. अतः निवेदन है कि कॉमरेड कैलाश पांडेय को थाने तलब किए जाने और लिखने भर के लिए उनकी विरुद्ध की जा रही इस जांच को तत्काल बंद किए जाने का आदेश अपने अधीनस्थों को जारी करने की कृपा करें.


सधन्यवाद,
सहयोगाकांक्षी,
इन्द्रेश मैखुरी,
राज्य सचिव,भाकपा(माले)
उत्तराखंड.



( यह पत्र व्हाट्स एप और ई मेल से डी जी पी महोदय को भेज दिया गया है, जवाब में उन्होंने लिखा है कि वो एस एस पी, नैनीताल को इस मामले में निर्देशित कर देंगे)

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1 Comments

  1. जब हमें अभिव्यक्ति की आज़ादी है तो फ़िर ऐसे में कैलाश पांडे जी को जोशीमठ के संदर्भ में थाने में तलब करना एक सवाल खड़ा करता है।

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