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निदेशक वाडिया : सारा साल घूमने में बिता दिया !

 






वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉंजी, देहरादून, भूगर्भ के क्षेत्र का एक प्रतिष्ठित संस्थान है. आम तौर पर वाडिया इंस्टीट्यूट की चर्चा भूगर्भ संबंधी मामलों में ही होती है. कहीं कोई आपदा की स्थिति हो, किसी स्थान का भूगर्भीय सर्वेक्षण करना हो तो वाडिया इंस्टीट्यूट को उसके लिए सर्वाधिक विश्वसनीय संस्थान माना जाता है.


लेकिन वर्तमान में वाडिया इंस्टीट्यूट की चर्चा उसकी वैज्ञानिक उपलब्धियों के लिए नहीं हो रही है बल्कि ऐसे कारणों से हो रही है, जो किसी भी ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक संस्थान के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता है.


एक आंकड़ा सामने आया है कि वाडिया इंस्टीट्यूट के वर्तमान निदेशक ने साल का बड़ा हिस्सा टूर में ही बिता दिया.


देहरादून में रहने वाले अंग्रेजी पत्रकार राजू गुसाईं ने वाडिया इंस्टीट्यूट से 2010 से अब तक निदेशकों के आधिकारिक दौरों के बारे में सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगी.










सूचना अधिकार में प्राप्त जानकारी के अनुसार वाडिया इंस्टीट्यूट के वर्तमान निदेशक डॉ. कालाचंद साईं ने वर्ष 2022 में 30 आधिकारिक दौरे किए और वे 138 दिन दौरे पर रहे. सोचिए 138 दिन ये जनाब उत्तराखंड से बाहर दौर पर रहे. सौ के करीब साप्ताहिक एवं अन्य अवकाश की संख्या हो जाती है. तब सवाल ये है कि ये जनाब अपने संस्थान में कितने दिन रहे होंगे ?










 

और 2022 ही इकलौता साल नहीं है, जब ये इतने दौरों पर रहे. सूचना अधिकार में प्राप्त जानकारी के अनुसार 2019 में डॉ.कालाचंद साईं 109 दिन दौरे पर रहे !









यह भी रोचक है कि उनके पूर्ववर्ती एक निदेशक डॉ एके गुप्ता पाँच साल में 226 दिन दौरे पर रहे और डॉ.कालाचंद साईं के 2019 और 2022 के दौरे के दिनों की संख्या का योग बैठता है- 247 दिन !


हैरत की बात यह है कि साल भर दौरे पर रहने के बाद भी वाडिया इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ.कालाचंद साईं उत्तराखंड के किसी आपदाग्रस्त क्षेत्र में तो नज़र नहीं आया. जोशीमठ में इतने बड़े भू धँसाव की परिघटना में वे नहीं देखे गए. वाडिया इंस्टीट्यूट एक वैज्ञानिक संस्थान है, यहाँ का निदेशक कोई सेल्समैन तो है नहीं कि माल बेचने के लिए उसे साल भर दौरे पर रहना पड़ता हो.


यह भी प्रश्न है कि जिस संस्थान का निदेशक साल के अधिकांश दिन दौरे पर हो, वहां काम के प्रति दायित्व का बोध और कार्यकुशलता का वातावरण कैसे बनेगा ?


हाल के दौर में संस्थानों और संस्थाओं का जिस तरह का क्षरण हुआ है, उससे कोई भी संस्थानों कब तक और कैसे बचा रह सकता है ? देश के सर्वोच्च पद से लेकर नीचे तक सब पदों का प्रोटोकॉल और सुख-सुविधाएं तो भोगना चाहते हैं, लेकिन जवाबदेही कोई नहीं लेना चाहता. सरकार सुविधाओं का लाभ लेते हुए बेरोकटोक सैर-सपाटा करके पदारूढ़ रहने के वक्त को खुशी-खुशी मजे में काटा जा सकता है. लेकिन इसकी कीमत भी अंततः आम जन को ही चुकानी पड़ेगी !


-इन्द्रेश मैखुरी

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