सन 2000 में जब अलग
उत्तराखंड राज्य बना तो यहां के लिए गठित हुए पुलिस बल ने अपने लिए सूत्र वाक्य
चुना- “उत्तराखंड पुलिस, आपकी मित्र”- हम उत्तर प्रदेश में थे तो वहां की पुलिस तो
किसी भी कोण से आम जन की मित्र नहीं प्रतीत होती थी. लगा कि नए राज्य में पुलिस बल
ने भी नए कलेवर में स्वयं को जनता के मित्र के रूप में स्थापित करने का इरादा किया
है. यह इरादा इस छोटे से न्यूनतम अपराध वाले राज्य के वाशिंदों को भी आश्वस्तकारी
प्रतीत हुआ.
लेकिन राज्य बनने के 25 बरस बीतते-न बीतते लगता है कि उत्तराखंड की
पुलिस अपने मित्रता के नारे से खुद ही पिंड छुड़ाना चाहती है या एक हद तक तो उस
नारे पर कालिख पोतने पर ही आमादा है !
इसका ताजातरीन नमूना है- पिथौरागढ़ के पुलिस अधीक्षक रहने के
दौरान आईपीएस लोकेश्वर सिंह के विरुद्ध हुई शिकायत पर उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण
द्वारा सुनाया गया फैसला.
पिथौरागढ़ में कपड़े की दुकान चलाने वाले, आरटीआई
कार्यकर्त्ता लक्ष्मीदत्त जोशी की शिकायत
पर फैसला सुनाते हुए 09 दिसंबर 2025 को उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण ने पिथौरागढ़
में पुलिस अधीक्षक रहे लोकेश्वर सिंह को लक्ष्मीदत्त जोशी के साथ मारपीट करने का दोषी
करार दिया और उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई की संस्तुति की है.
उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण के बारह पन्नों के फैसले
का ब्यौरा पढ़ने से जो बात समझ में आती है, वो यह कि शिकायतकर्ता लक्ष्मीदत्त जोशी
की मुश्किलें सिर्फ इसलिए बढ़ गयी क्यूंकि उन्होंने पुलिस लाइन के सीवर का पानी सड़क
पर बहने की शिकायत तत्कालीन पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह से कर दी.
उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण के फैसले में दर्ज ब्यौरे
के अनुसार तत्कालीन पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह ने 06 फरवरी 2023 को लक्ष्मीदत्त जोशी
को पुलिस अधीक्षक कार्यालय बुलाया, जहां लोकेश्वर सिंह और छह अन्य पुलिस कर्मियों
ने उनके कपड़े उतारे और उनके साथ मारपीट की.
हालांकि आईपीएस अफसर और पिथौरागढ़ के पुलिस अधीक्षक रहे
लोकेश्वर सिंह ने लक्ष्मीदत्त जोशी का पुलिस अधीक्षक कार्यालय आना तो स्वीकार
किया, लेकिन उनके साथ मारपीट की बात से साफ़ इंकार किया. घटना के दिन के पुलिस
अधीक्षक कार्यालय के सीसीटीवी फुटेज मांगे गए तो वो ना तो आरटीआई में शिकायतकर्ता
लक्ष्मीदत्त जोशी को उपलब्ध करवाए गए और ना
ही उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण में पेश किये गए. उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण में दाखिल अपने
प्रतिशपथ पत्र में लक्ष्मीदत्त जोशी को लगी चोटों को भी लोकेश्वर सिंह ने गिरने के चलती आई, होने की संभावना प्रकट कर दी.
उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण के फैसले से पता चलता है
कि लक्ष्मीदत्त जोशी को आई चोटों को मेडिकल रिपोर्ट में तो गिरने से आई चोटें नहीं
माना गया बल्कि कहा गया है कि उक्त चोटें “हार्ड एंड ब्लंट ऑब्जेक्ट” यानि कठोर और
खुरदुरी चीज से आई हैं.
