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उत्तराखंड पुलिस में हत्यारोपियों को भर्ती होने की छूट मिल गयी क्या ?

 






स्कूली दिनों से आंदोलनों के दौरान यह सुनते आए थे कि यदि मुकदमा दर्ज हो जाए तो करियर खराब हो जाता है. किसी जायज सवाल पर होने वाले आंदोलन में शामिल युवाओं को समाज और पुलिस वाले भी ऐसा ही समझाते हैं कि कल को नौकरी करने जाओगे तो सत्यापन यानि पुलिस वेरिफिकेशन में दिक्कत आएगी. बहुत सारे नौजवान लोग इसी भय के चलते किसी सार्वजनिक मसले पर बोलने से भी डरते हैं.






लेकिन सल्ट के नए-नवेले विधायक महेश जीना के गनर के वाइरल वीडियो से तो ऐसा लग रहा है कि जघन्यतम अपराध करने और उसमें जेल जाने के बावजूद सामान्य नौकरी नहीं बल्कि पुलिस की नौकरी भी हासिल की जा सकती है. महेश जीना के गनर, जिनका नाम अखबारों के अनुसार आनंद सिंह नेगी है, इस वाइरल वीडियो में कह रहे हैं कि वो मुरादाबाद के रहने वाले हैं, 302 में जेल जा चुके हैं,ऐसे ही नौकरी नहीं कर रहे हैं. “नौकरी ऐसे ही नहीं कर रहे हैं” के साथ बोली गयी दो बातें- मुरादाबाद के रहने वाले हैं, 302 में जेल जा चुके हैं-सुन कर ऐसा लगता है, जैसे पुलिस की नौकरी पाने में मुरादाबाद का होना और 302 यानि हत्या के आरोप में जेल जाना,उनकी विशेष योग्यता हो !


महेश जीना जब से विधायक बने हैं,तब से वे गलत वजहों से ही चर्चा में हैं. विधायक के गनर का उक्त वीडियो भी तीन हफ्ते पुरानी उस घटना का है जिसमें विधायक महेश जीना और नोएडा के भाजपा उपाध्यक्ष गिरीश कोटनाला के बीच मारपीट का मामला सामने आया था. उस समय भी यह बात सामने आई थी कि मारपीट की वजह आगामी विधानसभा चुनावी के लिए टिकट की होड़ थी. उत्तराखंड जैसे शांत प्रदेश के लिए यह बेहद चिंताजनक है कि राजनीतिक वर्चस्व के लिए इस तरह की हिंसक घटनायें हों. आश्चर्यजनक है कि भाजपा की ओर से इस घटना पर कोई गंभीर प्रतिक्रिया सामने नहीं आई, जबकि मारपीट करने वाले दोनों लोग भाजपा से जुड़े हुए हैं !


 विधायक के गनर का प्रकरण तो अत्यंत गंभीर है. इससे सीधा सवाल यह खड़ा होता है कि “मित्र पुलिस” के नारे वाली उत्तराखंड पुलिस में भर्ती की प्रक्रिया में क्या कोई जांच की प्रणाली नहीं है, जिसके चलते हत्या जैसे गंभीर आरोप में जेल जा चुका व्यक्ति उसमें भर्ती हो जाता है ? फिर ऐसा व्यक्ति सरेआम मारपीट करता है और जेल जाने की डींग उपलब्धि की तरह हांकता है ? अगर विधायक के गनर का दावा सही है कि वह 302 के आरोप में जेल गया है तो क्या उत्तराखंड पुलिस में वह ऐसा इकलौता है या ऐसे और भी हैं ?





उत्तराखंड जैसे न्यूनतम अपराध वाले शांत प्रदेश में यदि पुलिस में इस तरह की अपराधी प्रवृत्ति वाले भर्ती हो जा रहे हैं तो उत्तराखंड की शांति और कानून व्यवस्था को सर्वाधिक खतरा तो ऐसों से ही है. इसलिए इस मामले में सिर्फ मारपीट की जांच नहीं होनी चाहिए बल्कि एक समग्र जांच होनी चाहिए और यदि व्यवस्था की खामियों के चलते अपराधी प्रवृत्ति वाले या अपराध के आरोपी पुलिस में भर्ती हो गए हैं तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए.


-इन्द्रेश मैखुरी

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1 Comments

  1. ख़ाकी वर्दी में यह शख़्स मुरादाबाद ऐसे बयां कर रहा है जैसे अंडर वर्ल्ड गिरोह से तालुक रखता हो और ऊपर से 302 का तगमा अलग से।

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