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ये जनरल, वो जनरल और एक एडमिरल

 












भारतीय सेना में चार साल की सेवा वाली अग्निपथ / अग्निवीर योजना के समर्थन के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने मुहिम छेड़ दी है. चूंकि योजना के विरोध और  विक्षोभ के स्वर प्रबल हैं, इसलिए योजना की विज्ञापनी विशेषताओं को बताने के लिए कई लोगों को सरकार ने मोर्चे पर लगाया.












जिन लोगों को इस योजना की विशेषता बताने का जिम्मा सौंपा गया, उनमें वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री और पूर्व थलसेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह भी हैं.


वीके सिंह साहब ने बेहद अहं के साथ कहा कि सेना कोई रोजगार देने वाली एजेंसी नहीं है. वे यह कहने में भी नहीं चूके कि जिसे सेना में न आना हो,न आए !



हकीकत यह है कि भारतीय सेना न केवल लाखों लोगों को रोजगार देती रही है, बल्कि लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने में भी सेना से मिलने वाले रोजगार का योगदान है. वीके सिंह यदि केंद्र सरकार में मंत्री होने की योग्यता पा गए तो उसके पीछे उनकी सैन्य पृष्ठभूमि ही है.


लेकिन जब जनरल सिंह जैसे व्यक्ति चार साल की अग्निपथ योजना का फायदा बताते हैं तो उनका यह कारनामा- “परउपदेश कुशल बहुतेरे” वाली कहावत को चरितार्थ करता प्रतीत होता है.


भारतीय थलसेना के इतिहास में वीके सिंह इकलौते जनरल हैं, जो केंद्र सरकार के खिलाफ उच्चतम न्यायालय गए. ऐसा उन्होंने तब किया जबकि लगभग 38 साल सेना में रहने के बाद वे सेना के सर्वोच्च पद पर पहुँच चुके थे. और बात क्या थी ? बात महज इतनी सी थी कि अपनी सैन्य सेवा के अंतिम चरण में पहुँच कर और सेना के सर्वोच्च पद पर पहुँचने के बाद, वे चाहते थे कि आधिकारिक रिकॉर्ड में दर्ज उनकी जन्मतिथि को 10 मई 1950 के बजाय 10 मई 1951 किया जाये.


इस प्रकरण को लेकर जनरल वीके सिंह जब उच्चतम न्यायालय गए तो उच्चतम न्यायालय ने भी आश्चर्य प्रकट किया कि उनके कद का व्यक्ति, न्यायालय क्यूँ आया ? 



https://www.hindustantimes.com/delhi/sc-why-should-a-person-of-your-stature-come-to-court/story-i4hspFB8l4IEZf9jIdLLDP.html?fbclid=IwAR2iwAiZPcQz3cOo6HRe36WszEU58LNcvvSRvmELD3iLvf4tz4-BkzPjHto




फरवरी 2012 में उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढा और न्यायमूर्ति एचएल गोखले की खंडपीठ ने जनरल वीके सिंह से सवाल किया - “ यदि कोई व्यक्ति जिसका उत्पीड़न हुआ हो और जो कुछ हासिल न कर पाया हो, वह हमारे सामने आए तो हम हम समझ सकते हैं. आप वह उच्चतम पद हासिल कर चुके हैं, जिसकी आप कामना करते हैं. आपके कद के व्यक्ति को हमारे पास क्यूँ आना चाहिए ? अदालत ने तब इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया था कि जनवरी 2008 में अपनी जन्मतिथि को 1950 मानने की बात “सांगठनिक हित” में लिखित में देने के बाद, वे उच्चतम न्यायालय आए हैं ! 

  

यह हैरत की बात है कि जो व्यक्ति भारतीय सेना के सर्वोच्च पद पर पहुँचने और 38 वर्ष की सेवा करने के बाद भी अपनी जन्मतिथि को एक वर्ष पीछे करवाने के लिए उच्चतम न्यायालय गया हो, वह युवाओं से कह रहा है कि मात्र चार साल की अग्निपथ योजना, उन्हें चुपचाप स्वीकार कर लेनी चाहिए.


