दो दिन पहले यानि 25 मई को माकपा के साथी कमलेश गौड़
का व्हाट्स ऐप मैसेज और फोन आया कि दून अस्पताल में भर्ती कोरोना के मरीज को टोकलीजुमैब
इंजेक्शन चाहिए, जो नहीं
मिल रहा है. मैंने तुरंत ही अपने स्तर से इंजेक्शन की तलाश शुरू की. कोरोना के दौरान
बने सहायता के लिए विभिन्न व्हाट्स ऐप ग्रुप्स में मैसेज फॉरवर्ड किया. पर इंजेक्शन
मिलने की राह आसान नहीं हुई. व्हाट्स ऐप पर ही मित्र विजयपाल रावत एक
ग्रुप संचालित कर रहे हैं- कोविड हेल्प सेंटर,यूके. यह ग्रुप कोरोना
की इस दूसरी लहर में बेहद मददगार सिद्ध हुआ है. इस ग्रुप के सक्रिय साथी अभिनव थापर
का फोन आया. उन्होंने कहा कि यह इंजेक्शन मुख्य चिकित्साधिकारी(सीएमओ) कार्यालय से
मिलेगा,जहां अभी यह उपलब्ध नहीं है. बाजार में इसका सब्स्टिट्यूट
मिल जाएगा. इस इंजेक्शन की कीमत अड़तालीस हजार रुपये और बाजार में उपलब्ध सब्स्टिट्यूट
तेरह-चौदह हजार रुपये में मिल जाएगा. इंजेक्शन की कीमत ही दांतों तले उंगली दबाने को
मजबूर करती है. जिसके पास इतनी धनराशि नहीं होगी,उसके जीवन का
क्या होगा ?
पुनः मरीज के
तीमारदार को फोन किया. उनको सब्स्टिट्यूट वाला सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि डॉक्टर
ने सब्स्टिट्यूट लिखने से मना कर दिया है. इंजेक्शन मिलेगा नहीं और सब्स्टिट्यूट डाक्टर
लिखेंगे नहीं,यह तो बड़ी विकट स्थिति है.
फिर देहारादून के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ.अनूप डिमरी
को फोन किया. उन्होंने कहा कि टोकलीजुमैब इंजेक्शन तीन-चार दिन से स्टॉक में
नहीं है. उन्होंने कहा कि वे यह बता सकने की स्थिति में भी नहीं हैं कि यह इंजेक्शन
कब आएगा.
कोई और रास्ता न समझ में आने पर मैंने देहारादून के कोरोना काल में सहायता के प्रभारी मंत्री गणेश जोशी समेत दो मंत्रियों को व्हाट्स ऐप के जरिये संदेश भेजा. उनमें से एक मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत की तारीफ में अखबार में छपा है कि वे अपने फोन पर आने वाले कॉल पर रात-दिन मदद कर रहे हैं. शायद यह बात व्हाट्स ऐप मैसेज पर लागू नहीं होती होगी !
मुख्यमंत्री को भी ईमेल और ट्विटर पर टोकलीजुमैब की अनुपलब्धता की बात बताई.
पर शायद वे दूसरे प्रकार के लोग होते होंगे,जिनकी बात इन
माध्यमों के जरिये सुन ली जाती होगी !
इस सिलसिले में मुझे याद आया कि यह पहला मौका नहीं है,जब मैं टोकलीजुमैब इंजेक्शन की तलाश
कर रहा हूँ. अप्रैल के महीने में भी इसकी तलाश मैं कर चुका हूं. उस समय हमारी पार्टी
भाकपा(माले) के महासचिव कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य का संदेश आया कि देहारादून में किसी
को यह इंजेक्शन चाहिए. उस समय भी इसे पाना ऐसा ही आकाश कुसुम साबित हुआ था. तब भी सब्स्टिट्यूट
लेने और उसे डाक्टर द्वारा लिखने से इंकार करने की बात हुई थी.
बहरहाल आज सुबह जब देहारादून के मुख्य चिकित्साधिकारी
से इंजेक्शन के बारे में जानने के लिए व्हाट्स ऐप पर मैसेज किया तो उन्होंने कहा कि
इंजेक्शन उपलब्ध है. मरीज के तीमारदार को फोन किया तो उन्होंने कहा कि इंजेक्शन तो
वे सरकारी स्टॉक से ले चुके हैं. चूंकि डाक्टर ने पाँच दिन पहले इंजेक्शन प्रिस्क्राइब
किया तो अब जरूरत है या नहीं,इसका फैसला डाक्टर ही करेंगे.
यह किस्सा सिर्फ टोकलीजुमैब इंजेक्शन
का नहीं है. बल्कि हाल ही में महामारी घोषित किए गए ब्लैक फंगस के इंजेक्शनों की हालत
भी ऐसी ही है. उसके इंजेक्शनों के लिए भी बीमारों की परिजन दर-दर भटक
रहे हैं.
मुख्यमंत्री का अखबारों में बयान छप रहा है कि इलाज का
मुकम्मल इंतजाम है. लेकिन धरातल की स्थितियों से यह दावा मेल नहीं खा रहा है. इस महामारी
में लोगों को जरूरी दवाओं के लिए दर-दर न भटकना पड़े,इतना इंतजाम तो
कर दो सरकार !
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इन्द्रेश मैखुरी
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