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एक देश-एक चुनाव कैसा, अखोड़ी जिला पंचायत क्षेत्र के निर्विरोध निर्वाचन जैसा !

 


देश में एक देश-एक चुनाव की बड़ी चर्चा है. सुनते हैं वो रिटायर्ड मी लॉर्ड भी एक देश-एक चुनाव के पक्ष में हैं, जो अपना एक अदद सरकारी बंगला छोड़ने को तैयार नहीं हैं ! हो सकता है, इस नतीजे पर पहुँचने के लिए पूर्व की तरह वे पूजा गृह में बैठे हों और डाइरैक्ट ऊपर वाले ने उनको आदेश दिया हो कि हे वत्स, इस समय जो देश में सबसे ऊपर बैठे हैं, उनकी ऐसी ही इच्छा है, देश के तो वही देव हैं, इसलिए उनकी इच्छा को ही देव इच्छा जान !


इस बीच उत्तराखंड में लगता है कि इस एक देश-एक चुनाव का मॉडल या कहिए कि एसओपी यानि स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर अर्थात यह कैसे काम करेगा, उसका खाका खींचने की कोशिश की जा रही है ! और यह मॉडल पेश किया जा रहा है, उत्तराखंड में चल रहे त्रिस्त्रीय पंचायत चुनावों में !


इन पंचायतों का जो कानून है- उत्तराखंड पंचायत राज अधिनियम- वो कहता है कि एक व्यक्ति, दो जगह वोटर नहीं हो सकता, शहर का वोटर गांव में चुनाव नहीं लड़ सकता. पर एक्ट जब बना तब लोग नहीं जानते थे ना कि एक देश- एक चुनाव का मॉडल उत्तराखंड में क्रियान्वित होगा और उसका पहला उसूल होगा- एक चुनाव- एक मर्जी और एक मर्जी किसकी ? जाहिर सी बात है- एक चुनाव-एक मर्जी- सत्तापक्ष की मर्जी !


राज्य के चुनाव आयोग ने उनकी मर्जी, पूरी कर दी ! कई जगह नाम वालों को भी चुनाव लड़ने की खुली छूट दे दी !


इसका भी सबसे बेहतरीन मॉडल देखना हो तो वो है- टिहरी जिले की अखोड़ी जिला पंचायत सीट. यहां ज़ोरशोर से ऐलान हो गया कि सोना दीदी एक बार फिर निर्विरोध चुन ली गयी हैं ! पर निर्विरोध चुनी कैसे गईं ? सोना दीदी के अलावा नौ और ने नामांकन भरा.  आठ के पर्चे नामांकन पत्रों की जांच में सही पाये गए, उन्हें रसीद भी दे दी गयी. पर फिर एक चुनाव-एक मर्जी-सत्तापक्ष की मर्जी वाला फॉरमुला लागू हुआ. तब नामांकन पत्रों की जांच का समय बीत जाने के बाद आठ का नामांकन खारिज कर दिया गया !  








प्रशासन ने इस तरह बेहद कुशलता पूर्वक एक चुनाव,एक मर्जी-सत्ता पक्ष की मर्जी- का फॉर्मूला लागू कर दिया. प्रशासन के अफसरों ने संविधान के बदले कमल की फूल की शपथ जो ले ली है ! 

बाकी बचे एक ने भी इस एक चुनाव-एक मर्जी के आगे नतमस्तक होने में ही भलाई समझी ! 


 

सोना दीदी और उनके समर्थक इस फॉर्मूले से निर्विरोध होने पर इस तरह किलक रहे थे, जैसे उन्होंने कोई भारी भरकम किला फतह कर लिया हो ! किलकना बनता भी है, इन्वेस्टमेंट के रिटर्न आने की प्रक्रिया जो शुरू हो गयी है ! वे अकूत धन सम्पदा की स्वामिनी हैं और उनके स्वामी भी ! पर इस तरह सबका पर्चा खारिज करवा कर निर्वरोध होने के अनवरत सिलसिले से प्रतीत होता है कि अपनी धन संपदा पर उनको लेशमात्र भी भरोसा नहीं है ! चुनाव लड़ने में लोग कितना पैसा खर्च करते हैं और उसके बाद भी हार जाते हैं ! मुई पब्लिक का क्या जाता है, जिनका जाता है, वे ही जानते हैं कि कितना दंद-फंद करना पड़ता है, दौलत का पहाड़ खड़ा करने में ! तो ऐसा रिस्क लेना ही क्यूँ ? सुरक्षित रास्ता अपना, एक चुनाव-एक मर्जी-सत्तापक्ष की मर्जी- वाले मार्ग से जाओ, पैसा बचाओ और निर्विरोध हो जाओ !



इस बीच पता चला कि सोना दीदी का नाम तो तीन वोटर लिस्टों में है, दो शहरों की, एक गांव की ! 











उनका नाम तीन में हो या तीन सौ में, जब तक वे एक देश-एक चुनाव का अभियान छेड़ने वाली पार्टी में रहेंगी, तब तक एक चुनाव-एक मर्जी के आधार पर हर चुनाव में सत्तापक्ष की मर्जी से वही एकमात्र प्रत्याशी रहेंगी !


यही एक देश-एक चुनाव का मॉडल है- एक देश-एक चुनाव-एक पार्टी और उस एक पार्टी का सिर्फ एक प्रत्याशी !


 तो बोलो - हैंडसम, धाकड़, हर्र-हर्र, घर्र-घर्र, लोकतंत्र चर्र-चर्र !

-इन्द्रेश मैखुरी   

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