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नेहरू और सोवियत रूस

 








14 नवंबर को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की जयंती है. बीते कुछ सालों में उनको लांछित करने का अभियान इस देश में चल रहा है. किसी से भी राजनीतिक मतभिन्नता होना कोई बुरी बात नहीं है, बल्कि मतभिन्नता तो किसी भी लोकतन्त्र का आवश्यक अवयव है. इसलिए नेहरू की राजनीति या राजनीतिक तौर पर उन से मतभिन्नता रखने में कोई हर्ज नहीं है. परंतु नित नया कीचड़ इकट्ठा करके नेहरू की तरफ उछालना, यह जरूर निंदनीय है.








पर इस कीचड़ उछालो अभियान से परे हट कर देखें तो यह दिखता है कि अपने समय के हर घटनाक्रम पर नेहरू न केवल नजर रखे हुए थे बल्कि उस पर चिंतन-मनन और विश्लेषण भी कर रहे थे. इसका एक उदाहरण रूस और वहां हुई क्रांति भी है.


1917 में रूस में लेनिन की अगुवाई में बोल्शेविक क्रांति हुई. इस क्रांति की दसवीं वर्षगांठ के मौके पर जवाहर लाल नेहरू को सोवियत रूस जाने का मौका मिला. वे जब वहां से लौटे तो वहां के घटनाक्रम और राजनीतिक बदलावों पर उन्होंने कई लेख लिखे, जो “द हिंदू”, “यंग इंडिया” समेत तमाम पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए. बाद में इन सभी लेखों को पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किया गया. सोवियत रूस पर नेहरू की इस पुस्तक का नाम है- सोवियत रशिया : सम रेंडम स्केचेज एंड इम्प्रैशन्स.”







इस पुस्तक में रूसी क्रांति के बाद वहां हुए बदलावों का नेहरू विश्लेषण करते हैं और कुछ शंकाओं के बावजूद, इस बदलाव के प्रति उनका नजरिया सकरात्मक है.


रूसी क्रांति पर टिप्पणी करते हुए नेहरू लिखते हैं- “....उसने दुनिया के इतिहास में सबसे बड़ा प्रयोग शुरू किया है और पूरी दुनिया उसे देख रही है, कुछ भय और घृणा से और बाकी सब बेहद उत्साह और उम्मीद से तथा वे उसके रास्ते पर चलने को उत्सुक हैं.” एक अन्य जगह पर रूसी क्रांति पर लिखी गयी पुस्तकों का ब्यौरा देते हुए नेहरू लिखते हैं कि “ निस्संदेह अक्टूबर क्रांति दुनिया के इतिहास की एक महान घटना थी, फ्रांस की क्रांति के बाद की महानतम घटना और इसकी कथा मानवीय और नाटकीय दृष्टिकोण से किसी काल्पनिक कथा या फतांसी के मुक़ाबले कहीं अधिक अपनी ओर खींचने वाली है.


क्रांति के बाद के रूस के लगभग सभी पहलुओं की नेहरू चर्चा करते हैं, वहां की शिक्षा, जेल, कानून व्यवस्था,महिलाओं की स्थिति आदि सब पर वे विस्तार से लिखते हैं.


वे लिखते हैं कि रूसी व्यवस्था की मुख्य विशेषता यह है कि वह खुले तौर पर स्वीकार करते हैं कि समाज विभिन्न सामाजिक समूहों या वर्गों से बना हुआ है, जिनमें से हर एक के आर्थिक हित भिन्न हैं.


सोवियत संघ में राजनीतिक प्रतिनिधित्व की स्थिति पर नेहरू विस्तार से प्रकाश डालते हैं. वे बताते हैं कि सोवियत संघ के सभी गणराज्य संप्रभु हैं सिवाय उन दो या तीन मामलों के जिनकी शक्तियाँ केंद्र के पास हैं. राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर चर्चा करते हुए वे बताते हैं कि वहां के संविधान में प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार (right to recall) है. इस राइट टु रिकॉल वाली विशेषता का विशेष तौर पर उल्लेख करने वाले नेहरू बाद में देश के प्रधानमंत्री बने, लेकिन यह व्यवस्था,यहाँ लागू न हो सकी और आज तो लोकतंत्र को ही “टू मछ” करार दिया जा रहा है !


