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उत्तरकाशी मस्जिद प्रकरण : इरादा क्या है मुख्यमंत्री जी ?

 


लगता है कि उत्तरकाशी की मस्जिद और उसके बहाने सांप्रदायिक बवाल करने की कोशिश करने वालों के पक्ष में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुल कर उतर आए हैं.


ज्ञातव्य है कि उत्तरकाशी की जामा मस्जिद को लेकर सितंबर के महीने से विवाद खड़ा करने की कोशिश की गयी. शुरुआती गफलत इसमें उत्तरकाशी के जिला प्रशासन द्वारा दिये गए आरटीआई के जवाब से पैदा हुई. बाद में उत्तरकाशी के जिला प्रशासन ने जांच करके विस्तृत प्रेस विज्ञप्ति जारी की और  स्पष्ट किया कि उक्त मस्जिद उत्तर प्रदेश सरकार के मुस्लिम वक्फ विभाग 1984 की अनुसूची दिनांक 20 मई 1987 में उल्लिखित है. लेकिन इस स्पष्टीकरण के आने तक मामले को सांप्रदायिक रंग देने और उसके बहाने उन्माद पैदा करने वाले संगठनों ने मामले को काफी हवा दे दी थी.


24 अक्टूबर को उत्तरकाशी में एक सांप्रदायिक आयोजन हुआ, जिसमें नफरत भरे भाषण दिये गए, उसके बाद निकाली गयी रैली में पुलिस पर पथराव और तोड़फोड़ हुई, जिसमें अन्य लोगों के अलावा पुलिसकर्मी भी चोटिल हुए. 










इस मामले में आठ नामजद और 200 अज्ञात के विरुद्ध उत्तरकाशी की पुलिस द्वारा एफ़आईआर दर्ज की गयी. एफ़आईआर दर्ज करने के अगले ही दिन तीन नामजद लोगों को पुलिस द्वारा निषेधाज्ञा के उल्लंघन के आरोप में गिरफ्तार किया गया और बाद में उक्त एफ़आईआर में दर्ज मुकदमे के चलते भी उन्हें जेल में रखा गया.


यह घटनाक्रम अपनी गति से चल रहा था. उत्तरकाशी में 4 नवम्बर को महापंचायत करने के फैसला भी स्वयंभू हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा वापस ले लिया गया था.


 लेकिन ऐसा लगता है कि सांप्रदायिक विभाजन के सत्ताधारी भाजपा के एजेंडे में खलल पड़ता देख मुख्यमंत्री से रहा नहीं गया और वे स्वयं मैदान में उतर पड़े !


06 नवंबर को उत्तरकाशी के अपर जिलाधिकारी (एडीएम) के पद पर तैनात पीसीएस अधिकारी रजा अब्बास और पुलिस उपाधीक्षक प्रशांत कुमार को हटा कर मुख्यालय से अटैच करने के आदेश जारी कर दिये गए. 







एक मुस्लिम और एक अनुसूचित जाति के अफसर को हटा कर, उत्तरकाशी के मस्जिद प्रकरण में पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने अपने सांप्रदायिक और जातिवादी पूर्वाग्रह का खुला प्रदर्शन किया.









और इतने पर मुख्यमंत्री नहीं ठहरे. उन्होंने ऐलान कर दिया कि उत्तरकाशी की मस्जिद की जांच दोबारा करवायी जाएगी. यह खुलेआम उत्तरकाशी में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने में लगे तत्वों के साथ खड़े होने की कार्यवाही है. मस्जिद की जांच तो उत्तरकाशी का जिला प्रशासन पहले ही करवा चुका है और उसे वैध भी करार दे चुका है.  तमाम अफसर जिन्होंने उक्त मस्जिद की जांच की, वे मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर सिंह धामी के ही नियुक्त किए हुए हैं और मुख्यमंत्री की ओर से ही, मुख्यमंत्री के लिए ही काम करते हैं. तब उनके द्वारा जांच में सही पाई गयी मस्जिद की दोबारा जांच करवाने की घोषणा करके मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? क्या वे इन अफसरों के प्रति अविश्वास जता रहे हैं, इन्हें प्रशासनिक रूप से सक्षम नहीं पा रहे हैं ? तब तो सवाल उन्हीं पर उठता है. जिस मुख्यमंत्री को अपने द्वारा नियुक्त अफसरों पर भरोसा नहीं, उसे तो स्वयं भी सक्षम मुख्यमंत्री या प्रशासक नहीं कहा जा सकता है ! लेकिन अपने राजनीतिक- वैचारिक सांप्रदायिक एजेंडे के आगे पुष्कर सिंह धामी जी को मुख्यमंत्री पद की ऐसी किसी गरिमा और शासकीय नैतिकता व मर्यादा का ख्याल रखने की जरूरत महसूस नहीं हो रही है !


वे उन्मादी-सांप्रदायिक तत्वों का उत्साहवर्द्धन करने के लिए सारी शासकीय नैतिकता, मर्यादा और गरिमा ताक पर रख कर प्रशासन द्वारा जांच के उपरांत सही पाई गयी मस्जिद की पुनः जांच करवाने का फरमान सुना रहे हैं !


और ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री का इशारा उत्तरकाशी की पुलिस भी समझ गयी. न केवल बलवा करने और पुलिस पर पथराव के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भजे गए तीन लोगों को जमानत मिल गयी बल्कि पुलिस ने उन पर संगीन धाराएँ भी हटा ली. हल्द्वानी में वनभूलपुरा में पुलिसकर्मी पथराव में चोटिल हुए तो मुख्यमंत्री पुलिस वालों के साथ खड़े हो गए और उत्तरकाशी में पुलिस पर पथराव हुआ तो मुख्यमंत्री पथराव करने वालों के पक्ष में खड़े हो गए ! दोनों ही बार उन्होंने कानून-व्यवस्था का पक्ष नहीं चुना बल्कि उनके पक्ष चुनने का आधार था कि कहां खड़े होने से मामले का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में सहूलियत होगी !


जब मुख्यमंत्री न्याय, संविधान और कानून का पक्ष चुनने के बजाय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का पक्ष चुनेंगे तो जाहिर सी बात है कि सांप्रदायिक उन्मादी तत्वों का हौसला बढ़ेगा तथा वे बेखौफ हो कर अपनी राजनीति चमकाने के लिए और बढ़-चढ़ कर ऐसी घटनाओं को अंजाम देंगे ! नतीजे के तौर पर प्रदेश अशांत होगा ! लेकिन जनता के मूलभूत सवालों के बजाय सांप्रदायिक उन्माद और तनाव के केंद्रीय विषय बने रहने से सत्ता को बहुत सारे मूलभूत सवालों से मुंह चुराने की सहूलियत रहेगी. प्रदेश में आए दिन होने वाले सांप्रदायिक बवाल का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है- धर्म खतरे में है- का राग अलाप कर सत्ता महफ़ूज़ रखना !


-इन्द्रेश मैखुरी           

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