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इनसे राहत वसूलनी नहीं, इनको राहत देनी थी सरकार !

 






कोरोना महामारी के इस दौर में कोरोना वॉरियर्स, फ्रंटलाइन वॉरियर्स जैसे कई शब्द खूब प्रचलन में हैं.



पुलिस को भी इन वॉरियर्स की श्रेणी में रखा गया है. उत्तराखंड पुलिस निरंतर विभिन्न मोर्चों पर सक्रिय है. कानून-व्यवस्था कायम रखने से लेकर कोरोना मृतकों का दाह संस्कार, राशन,दवाई और अन्य चीजें जरूरतमंदों तक पहुंचाने का काम कर रही है. इसमें अपवादस्वरूप कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण विवरण भी हैं पर आम तौर पर पुलिस बहुत सारे मोर्चों पर निरंतर सक्रिय है. कई बार तो यह ख्याल भी मन में आता है कि जब दवाई,राशन आदि पहुंचाने का काम पुलिस कर रही है,तो नागरिक प्रशासन क्या कर रहा है,वह किस लिए है ?


इस महामारी के समय में जब घरों से बाहर निकलना तक खतरे से खाली नहीं है, स्वास्थ्यकर्मियों, अन्य कोरोना वॉरियर्स और फ्रंटलाइन वॉरियर्स की तरह ही पुलिस कर्मी भी लगातार अपने को संक्रमित होने का खतरा उठा कर भी निरंतर ड्यूटि कर रहे हैं. जिस कुम्भ को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भी सुपर स्प्रेडर करार दिया, कोरोना की इस दूसरी लहर के उभार के साथ ही पुलिस कर्मियों ने उस कुम्भ में ड्यूटि की. कुम्भ निपटने के साथ पुलिस को तत्काल ही कोरोना की दूसरी लहर का सामना करते हुए महामारी के आपातकालीन ड्यूटि में लगना पड़ा. समाचार एजंसी एएनआई के अनुसार 15 मई 2021 तक उत्तराखंड में दो हजार पुलिस कर्मी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं.


इस बीच ताजातरीन खबर यह है कि उत्तराखंड पुलिस की ओर से 85 लाख 95 हजार 350 रुपये, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री राहत कोष में दिये हैं. यह धनराशि प्रदेश भर के पुलिस कर्मियों के एक दिन के वेतन से एकत्र हुई है.


यह तो सामान्य समझदारी है कि वेतन किसी भी कार्मिक को उसके श्रम के एवज में मिलता है. उत्तराखंड में पुलिस के साथ यह गजब हो रहा है कि पहले उनसे कोरोना काल में पहले की अपेक्षा ज्यादा श्रम करवाया जा रहा है और फिर उस अधिक श्रम के एवज में मिले वेतन का भी एक हिस्सा मुख्यमंत्री राहत कोष के नाम पर वापस ले लिए जा रहा है.


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत जी भी तो देखते होंगे कि पुलिसकर्मी तो रात दिन कोरोना काल में ड्यूटि में लगे हुए हैं. पुलिस में यह राहत राशि एकत्रीकरण भले ही स्वैच्छिक बताई जा रही हो पर यह सब जानते हैं किसी भी फोर्स में स्वैच्छिक जैसी कोई चीज नहीं होती.


मुख्यमंत्री जी सिर्फ पैसे के योगदान को ही योगदान समझते हैं क्या ? रात-दिन संक्रमण का खतरा उठाते हुए ड्यूटि करने को क्या वे योगदान की श्रेणी में नहीं समझते हैं ?


मुख्यमंत्री से ही प्रश्न इसलिए है क्यूंकि अव्वल तो वे प्रदेश के मुखिया हैं. दूसरी बात यह है कि मान लीजिये पुलिस की ओर से धनराशि एकत्र हो कर आ भी गयी थी,तब भी वे कह सकते थे कि रात-ड्यूटि करने वाले वालों से हम पैसा कैसे लें, वे तो अपनी ज़िंदगी का खतरा मोल लेकर भी कोरोना से लड़ाई में रात दिन एक किए हुए हैं !


अफसोस कि मुख्यमंत्री ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने संवेदनशीलता और उदारता का परिचय देने के बजाय चेक के साथ फोटो खिंचवाना ज्यादा श्रेयस्कर समझा.






होना तो यह चाहिए कि पुलिस सहित जो भी सरकारी कर्मचारी और आशा-आंगनबाड़ी कार्यकर्ता जैसे कर्मचारी के दर्ज से विहीन कार्मिक जान-जोखिम में डाल कर कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में सहयोग कर रहे हैं, उन्हें उत्तराखंड सरकार प्रोत्साहन राशि दे.


परंतु यहां तो उनको प्रोत्साहन राशि देने के बजाय उनके वेतन से राहत कोष के नाम पर राशि वसूल ली जा रही है ! सिर्फ खजाना भरने की न सोचो,काम का मोल भी करना सीखो, सरकार !


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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