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पंचायत चुनाव में निर्विरोध निर्वाचन पर चंद बातें

 

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायतों के चुनाव चल रहे हैं. इन चुनावों के संदर्भ में पहली बात तो फिर जोर दे कर यही कहनी है कि छह- सात महीने अकारण विलंब से करवाए जा रहे ये चुनाव, ऐसे वक्त में करवाए जा रहे हैं, जबकि पूरा पहाड़ भारी बारिश के चलते आपदा जैसी स्थितियों से दो-चार है. उत्तराखंड सरकार की लापरवाही और लेट लतीफी की मार, लोगों को ही विपरीत मौसम में झेलनी पड़ रही है.


इन पंचायत चुनावों में निर्विरोध चुने जाने की खबरों की काफी चर्चा है. लोग आम सहमति से अपना प्रतिनिधि चुन लें, यह अच्छी बात है. चुनावों का ऐसा स्वरूप हो गया है कि हर स्तर के चुनाव में पैसे और शराब का बेतहाशा बोलबाला है. इसके अलावा चूंकि लोकतांत्रिक चेतना हमारे समाज में कमजोर है, इसलिए बहुतेरी बार चुनाव लड़ने और आपस में लड़ने के बीच लोग भेद नहीं कर पाते. ऐसी स्थिति में चुनाव लड़ने से मनमुटाव और झगड़े होने की आशंका रहती है. इसलिए लोग चाहते हैं कि बिना औपचारिक चुनाव के मामला निपट जाए तो अच्छा है. 


लेकिन ना तो चुनाव होना हर बार बुरा होता है और ना ही निर्विरोध चुने जाने वाले हर बार सही मायनों में बिना विरोध के चुने जा रहे होते हैं. बल्कि कई बार तो विरोधी पक्ष को खरीद- फरोख्त या डराने- धमकाने के जरिये भी निर्विरोध हुआ जाता है.


 पिछले पंचायत चुनाव में टिहरी जिले के दो जिला पंचायत क्षेत्रों से पति- पत्नी निर्विरोध चुन कर आ गए ! क्या सही में दूसरी पार्टी के लोगों ने तक उनको वॉकओवर दे दिया या उन्होंने साम-दाम-दंड-भेद से वॉकओवर ले लिया होगा ? ऐसे निर्विरोध से तो चुनाव होना ही ज्यादा बेहतर और लोकतंत्र की सेहत के लिए भी जरूरी है.


इस बीच कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों के निर्विरोध ग्राम प्रधान बनने की बड़ी चर्चा है. इसमें दो अफसरों - रिटायर्ड कर्नल यशपाल नेगी और उत्तराखंड पुलिस की सेवानिवृत्त आईजी विमला गुंज्याल का मामला काफी चर्चा में है.


कर्नल यशपाल नेगी को पौड़ी जिले के बिरगणा गांव के निर्विरोध प्रधान निर्वाचित हुए हैं. वहीं उत्तराखंड पुलिस की रिटायर्ड आईजी विमला गुंज्याल के पिथौरागढ़ जिले के दूरस्थ गांव गुंजी का निर्विरोध प्रधान निर्वाचित होने की खबर है.


चूंकि दोनों ही रिटायर्ड अफसर हैं, इसलिए दोनों के मामले को एक ही तरह से देखा जा रहा है. लेकिन क्या ये दोनों ही मामले एक जैसे हैं ? मेरी समझ से तो दोनों मामले अलग- अलग हैं. दोनों के रिटायर अफसर होने के अलावा दोनों मामलों में कोई साम्यता नहीं है.


कर्नल यशपाल नेगी लगभग पांच साल पहले सेना से रिटायर हुए और रिटायर हो कर अपने गांव में बस गए. सेना की नौकरी के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में रहने के बाद सर्वाधिक पलायन की मार झेलने वाले जिलों में से एक पौड़ी के अपने पुश्तैनी गांव में बसने का उनका निर्णय उत्तराखंड में चल रहे चलन के हिसाब से धारा के विपरीत बहने जैसा ही था. उत्तराखंड में सरकारों की बेरुखी और नीतिहीनता के चलते गांव तो ऐसे बना दिये गए हैं, जहां मजबूरी के मारे ही रह रहे हैं. इसलिए कर्नल यशपाल नेगी का निर्णय उल्लेखनीय है. वे न केवल गांव में रह रहे हैं, खेती कर रहे हैं बल्कि उत्तराखंड के तमाम सामाजिक- राजनीतिक सरोकारों से जुड़े सवालों पर मुखर भी रहे हैं. 





बेशक उसमें मतभिन्नता की गुंजाइश है क्योंकि वे भी आम लोगों की तरह ही मसीहा टाइप प्रस्तुति वाले लोगों से प्रभावित होते रहते हैं. लेकिन सरोकार और पक्षधरता उनकी है और वे उसे जाहिर करते रहते हैं.


दूसरी तरफ रिटायर्ड आईजी विमला गुंज्याल हैं. वे अभी जुम्मा- जुम्मा दो -एक महीने पहले सेवानिवृत्त हुई हैं. उनके सरोकार या पक्षधरता अभी अस्पष्ट है. जिस राजनीति में वे सेवानिवृत्त होते ही कूद पड़ी हैं, सेवा में रहते, उस राजनीति के बारे में उनकी बहुत अच्छी राय रही हो, यह कम से कम मैं तो नहीं जानता ! 


वे पीपीएस से आईपीएस में प्रोमोट हुई. पुलिस में रहने के दौरान राज्य बनने के 25 सालों में तो वे जनपक्षधर अधिकारी के तौर पर तो कभी चर्चा में नहीं रही. जबकि फील्ड पोस्टिंग तो उनकी रही है, काफी अरसे तक तो वे एक ही जिले- ऊधमसिंहनगर में ही सीओ रही. इस एक जिले के साथ ही ऐसा क्या जुड़ाव था, इसको लेकर उस समय चर्चा होती रहती थी.


यह भी खबर है कि पांच लोग गुंजी में चुनाव लड़ना चाह रहे थे, लेकिन फिर सर्वसम्मति बन गयी.


वैसे गुंजी,पिथौरागढ़ जिले के सीमांत ब्लॉक धारचुला का दूरस्थ गांव है. प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी इस गांव जा चुके हैं. इसे वायब्रेंट विलेज भी घोषित किया जा चुका है.वायब्रेंट विलेज कार्यक्रम तो खुद ही आजीविका के अवसर बढ़ाने समेत तमाम विकास कार्य गांव में करवाने का कार्यक्रम है. अगर ऐसे वायब्रेंट विलेज को भी विकास और सुविधाओं के लिए दो महीने पहले रिटायर हो कर आई अफसर से ही आस है तो यह वायब्रेंट विलेज नाम की योजना की ही हकीकत बयां करता है ! 


-इन्द्रेश मैखुरी


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