रूसी क्रांति के बाद स्थापित न्याय प्रणाली और रूसी जेलों का भी नेहरू विस्तार से वर्णन करते हैं. वे लिखते हैं कि रूस में क्रांति के बाद मृत्युदंड को समाप्त कर दिया गया था, लेकिन फिर इसे दुश्मन देश के साथ मिलकर देश को नुकसान पहुंचाने की बढ़ती घटनाओं के चलते बहाल करना पड़ा. लेकिन सोवियत संघ की अपराध संहिता में यह लिखा गया कि सोवियत शक्ति के अस्तित्व को समाप्त करने की कोशिश करने वालों के खिलाफ यह अस्थायी उपाय है, जिसे अपवाद स्वरूप ही प्रयोग किया जाना है और अंततः इसे समाप्त किया जाना है.


नेहरू ने लिखा कि रूसी जेलों का मूल विचार सजा देना नहीं बल्कि सुधार करना है. इन जेलों के पीछे का विचार है कि कैदियों में भी मनुष्य तत्व नष्ट नहीं होना चाहिए. जेलों में कैदियों से आठ घंटे काम करवाया जाता और इस मामले में उन पर ट्रेड यूनियन कानून लागू होते थे. कैदियों पर ट्रेड यूनियन कानून ठीक से लागू हों,इसके लिए ट्रेड यूनियनों द्वारा समय-समय पर उनका निरीक्षण किया जाता था.


नेहरू ने लिखा कि अल्पसंख्यकों के प्रश्न को रूस ने अच्छे तरीके से हल किया. जिस समय क्रांति हुई उस वक्त गैर रूसी भाषी राष्ट्रीयताओं की तादाद 52 प्रतिशत थी. प्राथमिक निर्देश 62 भाषाओं में जारी होते थे. 16 समूहों की भाषाओं के लिए लिपि बनाई गयी. सभी भाषा-भाषी समुदायों की शिक्षा का माध्यम उनकी मातृ भाषा थी. एक ऐसे घुमंतू जनजातीय समुदाय के लिए भी स्कूल खोला गया, जिनकी कुल आबादी 405 थी. मॉस्को में बौद्ध संस्कृति के अध्ययन केंद्र की स्थापना का जिक्र भी नेहरू करते हैं.


मजदूरों, किसानों,महिलाओं के उत्थान के लिए क्रांति के बाद सोवियत संघ में किए गए प्रयासों और उसके फलस्वरूप हुए बदलावों पर नेहरू ने विस्तार से लिखा है. एक पूरा अध्याय तो उन्होंने रूस को समझने के लिए कौन सी किताबें पढ़ी जानी चाहिए इस पर लिखा है.  


भारत के रूस के साथ हमेशा से मैत्रीपूर्ण संबंध रहे. उनके बीज नेहरू की इस पुस्तक के अंतिम अध्याय में देखे जा सकते हैं. नेहरू लिखते हैं कि अंग्रेजी साम्राज्यवाद भले अपने स्वार्थों के लिए रूस से युद्ध करे,लेकिन भारत को उस युद्ध का हिस्सा बनने से इंकार कर देना चाहिए.

 

क्रांति से पहले जारशाही की शिक्षा व्यवस्था और क्रांति के बाद की शिक्षा व्यवस्था का जिक्र नेहरू करते हैं. वे लिखते हैं कि जारशाही शिक्षा का उद्देश्य केवल ज़ार और चर्च के प्रति वफादारी सिखाना था. जारशाही के एक शिक्षा मंत्री ने कहा कि कोचवान, नौकर, धोबी आदि के बच्चों को उस दायरे से ऊपर नहीं उठने देना चाहिए, जहां वे पैदा हुए हैं.


