वर्ष 2010 की बात है. रामदेव, भगवा चोले वाले योग गुरु और उद्योग के स्वामी के तौर पर अपनी जगह मजबूत कर
रहे थे. इसी साल में जनसंस्कृति मंच के साथी मदन मोहन चमोली जी की बिटिया चेतना की
शादी हुई. इस शादी में मैंने देखा कि एक उम्रदराज सज्जन, रामदेव
की खूब लानत-मलामत कर रहे हैं. यह रामदेव के उभार का दौर था. ऐसा समय जब उनके विरुद्ध कुछ भी बोलना आपको समाज में अलग-थलग कर सकता था. बूढ़े-बुजुर्गों
से तो आप ऐसी आलोचना की अपेक्षा कर ही नहीं सकते थे. ऐसे में एक उम्रदराज व्यक्ति को
रामदेव की आलोचना करते देख मैं चौंका ! मैं सीधे उनके पास गया और उनसे कहा कि रामदेव
को छोड़िए,पहले आप बताइये कि आप कौन हैं,जो रामदेव को इस कदर पानी पी-पी कर कोस रहे हैं !
अपना परिचय देते हुए उन सज्जन ने कहा- मैं कुकरेती. एक्टू
के प्रांतीय महामंत्री कॉमरेड के.के.बोरा से मैं, कुकरेती जी का
जिक्र सुन चुका था,जो (सहायक या उप) श्रम आयुक्त यानि लेबर कमिश्नर
थे. मैंने तस्दीक करने के लिए इन सज्जन से पूछा,आप वही कुकरेती
हैं. उन्होंने हामी भरी. मैंने उनसे पूछा कि जब सरकार और सरकारी अमला, बाबा के आगे लहालोट है तो आप उनसे इस कदर खफा क्यूँ हैं ?
कुकरेती जी ने बताया कि जब उनके सामने दिव्य योग फार्मेसी
में श्रम क़ानूनों के उल्लंघन का मामला आया तो उन्होंने कानूनी प्रावधानों के अनुसार
बाबा रामदेव को नोटिस भिजवाया. कुकरेती जी के अनुसार नोटिस भेजने की जानकारी उन्होंने
हरिद्वार के तत्कालीन जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को भी दी थी. दोनों अफसरों
ने कानून के प्रावधानों को देखते हुए, नोटिस दिये जाने पर
सहमति प्रकट की.
कुकरेती जी ने बताया कि एक दिन उनको सूबे के तत्कालीन
श्रम सचिव ने तलब किया. उन्होंने कुकरेती जी को नोटिस भेजने के लिए जम कर डपटा और यहां
तक कहा कि डीएम,एसएसपी को गुमराह करके तुमने नोटिस भेजा है. बाबा के
नाम पर नोटिस भेजने पर श्रम सचिव बेहद खफा थे. कुकरेती जी के अनुसार उन्होंने श्रम
सचिव को बहुत समझाया कि ऐसे मामलों में कानूनी बाध्यता है कि नोटिस मालिक को ही दिया
जाये. बक़ौल कुकरेती जी, श्रम सचिव की नारजगी कानून के प्रावधानों
को बताए जाने के बावजूद कम नहीं हुई. वे इस बात पर अड़े रहे-बाबा को नोटिस क्यूं भेजा.
श्रम सचिव कौन थे,यह भी खुलासा किया जा सकता है. पर यह किसी एक
सचिव का मामला नहीं पूरे सरकार के रुख का मामला था. गौरतलब है कि सरकार एनडी तिवारी की थी.
“गिरफ्तार तो उनका बाप भी नहीं कर सकता” ऐसे बड़बोलेपन की जड़ें, आप ऊपर बताए गए किस्से में तलाश सकते हैं.
जिस तंत्र के अफसर बाबा को विधि सम्म्त नोटिस दिया जाना बर्दाश्त न कर सकें, सचमुच उस तंत्र के रहते किसी का बाप भी कैसे गिरफ्तार करेगा,उन्हें ?
यह इकलौता किस्सा
नहीं है,सरकारी तंत्र की बांह मरोड़ने का. इससे पूर्व के लेख में प्रियंका पाठक नारायण
की किताब- गॉडमैन टु टाइकून- का जिक्र मैंने किया था. उस किताब में वर्णित एक किस्सा
भी सुनिए. यह किस्सा है सेल्स टैक्स डिप्टी कमिश्नर जितेंद्र राणा का. राणा के अनुसार
2004-05 में उन्होंने अपनी जांच में पाया कि दिव्य योग फार्मेसी ने लगभग 5 करोड़ रुपये
का सेल्स टैक्स नहीं चुकाया है. पर जैसे ही उन्होंने कंपनी पर छापा मारा तो तत्कालीन
राज्यपाल सुदर्शन अग्रवाल ने मामले में हस्तक्षेप किया. राणा पर इस कदर दबाव बनाया
गया कि उन्होंने चार साल की नौकरी बाकी होने के बावजूद वीआरएस ले लिया.
प्रख्यात पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी का किस्सा तो पूरे देश ने देखा.
वीडियो लिंक सौजन्य
: लल्लनटॉप
टीवी चैनल आजतक के कार्यक्रम-थर्ड डिग्री- में बाबा रामदेव का इंटरव्यू
करते हुए, पुण्य प्रसून वाजपेई ने रामदेव से कहा, “आज हिंदुस्तान
की जरूरत क्या है,ऐसा बाबा जिसकी गाड़ी इतनी लंबी है,जो घूमता है चार्टेड प्लेन में,जिसके तमाम ऐड चलते हैं
तमाम न्यूज चैनल पर,जिसके पास इतना पैसा है कि टैक्स छुपाने के
लिए उसने ट्रस्ट बना लिया है....... ” बस इतना सुनना था कि रामदेव बौखला उठे. उन्होंने
वहीं पुण्य प्रसून वाजपेयी से कहा- मैं आपको बर्दाश्त नहीं करूंगा. नतीजा : पुण्य प्रसून
वाजपेयी,आजतक की नौकरी से हाथ धो बैठे.
शायद इस तरह के
घटनाक्रमों से उपजा हुआ अहम होगा, जिसमें उन्मत्त हो कर रामदेव ऐलान
कर रहे होंगे कि गिरफ्तार तो उन्हें किसी का बाप भी नहीं कर सकता.
हालांकि इस भाषा और वाजपेई के सामने उनकी बौखलाहट जैसे
कई मौकों पर बरबस ही मन में प्रश्न उठता है कि जिस योग से वे औरों को इंद्रियों पर
नियंत्रण की सीख देते हैं,उस योग से वे अपनी भाषा और बहुतेरे मौकों
पर अपनी बौखलाहट को क्यूं काबू नहीं कर लेते ?
यह भी तथ्य है
कि अनुकूल सत्ता होने पर ही “गिरफ्तार तो उनका बाप भी नहीं कर
सकता” जैसे डाइलॉग बोले जा सकते हैं, जो किसी योगी या सन्यासी
को तो नहीं पर किसी फिल्मी खलनायक को बहुत सूट करते हैं. जिस सत्ता ने उनके साम्राज्य
को खड़ा करने में नियम-कायदे और अपने अफसरों की परवाह नहीं की, उसी सत्ता की भृकुटी उन पर जरा सी तनी तो इस देश ने देखा है कि वे स्त्री
वेश धारण कर भागने की कोशिश करते धरे गए.
हो सकता है कि अभी वे “बाप” हों जो उन्हें गिरफ्तार न
कर सकते हों पर हमेशा तो न बाप रहते हैं और ना ही माईबाप !
-इन्द्रेश मैखुरी
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