अग्निपथ / अग्निवीर योजना के पक्ष में दिवंगत सीडीएस और पूर्व थलसेना अध्यक्ष बिपिन रावत का नाम भी चर्चा में लाया गया है. उनका एक पुराने भाषण का वीडियो वाइरल किया जा रहा है, जिसमें वे कहा रहे हैं कि सेना नौकरी नहीं जुनून है.


लेकिन जनरल रावत का हवाला देने वाले यह भूल जाते हैं कि सेना के पेंशन पर होने वाले खर्च को कम करने की चिंता प्रकट करते हुए भी वे सेवानिवृत्त होने वाले सैनिकों की पेंशन खत्म करने की पैरोकारी नहीं कर रहे थे.


जनरल बिपिन रावत तो सेना में अफसर के नीचे के रैंक वालों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा कर 58 साल करने के पक्षधर थे. इस सिलसिले में एक प्रस्ताव भी 2020 में उन्होंने भेजा था. फरवरी 2020 में पत्रकारों से बात करते हुए भी उन्होंने कहा था कि अफसर के नीचे के रैंक में भर्ती होने वाले 18-19 की छोटी उम्र में भर्ती किए जाते हैं और 37-38 साल की उम्र में रिटायर हो जाते हैं. फिर उन्हें नौकरी ढूंढनी पड़ती है, जो उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं है. वे इस सबसे न गुजरें, इसके लिए उनकी सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ा कर 58 वर्ष कर देनी चाहिए. जनरल रावत प्री मैच्योर रिटायरमेंट लेने वाले अफसरों की पेंशन में कटौती करने के पक्षधर थे. जनरल रावत के फॉर्मूले के अनुसार जवान देर में सेवानिवृत्त होगा तो उसको पेंशन देने के चलते पैदा होने वाला आर्थिक बोझ स्वतः ही कम हो जाएगा.



https://theprint.in/defence/retirement-age-of-military-personnel-should-be-raised-to-58-says-cds-bipin-rawat/359736/


केंद्र सरकार की अग्निपथ/अग्निवीर योजना में तो न केवल रिटायरमेंट की उम्र चार साल कर दी गयी है, बल्कि पेंशन का भी खात्मा कर दिया गया है.


 अग्निपथ / अग्निवीर योजना के समर्थन में एकाएक ढेर सारे उद्योगपतियों ने ट्वीट करना शुरू किया. इनमें महेन्द्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महेन्द्रा भी शामिल थे. आनंद महेन्द्रा ने अपने ट्वीट में लिखा कि “अनुशासित,प्रशिक्षित और सक्षम अग्निवीरों को भर्ती करने के अवसर का महेन्द्रा ग्रुप स्वागत करता है.”  भारतीय नौसेना के एक पूर्व प्रमुख ने आनंद महेन्द्रा के ट्वीट का सटीक जवाब दिया. 2004 से 2006 के बीच भारतीय नौसेना के प्रमुख रहे एडमिरल अरुण प्रकाश ने लिखा- “नयी योजना का इंतजार क्यूँ करना ? क्या महिंद्रा ग्रुप उन हजारों अनुशासित और उच्च कौशल युक्त अफसरों व जवानों तक पहुंचा है, जो अपने दूसरे करियर का व्यग्रता से इंतजार कर रहे हैं ?” 











 एडमिरल अरुण प्रकाश के ट्वीट से स्पष्ट है कि अग्निपथ / अग्निवीर योजना का समर्थन, एक खोखली सत्ता समर्थक कवायद है क्यूंकि पहले से सेवानिवृत्त हजारों सैनिकों को रोजगार देने का सरकार समर्थक ट्वीट करने वाले उद्योगपतियों का रिकॉर्ड कोई उल्लेखनीय नहीं है.


यह स्पष्ट है कि पूर्णकालिक सेना और पूर्णकालिक सैन्य सेवाओं का कोई स्थानापन्न नहीं हो सकता है.


-इन्द्रेश मैखुरी  

   

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