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युद्ध के घावों पर हल्का सा मरहम

 







बीते दिनों खबर आई कि ज्योति नैनवाल सेना में अफसर बन गयी हैं. वे 2018 में कश्मीर में आतंकवादी से लड़ते हुए घायल होने के बाद शहीद हुई नायक दीपक नैनवाल की पत्नी हैं.









बीते दिनों ही पुलवामा हमले में शहीद हुए मेजर विभूति ढौंढियाल को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. गौरतलब है कि शहीद मेजर विभूति ढौंढियाल की पत्नी निकिता कौल ढौंढियाल भी सेना में अफसर बन चुकी हैं.






यह बेहद कठिन सफर रहा होगा, ज्योति के लिए भी और निकिता के लिए भी. जहां ज्योति को दो छोटे बच्चों की परवरिश करनी थी,वहीं दस महीने पहले ही प्रेम विवाह करने वाली निकिता ने अपने प्रेम को खो दिया. ज्योति के घर में सेना का माहौल था क्यूंकि उनके ससुर चक्रधर नैनवाल भी गढ़वाल राइफल्स से सेवानिवृत्त ऑनरेरी कैप्टेन रहे हैं. लेकिन फिर भी एक घरेलू महिला, जिसके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, उन के लिए यह एक कठिन चुनौती रही होगी. इस चुनौती का मुक़ाबला करते हुए ज्योति वहां से शुरू कर रही हैं,जहां से उनके ससुर ने सेना का अपना सफर खत्म किया था. वे सेना से ऑनरेरी कैप्टेन रिटायर हुए, ज्योति सेना में लेफ्टिनेंट से ऊपर को बढ़ेंगी.


  हृदय पर आघात पहुंचाने वाली और एक तरह से जीवन को छिन्न-भिन्न करने वाली घटनाओं के बाद सब कुछ समेटते हुए उठ खड़े होना कोई साधारण बात नहीं है. व्यक्ति के जीवन की धुरी अचानक खिसक जाये तो उसके लिए खड़ा होना भी दुश्वार होता है.  

  

इस कठोर आघात के बावजूद यदि ये युवा महिलाएं न केवल पुनः उठ खड़ी हुईं बल्कि सेना में अफसर के तौर पर भी शामिल हो गयी तो निश्चित ही यह इनके दृढ़ हौसले और हिम्मत का परिचायक है.


इस तरह देखें तो ज्योति नैनवाल का सेना में अफसर होना या निकिता कौल ढौंढियाल का सेना में अफसर होना, उन घावों पर छोटा सा मरहम हैं, जो युद्ध या अघोषित युद्ध ने उनके जीवन पर लगाए हैं.


 देश की रक्षा करते हुए अपने जीवन साथियों को खोने के बाद सेना में स्वयं शामिल हो कर इन युवा महिलाओं ने देश के प्रति अपने फर्ज को निभाने के लिए स्वयं को भी प्रस्तुत किया है,यह श्लाघनीय है.


लेकिन राजनीतिक नेतृत्व को भी अपनी ज़िम्मेदारी निबाहनी चाहिए. उसे सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह युवा सैनिकों को असमय काल-कवलित न होना पड़े. युद्ध जैसी स्थितियाँ न बने और बिना युद्ध के भी सैनिकों की शहादत का सिलसिला रुके,यह तो राजनीतिक नेतृत्व को सुनिश्चित करना होगा. सीमाओं की रक्षा,अपने प्राणों की कुर्बानी दे कर भी करना,यदि सैनिकों का कर्तव्य है तो सैनिकों का जीवन सुरक्षित रखना,यह राजनीतिक नेतृत्व की ज़िम्मेदारी है. ज्योति और निकिताएं अफसर बनें, लेकिन विभूतियों और दीपकों को असमय बुझना न पड़े, यह सुनिश्चित करना राजनीतिक नेतृत्व के लिए चुनौती भी है और कार्यभार भी. इसी कसौटी पर उसकी परख होनी चाहिए.


-इन्द्रेश मैखुरी

 

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1 Comments

  1. देश की सुरक्षा के साथ अपनी भी हिफाज़त ज़रूरी है।

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