शिकायतकर्ता
लक्ष्मीदत्त जोशी और प्रतिवादी आईपीएस लोकेश्वर सिंह के दावों- प्रतिदावों तथा शपथपत्रों-प्रतिशपथ
पत्रों का अवलोकन करने के बाद उत्तराखंड पुलिस
शिकायत प्राधिकरण इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि पिथौरगढ़ के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक
लोकेश्वर सिंह ने अन्य पुलिस कर्मियों के साथ शिकायतकर्ता लक्ष्मीदत्त जोशी के
कपड़े उतरवा कर, उनके साथ पुलिस अधीक्षक कार्यालय में मारपीट की थी. इस संदर्भ में
पुलिस कर्मियों के अलावा दो पत्रकारों द्वारा दिए गए शपथ पत्र की सत्यता को भी उत्तराखंड
पुलिस शिकायत प्राधिकरण ने संदिग्ध करार
दिया. प्राधिकरण के फैसले में दर्ज है कि दो भिन्न व्यक्तियों के उक्त शपथ पत्रों
में एक शब्द की भी भिन्नता नहीं है ! पत्रकारों को किसी पुलिस अफसर के पक्ष में इस
तरह का शपथ पत्र देना, पत्रकारिता के चरम क्षरण का सूचक है, इससे लगता है कि सिर्फ
सर्वोच्च सत्ता की गोदी में ही नहीं अफसरों की गोदी में भी कतिपय पत्रकार बैठे हैं
!
उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण ने अपने फैसले में लिखा कि लोकेश्वर सिंह का यह कृत्या मानवाधिकार हनन की श्रेणी में आता है और यह कृत्य जनता में पुलिस के प्रति अविश्वास पैदा करता है तथा साथ ही पुलिस व सरकार की छवि को भी धूमिल करता है.
लक्ष्मीदत्त जोशी के प्रकरण में उत्तरखंड पुलिस शिकायत
प्राधिकरण के फैसले के सामने आने के बाद यह भी याद आया कि पिथौरागढ़ का पुलिस
अधीक्षक रहते हुए लोकेश्वर सिंह द्वारा किसी के उत्पीड़न की यह कोई इकलौती या पहली
घटना नहीं थी.
फरवरी 2022 में स्वतंत्र पत्रकार किशोर ह्यूमन जब एक
अनुसूचित जाति के व्यक्ति की हत्या और अनुसूचित जाति के व्यक्ति द्वारा अपनी
पुत्री के साथ बलात्कार की शिकायत की रिपोर्टिंग कर रहे थे तो पिथौरागढ़ पुलिस ने
उनके विरुद्ध सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का मुकदमा दर्ज कर दिया और इसी में किशोर
ह्यूमन को जेल भी भेज दिया. इस मामले में पिथौरागढ़ पुलिस ने फेसबुक पर लिखा कि उस
समय के पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह के निर्देश पर पुलिस ने किशोर ह्यूमन के खिलाफ
मुक़दमा दर्ज किया और उन्हें जेल भेजा. जिस मामले में किशोर ह्यूमन को जेल भेजा, अगर
वह आरोप सिद्ध भी हो जाए तो उसमें तीन साल से कम की सजा होती है. आम तौर पर पुलिस
सात साल से कम सजा वाले मामलें में गिरफ्तारी नहीं करती, पुलिस का तर्क होता है कि
अदालत ऐसी गिरफ्तारियों पर पुलिस को कड़ी फटकार लगाती है. लेकिन किशोर ह्यूमन के
मामले में पिथौरागढ़ के पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह, उन्हें जेल भेज कर ही माने !
इस प्रकरण में एक सेवानिवृत्त जिला जज समेत कुछ सामाजिक—ाजनीतिक
कार्यकर्ताओं की ओर से हमने मार्च 2022 में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को पत्र भेज
कर किशोर ह्यूमन के विरुद्ध फर्जी मुकदमा दर्ज करके जेल भेजने के लिए लोकेश्वर सिंह के विरुद्ध अनुसूचित जाति /
जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत मुकदमा दर्ज करने की मांग की थी. कहने
की जरूरत नहीं कि इस मामले में सरकार ने पूरी तरह चुप्पी बरत ली.
