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कश्मीर को लेकर बड़बोले दावे और खोखली हकीकत







कश्मीर को लेकर केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा लगातार काफी बड़बोले दावे करती रही है. नोटबंदी के समय कहा गया कि नोटबंदी आतंकवाद की कमर तोड़ देगी. पाँच साल बाद हालत यह है कि प्रधानमंत्री समेत भाजपा का कोई बड़ा नेता नोटबंदी का नाम तक अपनी जुबान पर नहीं लाता.


फिर धारा 370 समाप्त की गयी. बरसों-बरस भाजपा 370 के खिलाफ प्रचार ऐसे करती रही जैसे वह संविधान का अनुच्छेद न हो कर साक्षात कोई बम-पिस्तौल हो. वे उसे कश्मीर के भारत से अलगाव का कारण बताते थे. हकीकत यह थी की धारा 370 कश्मीर को भारत से जोड़ने वाला पुल था.  धारा 370 को समाप्त करने का भी खूब बड़े-बड़े दावे किए गए, जिसमें आतंकवाद के समाप्त होने का भी दावा था.


लेकिन ऐसा न होना था, न हुआ. बल्कि इसके उलट 1989 के बाद, पहली बार, बीते अक्टूबर महीने में बड़े पैमाने पर हिंदुओं और सिखों की हत्या की गयी. प्रवासी मजदूरों को कश्मीर छोड़ कर भागना पड़ा.


सीआरएफ़पी ने जो ताजा आंकड़ा जारी किया है, उसके मुताबिक इस वर्ष मारे गए आतंकियों में से अस्सी प्रतिशत स्थानीय हैं. सीआरपीएफ़ के आंकड़े के अनुसार सक्रिय आतंकवादियों में से भी बड़ी संख्या स्थानीय आतंकवादियों की है.


कश्मीर में सत्ता और दमन का ढर्रा बदलता नहीं है. 22 नवंबर को कश्मीर के चर्चित मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज़ को यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया. परवेज़ दशकों से कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों के दस्तावेजीकरण का काम करते हैं. इससे पहले 2016 में उन्हें जन सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत तब गिरफ्तार कर लिया गया था,जबकि वे जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की बैठक में शामिल होने के लिए जाने वाले थे.







कश्मीर में जो दमन का मॉडल है,उसी को देश के अन्य स्थानों पर भी मोदी सरकार ने सरकार विरोधी स्वरों को खामोश करने के लिए लागू किया है. यूएपीए और राजद्रोह जैसी धाराएँ राजनीतिक मतभिन्नता रखने वालों पर जम कर इस्तेमाल की गयी हैं. राजद्रोह के बेजा इस्तेमाल पर तो उच्च न्यायालय भी टिप्पणी कर चुका है.


कुल मिला कर कश्मीर के मामले में केंद्र का जो भी दावा हो,लेकिन उन दावों की हकीकत बहुत खोखली है. कश्मीर जैसे जटिल मसले को हल करने के लिए अत्याधिक संवेदनशील हुकूमत चाहिए. जो हुकूमत अपने नागरिकों को मतभिन्नता के आधार पर अपना शत्रु समझती हो, उससे किसी संवेदनशील और जटिल मसले के हल की अपेक्षा की भी कैसे जा सकती है !


-इन्द्रेश मैखुरी   

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2 Comments

  1. ये हमेशा हवा में बातें करते रहे। कश्मीर मामले में जब हम कह रहे थे, गलत कर रहे हो, तब इनके दो रुपये वाले प्रचारक हमें गालियां देते थे।

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  2. काश्मीर में आतंकवाद का दमन करने के लिए स्थानीय लोगों का विश्वास जितना ज़रूरी है।

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