मुंबई की फिल्मी मायानगरी का एक पुराना फिल्मी गीत
है- बंबई से आया मेरा दोस्त, दोस्त को सलाम करो,रात को खाओ
पियो, दिन को आराम करो !
पर उस बंबई या आज की मुंबई से भागे ये किसके दोस्त हैं, जिनके गुवाहाटी वाया सूरत पहुँचने से महाराष्ट्र की राजनीति का ही सूरत-ए-हाल
बदल गया है ? जिनके उड़ने से नदियों में आई बाढ़ झेल रहे असम में, महाराष्ट्र से इस विधायकों की आई
बाढ़ के मैनेजमेंट पर अधिक जोर हो गया है !
जिनके खेमे में ये थे, उनके ये दोस्त
रहे नहीं, उनसे तो इन्होंने फुल दुश्मनी मोल ले ली है. वे तो
“आओ कभी हवेली पर ” की तर्ज में कह रहे हैं, आओ तो मुंबई !
जिनके बूते ये मुंबई से सूरत और वहां से गुवाहाटी उड़ रहे हैं, मंहगे-मंहगे होटलों में रह रहे हैं, वे उनकी मदद तो पूरी कर रहे हैं. पर कह रहे हैं कि इनके पीछे हमारा कोई हाथ नहीं है !
ना महाराज, आपका हाथ कहाँ
है, इनके पीछे ? आपकी तो ईडी है, जिससे ये आपकी सीढ़ी पर आए हैं ! भ्रष्टाचार के विरुद्ध आपका यह अभियान बेमिसाल
है ! भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐसा अभियान दुनिया
में कहीं नहीं देखा गया ! किसी और पार्टी में भ्रष्टाचार के आरोपियों को देख कर 56
इंची सीना चाक-चाक हो उठता है. भ्रष्टाचार के आरोपी के पीछे तत्काल एबी, सीडी, ईडी दौड़ पड़ते हैं. भ्रष्टाचारी हो कर दूसरे दल
में रहता है ! कमल के नीचे का कीचड़ बनेगा कि जेल पहुंचा कर कचरा कर दें तेरा !
भ्रष्टाचार के मारे की अंतरात्मा तुरंत जाग उठती है. वह
कमल छाप वॉशिंग मशीन में तुरंत दाखिल होता है. उस पर लगा सारी भ्रष्टाचार की कालिख, कमल के नीचे का कीचड़ बनती है, वह उजला-उजला, चमकता-दमकता दिखता है !
ऐसे मामलों में अंतर आत्मा का भी बड़ी महत्वपूर्ण योगदान
है. सौ-दो सौ- पाँच सौ करोड़ छापने तक तो बेचारे की आत्मा के पास ही फुर्सत नहीं होती
तो अंतर आत्मा क्या खा कर जागेगी ? बेचारे भूखे के पास
सिर्फ पेट होता है, आत्मा, अंतरात्मा, परमात्मा की प्राप्ति तभी होती है,जबकि तिजोरी में हरियाली
लहलहा रही हो !
महाराष्ट्र वाले मामले में अंतरात्मा नहीं जागी, वहां हिंदुत्व जाग उठा है और हिंदुत्व इस कदर जाग उठा है कि अब्दुल सत्तार
नाम के विधायक भी बागियों में शामिल हो गए ! महाराष्ट्र से हवा हो कर, वाया सूरत, गुवाहाटी के पाँच सितारा होटल में पहुंचे
इन “माननीयों” को समझ आया कि दो-ढाई साल से जिस सरकार में मंत्री
बने रहे, वो तो बेमेल गठबंधन की सरकार है ! वाह, सीएफ़एल से आगे बढ़ कर जमाना एलईडी बल्ब तक पहुँच गया है और इन माननीयों की
बुद्धि अभी भी ट्यूबलाइट की ही गति से ऑन होती है ! ढाई साल तक प्ड़िंग-प्ड़िंग करने
के बाद पूरी रौशनी हुई कि अरे हम तो बेमेल की सरकार में थे ! और इंतजाम गज़ब है, ढाई साल तक बेमेल के गठबंधन में मौज की, अब अगर दांव
चल निकला तो ढाई साल, ईडी द्वारा कराये गए मेल के गठबंधन में
मौज करेंगे ! मेल हो, बेमेल हो और कुछ हो ना हो, सिर इस कढ़ाई में रहे, जिसमें सत्ता का तेल हो !
-इन्द्रेश मैखुरी
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