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गढ़वाल विश्वविद्यालय : आई सी सी की संस्तुतियों के छह महीने, राष्ट्रीय महिला आयोग की फटकार के बाद जरा सी कार्रवाई !

 

हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय, श्रीनगर (गढ़वाल) के  कुलसचिव की ओर से जारी एक पत्र सोशल मीडिया में देखा. उक्त पत्र के अनुसार पत्रकारिता और जनसंचार केंद्र के  विभागाध्यक्ष का जिम्मा डॉ. सुधांशु जायसवाल से लेकर आर्ट्स कम्युनिकेशन एंड लैंग्वेज की डीन प्रो. मंजुला राणा को सौंप दिया गया है. 






हालांकि मेरी जानकारी और सामान्य समझ के अनुसार चूंकि यह पत्रकारिता और जनसंचार केंद्र है तो उसके विभागाध्यक्ष नहीं निदेशक होते हैं. तो कुलसचिव के पत्र में पत्रकारिता और जनसंचार केंद्र के विभागाध्यक्ष पद के हस्तांतरण की जो बात कही गयी है, वो गलती है या चालबाजी  ? 


लेकिन असल मसला है कि डॉ. सुधांशु जायसवाल को हटाया क्यों जा रहा है ?  इसका कारण है डॉ सुधांशु जायसवाल के व्यवहार को लेकर पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र में नवनियुक्त एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अमिता और कैमरापर्सन के तौर पर कार्यरत डॉ अरुणा रौथाण द्वारा की गई शिकायतें. 


डॉ अमिता ने शिकायत की कि वे कुलपति से छुट्टी स्वीकृत करा कर तथा पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र के निदेशक को सूचना दे कर गयीं, परंतु इसके बावजूद 5 दिन की छुट्टी के लिए उनका 15 दिन का वेतन काट दिया गया. उनके साथ लगातार अभद्र व्यवहार किया गया, यहां तक कि उनका पीछा भी केंद्र निदेशक द्वारा किया गया, जिसके वीडियो साक्ष्य हैं.


डॉ अरुणा रौथाण को तो केंद्र निदेशक द्वारा धक्का दिये जाने से लेकर तमाम अभद्रता किये जाने की बातें, उन्होंने शिकायत में लिखी हैं. 


अपनी स्कूटी में किसी को बैठा कर लाने तक के लिए उत्पीड़न किये जाने की शिकायतें हैं. कंमेंट करते रहने तक की बातें सामने आई हैं. पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र में निदेशक के स्तर पर व्याप्त तमाम तरह की अराजकता और भ्रष्टाचार का उल्लेख उक्त शिकायतों में है.


स्वयं कुलसचिव के पत्र में उल्लेख है कि डॉ सुधांशु जायसवाल के विरुद्ध  विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) द्वारा 15 मई 2025, 20 मई 2025 और 01 जून 2025 को की गयी संस्तुतियों के क्रम में  उन्हें हटाया गया है.


सोचिये महिला कार्मिकों के साथ दुर्व्यवहार के मामले में गढ़वाल विश्वविद्यालय का प्रशासन कितना संवेदनशील है और उसकी कार्रवाई की गति क्या है कि वो अपनी आंतरिक शिकायत समिति की संस्तुति पर मामूली कार्रवाई करने में भी लगभग छह महीने लगा देता है. 


और यह भी तब हुआ है, जब इस मामले में डॉ अमिता की शिकायत पर कार्रवाई न करने के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग ने  गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलसचिव को फटकार लगाई.


इस मामले के सामने आने के बाद नागरिक समाज और छात्र नेताओं के एक प्रतिनिधिमण्डल ने 06 जून को तत्कालीन कार्यवाहक कुलपति से मुलाकात की थी. कार्यवाहक कुलपति जी ने कार्रवाई का भरोसा दिलाया था. स्वयं मैंने इस मुलाकात के दो दिन के बाद विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलसचिव को इस प्रकरण में कार्रवाई के बाबत पूछा तो उन्होंने ऐसा जवाब दिया, जिससे लगा कि कार्रवाई का कागज, उनकी मेज की दराज में इधर- उधर हो गया और दराज में से कागज हाथ में आया नहीं कि कार्रवाई हुई नहीं  ! पर कार्रवाई का कागज वे राष्ट्रीय महिला आयोग के हड़काने के बाद ही मेज की दराज से बाहर निकाल सके.


डॉ अमिता ने इस प्रकरण में निरंतर संघर्ष किया. उन्हें और डॉ अरुणा को इस छोटी लेकिन काफी संघर्षों से हासिल जीत के लिए बधाई. ऐसे मामलों में निश्चित ही दृढ़ इच्छाशक्ति से लड़ने की जरूरत है ताकि महिला कार्मिकों के लिए कार्यस्थलों पर स्वतंत्र रूप से, बिना किसी दबाव के काम करना संभव हो सके. गढ़वाल विश्वविद्यालय जैसे उच्च शिक्षण संस्थान को ऐसे मामलों में ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है.


-इन्द्रेश मैखुरी




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