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मंचीय लफ्फाजी नहीं, विधानसभा में मुंह खोलना था विधायक जी !

 






बीते दिनों देहरादून में मूल निवास और भू कानून के मसले पर एक रैली आयोजित हुई. देहरादून में उसी दिन भाजयुमो द्वारा भी एक रैली आयोजित की गयी.


भाजयूमो द्वारा आयोजित रैली में भाषण देने वालों में जो वक्तव्य चर्चा में है, वो है, धर्मपुर से भाजपा विधायक विनोद चमोली का. अखबार में प्रकाशित ब्यौरे के अनुसार धर्मपुर से दूसरी बार विधायक विनोद चमोली ने कहा कि वे भू कानून और मूलनिवास पर जनता के साथ हैं. अखबारों में प्रकाशित ब्यौरा यह भी बताता है कि विनोद चमोली ने यहां तक कह डाला कि यदि वे पार्टी अनुशासन से बंधे नहीं होते तो मूल निवास और भू कानून वाली रैली में होते !











 धर्मपुर के विधायक विनोद चमोली के उक्त बयान को पहली नज़र में देखने पर ऐसा लगता है कि वे उत्तराखंड की मूलभूत समस्याओं के लिए बेहद संजीदा हैं ! उनके बयान से तो ऐसा लगा कि पार्टी की जंजीरों ने उन्हें मजबूती से न जकड़ा होता तो वे उक्त मुद्दों पर उखाड़- पछाड़ मचा देते ! पर बेचारे विधायक जी बेहद विवश हैं, पार्टी की जंजीरें, उन्हें हिलने नहीं दे रही हैं ! हाय-हाय, विधायक हो कर भी आदमी कितना मजबूर नज़र आता है !











लेकिन क्या ये बयान, वास्तविकता है ? क्या विधायक जी के पास वाकई कोई मंच नहीं था, जहां वे अपने दिल में हिलोरें मारती भावनाओं को बाहर प्रवाहित होने देते ? 

 

इस बात का परीक्षण इस बात से बात से किया जा सकता है कि जब उत्तराखंड की विधानसभा में विनोद चमोली जी की सरकार, उत्तराखंड की ज़मीनों की बेरोकटोक बिक्री का कानून पास कर रही थी, तब वे क्या कर रहे थे ? क्या तब उन्होंने मुंह खोला ?


 04-06 दिसंबर 2018 को उत्तराखंड की विधानसभा का शीतकालीन सत्र हुआ. इस सत्र में उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम,1950 में  संशोधन का विधेयक तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने पारित करवाया. इस संशोधन के तहत उक्त विधेयक में धारा 143(क) जोड़ कर यह प्रावधान किया गया कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए भूमिधर स्वयं भूमि बेचे या फिर उससे कोई भूमि क्रय करे तो इस भूमि को अकृषि करवाने के लिए अलग से कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी पड़ेगी. औद्योगिक प्रयोजन के लिए खरीदे जाते ही उसका भू उपयोग स्वतः बदल जाएगा और वह -अकृषि या गैर कृषि हो जाएगा.


इसके साथ ही उक्त अधिनियम में धारा 154(2) जोड़ी गयी, जिसके जरिये पर्वतीय क्षेत्रों में,भूमि खरीद की इस सीमा को औद्योगिक प्रयोजन के लिए पूरी तरह खत्म कर दिया गया.इस तरह से पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि भूमि की बेहिसाब खरीद का रास्ता सरकार ने इस अधिनियम को पारित करवा कर खोल दिया है.


जिस समय बड़े पूँजीपतियों के लिए पहाड़ का पहाड़ खरीदना सुगम बनाने के लिए यह कानून उत्तराखंड की विधानसभा में पारित किया गया, उस समय विनोद चमोली विधानसभा के सदस्य थे. कोई रिकॉर्ड ऐसा नहीं बताता कि विनोद चमोली जी ने पहाड़ की ज़मीनों की इस तरह बेहिसाब बिक्री पर कोई आपत्ति जताई हो. केवल केदारनाथ के तत्कालीन विधायक मनोज रावत ही उक्त संशोधनों के खिलाफ बोले थे.  


2022 में विधानसभा का चुनाव हुआ. विनोद चमोली पुनः भाजपा के टिकट पर जीत कर विधानसभा पहुंचे.


2018 में ज़मीनों की बेहिसाब बिक्री का जो कानून पारित हुआ था, उसमें एक प्रावधान यह था कि यदि भूमि जिस प्रयोजन के लिए ली गयी है, उस प्रयोजन में उपयोग नहीं की जाएगी तो वह जमीन वापस ले ली जाएगी.


 जून 2022 में विधानसभा का सत्र हुआ हुआ और पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने भूमि के प्रयोजन की बाध्यता वाले प्रावधान को कानून में संशोधन करवा कर खत्म कर दिया.


उस समय भी विनोद चमोली विधानसभा के सदस्य थे और उस समय का भी ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि उन्होंने ज़मीनों की लूट को सुगम बनाने के लिए पारित किए गए इस संशोधन पर कोई आपत्ति दर्ज की हो !


विधानसभा में पहाड़ की सारी ज़मीनें बेचने के कानून पर जब मुंह नहीं खोला तो रैली में भू कानून के समर्थन का भाषण दे कर किसको साधना चाहते थे, विनोद चमोली जी ? ज़मीनें बेचने के लिए विधानसभा में पास किए जा रहे कानून पर तो मुंह खोलते तो लगता कि आप वाकई उत्तराखंड के हितैषी हैं. लेकिन विधानसभा में उत्तराखंड की ज़मीनें बेचने का कानून पारित कराने के लिए हाथ उठाएंगे और मंच पर ज़मीनें बचाने की चिंता जताएंगे, ये दोनों काम एक साथ तो नहीं हो सकते विनोद चमोली जी ! पर आप कर भी क्या सकते हैं, यह दोहरापन ही तो भाजपा का असली चाल-चरित्र-चेहरा है !


-इन्द्रेश मैखुरी   

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