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आपदा पर्यटन : यह तौर बदलता नहीं !

 







उत्तराखंड में हाल में आई विनाशकारी आपदा के हरे जख्मों के बीच एक खबर ने बरबस अपनी ओर ध्यान खींचा. खबर आपदा का मार से त्रस्त चंपावत से थी.






खबर के अनुसार आपदा राहत के लिए लगाई गयी एयर एंबुलेस का उपयोग नेताओं को ढोने के लिए भी किया गया. खबर के अनुसार बीते 23 अक्टूबर को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का जब चंपावत दौरा हुआ तो टनकपुर में सड़क बंद थी. इसलिए मुख्यमंत्री के दौरे के मौके पर उपस्थित रहने के इच्छुक चंपावत के  विधायक कैलाश गहतोड़ी और अन्य भाजपा नेताओं को एयर एंबुलेस के रूप में प्रयोग किए जा रहे हेलीकाप्टर से टनकपुर से चंपावत पहुंचाया गया.


इस आपदा पर्यटन से 2013 में भीषण केदारनाथ आपदा के बीच के ऐसे किस्से सहसा याद आ गए.


केदारनाथ आपदा के बाद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत  हेलीकाप्टर ले कर आपदा पर्यटन करते रहे. वे न सांसद थे, न विधायक पर फिर भी एक हेलीकाप्टर लेकर यहाँ-यहाँ उड़ते रहे. आज तक ने वह खबर दिखाई थी. मैंने  भी उस समय मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर में इस पर टिप्पणी लिखी थी, जिसका शीर्षक था- फुर्र-फुर्र उड़त हमारो लल्ला ! 

 

जब विजय बहुगुणा के पुत्र ऐसा कर रहे थे तब पिता-पुत्र की यह जोड़ी कॉंग्रेस में थी, आज भाजपा में है. भाजपा-कॉंग्रेस वाले आपस में तय कर लें कि उनके इस कृत्य को जायज ठहराने का जिम्मा किसका है !


इसी तरह आपदा प्रभावित जिले की एक विधायक के बारे में 2013 में चर्चा थी कि वे देहरादून में जॉलीग्रांट हवाई अड्डे से हेलीकाप्टर से अपने जिले पहुंची. वहां  उन्हें पता चला कि उनका पर्स तो देहरादून ही छूट गया.हवाई जहाज देहरादून वापस जा कर उनका पर्स लेकर आया,तब उन्हें चैन मिला.  सारा संघर्ष, इस दल से उस दल की कूदाफांदी ही पर्स को भारी-भरकम बनाए रखने के लिए हो रही है तो उसे भला कैसे छोड़ा जा सकता था !


ऐसे ही आपदा क्षेत्र में कैंप किए अफसर के बारे में उस समय चर्चा था कि उनकी वर्दी धुलने और प्रेस होने हेलीकाप्टर से देहरादून जाती थी.


बीते दिनों खुद लोहाघाट के भाजपाई विधायक पूरन फर्त्याल ने आपदा प्रबंधन मंत्री धन सिंह रावत के सामने ही उन्हें खरी-खोटी सुनाते हुए कहा कि वे केवल वहीं जा रहे हैं, जहां हेलीकाप्टर उतर सकता है. सत्ता पक्ष के विधायक के आरोप के आइने में प्रदेश में आपदा के समय में सरकार के संचालकों की स्थिति समझी जा सकती है.


 कुल जमा स्थिति यह है कि 2013 से लेकर 2021 तक आपदा से सबक तो कुछ नहीं सीखा गया पर आपदा पर्यटन में कोई कमी नहीं आने दी गयी. प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने बीते दिनों कहा कि आपदा में तो साँप-नेवले एक ही साथ बहते हैं. उत्तराखंड में तो वे आपदा पर्यटन कर रहे हैं, हुजूर !


-इन्द्रेश मैखुरी  

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1 Comments

  1. 'आपदा में 'साँप' व 'नेवले' एक साथ बहते हैं' क्या ख़ूब कहा।

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