नेहरू लिखते हैं कि सोवियत शिक्षा विभाग ने जो पहला आदेश जारी किया उसमें चर्च को स्कूल से अलग करने, सह शिक्षा और गैर रूसी राष्ट्रीयताओं को अपनी भाषा में स्कूल संगठित करने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रावधान किया गया. साथ ही सबको निशुल्क शिक्षा का भी प्रावधान किया गया. विभिन्न तबकों के लिए और विभिन्न तबकों के लिए स्कूल बनाए गए. किसानों,मज़दूरों से लेकर सैनिकों तक को शिक्षित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाये गए.


स्कूलों के महत्व पर नेहरू,रूसी क्रांति की प्रमुख महिला नेता और लेनिन की जीवन संगिनी क्रुपस्काया को उद्धरित करते हैं. क्रुपस्काया कहती हैं – “….. बच्चों के जीवन में न तो वर्ग संघर्ष और ना ही वर्ग प्रभुत्व स्थान ले सकता है. स्कूल तो एक भ्रूण है, भविष्य के वर्गविहीन समाज का प्रतीक है.”


इस पुस्तक में एक पूरा अध्याय रूसी क्रांति के शिल्पी लेनिन पर है. रूसी क्रांति के निर्माताओं के संदर्भ में नेहरू लिखते हैं- “बिना सैन्य मामलों के अनुभव के उन्होंने महान और विजयी सेनाएँ बना डाली, बिना कूटनीति के किसी अनुभव के, वे दुनिया के अन्य देशों के परिपक्व कूटनीतिज्ञों से सफलतापूर्वक निपटे ; बिना व्यापार और प्रशासन के उन्होंने एक विशालतम राज्य मशीनरी को संचालित किया, जो सारे उत्पादन और वितरण को नियंत्रित करती थी.” नेहरू लिखते हैं कि लेनिन ऐसा करने वालों में से सबसे महानतम थे.


वे कहते हैं कि लेनिन ने एक वैज्ञानिक की तरह रूस की स्थितियों की विवेचना करते हुए बताया कि वो क्या करना चाहते हैं. नेहरू लिखते हैं कि “लेनिन ने लोगों को सिखाया कि जिस आदर्श का उन्होंने सपना देखा और जिसके लिए उन्होंने काम किया, वह कोरा सिद्धान्त नहीं है बल्कि ऐसी चीज है, जिसे तत्काल हकीकत में बदला जा सकता है. इच्छाशक्ति की आश्चर्यजनक ताकत से उन्होंने एक राष्ट्र को सम्मोहित कर दिया और छिन्न-भिन्न व हतोत्साहित लोगों को एक उद्देश्य के लिए कुछ भी कर गुजरने और बर्दाश्त करने की ऊर्जा और इच्छाशक्ति से भर दिया.” इस पाठ के अंत में लेनिन के संदर्भ में लिखे इटली के विद्वान रोमा रोलां के शब्दों को नेहरू उद्धृत करते हैं कि लेनिन “ हमारी शताब्दी में पहलकदमी वाला सर्वश्रेष्ठ मनुष्य है और साथ ही सर्वाधिक निस्वार्थ भी.”


आज जब नेहरू की जयंती पर रूस पर लिखी हुई पुस्तक को याद कर रहा हूँ तो रूस में वह “विशालतम प्रयोग” ध्वंस हुए कई दशक बीत चुके हैं और अब तो अपने देश में ही नेहरू के ध्वंस की निरंतर कोशिश की जा रही है. लेकिन ध्वंस की शक्तियों से मुक्ति पाने की जद्दोजहद तो चलेगी ही और बेहतर मुल्क,बेहतर दुनिया के निर्माण में सारे पुराने अनुभव भी काम आएंगे.


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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2 Comments

  1. नेहरूजी के सोवियत रूस गनराज्य के विषयक सार गर्भित लेख के लिए धन्यवाद

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  2. 14 नवंबर जन्मदिन के मौक़े पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा लिखी किताब - 'Soviet Russia:Some random scatches & impressions'के ज़रिए एक बेहतरीन लेख का तोहफ़ा!

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