सरकार और मुख्यमंत्री का जिक्र आया है तो यह याद रखना चाहिए
कि पिथौरागढ़ के पुलिस अधीक्षक के बाद लोकेश्वर सिंह को मुखमंत्री पुष्कर सिंह धामी
द्वारा पौड़ी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बना कर भेजा गया. वहां से वे हाल में
संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी नौकरी मिलने का हवाला दे कर विदा हुए हैं. बताइए जो
आदमी एक जिले में जबरदस्त तरीके से लोगों का उत्पीड़न कर रहा था, वो संयुक्त
राष्ट्र संघ में जा रहा है !
आम जनता को तो लक्ष्मीदत्त जोशी के उत्पीड़न के प्रकरण का
पता उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण का फैसला आने के बाद चला. लेकिन क्या
उत्तराखंड सरकार और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भी यह पता नहीं था ? ऐसा सरकार
और मुख्यमंत्री नहीं कह सकते क्यूंकि जिस सीवर के पानी के सड़क पर बहने के मामले ने
इतना तूल पकड़ा, उसकी शिकायत तो लक्ष्मीदत्त जोशी ने सीएम हेल्पलाइन पोर्टल पर ही 15
जनवरी 2023 को दर्ज करवाई थी. आम तौर पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सीएम हेल्पलाइन पोर्टल पर शिकायतों के निराकरण के मामले में शिकायतकर्ताओं
से बातचीत करने का वीडियो सोशल मीडिया में जारी करते रहते हैं. बीते दिनों इस
हेल्पलाइन पर मुख्यमंत्री से बात होने के बाद बिजली का खम्बा लगने को मुख्यमंत्री
की बड़ी भारी सफलता के रूप में प्रचारित किया गया था !
लेकिन लक्ष्मीदत जोशी के प्रकरण में तो सीएम हेल्पलाइन
पोर्टल पर शिकायत के निवारण के बजाय तत्कालीन पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह ने
लक्ष्मीदत्त जोशी की बर्बर पिटाई कर डाली ! इसकी खबर नहीं लगी मुख्यमंत्री जी आपको
? या यह खबर मिलने के बाद ही आपने तय किया कि लोकेश्वर सिंह को पुलिस अधीक्षक से
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर बैठाया जाए और तदनुसार ही वे पिथौरागढ़ से पौड़ी लाए
गए ?
क्या लोकेश्वर सिंह उत्तराखंड सरकार के समर्थन के प्रति
आश्वस्त थे, इसलिए उन्होंने कई बार नोटिस दिए जाने के बाद भी उत्तराखंड पुलिस
शिकायत प्राधिकरण की अंतिम सुनवाई में शामिल होना तक गवारा नहीं किया ? उन्हें
वीडियो कांफ्रेंसिंग से भी कार्यवाही में शामिल होने का विकल्प दिया गया परन्तु
उन्होंने यह जहमत भी नहीं उठायी ! क्या यह सामान्य घटना है कि एक आईपीएस अफसर ऐसे
वैधानिक निकाय की खुलेआम अवहेलना करता है, जिसके अध्यक्ष उच्च न्यायलय के
सेवानिवृत्त न्यायाधीश हों और सदस्य पुलिस बल के ही सेवानिवृत्त वरिष्ठ अफसर ?
एक आईपीएस अफसर को उत्तराखंड पुलिस शिकायत प्राधिकरण द्वारा
दोषी करार दिए जाने के मामले पर सरकार और
हर समय सोशल मीडिया में सक्रिय रहने वाले मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की चुप्पी
क्या बताती है ? या तो वे अपने प्रिय अफसर पर कार्रवाई से हथप्रभ
हैं या उन्हें ऐसे फैसलों की कोई परवाह ही नहीं ? अतीत में भी जिलों के पुलिस
कप्तानों के खिलाफ गंभीर आरोप और उच्च न्यायालय की कठोर टिप्पणियों पर भी
उत्तराखंड सरकार और मुख्यमंत्री ऐसी ही चुप्पी ओढ़ते रहे हैं !
उत्तराखंड पुलिस और
आईपीएस अफसरों को भी अपने गिरेबान में झाँकने की जरूरत है कि वे “उत्तराखंड पुलिस-
आपकी मित्र”- वाले नारे में किस से और कैसी मित्रता निबाह रहे हैं ? आम जन, कानून,
संविधान और लोकतंत्र से मित्रता तो कम से कम यह नहीं है !
-इन्द्रेश मैखुरी



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