उत्तराखंड में तबादले यानि ट्रांस्फर
और वह भी शिक्षा विभाग में ट्रांस्फर, राज्य बनने के बाद से
चर्चा का विषय रहे हैं. प्रदेश बनने के बाद शिक्षा व्यवस्था पर संभवतः उतनी बहस नहीं
हुई होगी, जितनी शिक्षा विभाग के तबादले,सुगम-दुर्गम आदि पर होती रहती है.
कहने को 2017 में भाजपा ने त्रिवेन्द्र रावत के मुख्यमंत्री
रहते एक तबादला कानून भी बनाया, लेकिन मजाल है कि वो कानून कभी कागज
से जमीन पर उतरा हो !
इस बार कोरोना के चलते तबादला सत्र शून्य होने की घोषणा
उत्तराखंड सरकार ने बीते दिनों कर दी. लेकिन तबादला और उसकी प्रक्रिया तो सामान्य शिक्षक-कर्मचारियों
के लिए है, पहुँच वालों के लिए तबादला न होगा तो अटैचमेंट होगा, प्रतिनियुक्ति होगी !
पुरानी कहावत है-जहां चाह,वहाँ राह ! पर
नयी कहावत होनी चाहिए- जहां जुगाड़, वहां अटैचमेंट, जहां जुगाड़, वहां प्रतिनियुक्ति !
देखिये ना, अभी चंद रोज बीते हैं, सरकार द्वारा तबादला सत्र शून्य होने की घोषणा को. शिक्षक और उनके संगठन लगे
हैं बयान देने पर कि तबादले तो होने चाहिए,खास तौर पर जो जरूरतमंद
हैं, उनके तो होने ही चाहिए. पर कहीं कोई सुनवाई नहीं.
और इधर अचानक खबर आई कि रुद्रप्रयाग के राजकीय इंटर कॉलेज, कांडा भरदार में सहायक अध्यापक,एलटी (कला) के पद पर
तैनात शिक्षक को श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, बादशाही थौल, टिहरी में सहायक कुलसचिव पद पर प्रतिनियुक्ति के द्वारा तैनात कर दिया गया
है.
कला वाले इन गुरुजी ने इतनी कलाकारी तो दिखाई कि ये माध्यमिक
शिक्षा में सहायक अध्यापक से सीधे उच्च शिक्षा में विश्वविद्यालय के सहायक कुलसचिव
पद पर जा बैठे !
गुरुजी भले ये कला वाले हों और कितने ही कलाकार क्यूँ
न हों, लेकिन इतनी कलाकारी ये अकेले तो कर नहीं सकते. जाहिर सी बात है कि किसी ऊंची
कुर्सी पर बैठे व्यक्ति तक इनकी पहुँच-पहचान होगी. इसलिए इनके लिए विशेष तौर पर यह
कुर्सी ढूँढी गयी होगी.
एक जमाने में प्रतिनियुक्ति बड़े सम्मान की बात होती थी.
अखबार में उसकी विज्ञप्ति निकलती थी.साक्षात्कार की प्रक्रिया होती थी. लगभग समकक्ष
या थोड़ा कम पद वाले ही प्रतिनियुक्ति के लिए अर्ह यानि योग्य होते थे. लेकिन उत्तराखंड
में सरकारी तंत्र ने अपने चहेतों के हितों के लिए प्रतिनियुक्ति को बैकडोर एंट्री का
जुगाड़ बना दिया है.
तबादला सत्र शून्य होने के बाद दैनिक अमर उजाला में कुछ
शिक्षकों की व्यथा प्रकाशित हुई. कैंसर पीड़ित
शिक्षक हैं, जो इलाज के लिए देहरादून के आसपास तबादला चाहते हैं,विभाग को सारे कागजात सौंप दिये पर कोई सुनवाई नहीं ! क्यूँ ? क्यूंकि उनके पास सहायक अध्यापक से सहायक कुलसचिव की कुर्सी पर छलांग लगा
सकने वाली “कला” जो नहीं है !
और यह विश्वविद्यालय जिनमें इन “कला” वाले गुरुजी को सहायक
कुलसचिव बनाया गया है, यह भी बड़ा कलाकार विश्वविद्यालय है !
अभी कुछ दिन पहले यहाँ तैनात कुलसचिव पर आरोप लगा कि उन्होंने अपना इंक्रीमेंट खुद
ही बढ़ा दिया और वे कुलपति को बताए बगैर, सरकारी गाड़ी समेत गायब
रहते हैं. उनके कारनामों की शिकायत करते हुए कुलपति ने कुलसचिव को उत्तराखंड शासन को
वापस लौटा दिया. तो प्रतिनियुक्ति पर जो सज्जन, इस विश्वविद्यालय
को मिले हैं, वे क्या शासन का रिटर्न गिफ्ट हैं, विश्वविद्यालय को ?
कुछ लोगों के मन में स्वाभाविक प्रश्न हो सकता है कि आदमी
इतनी कलाकारी कर के रुद्रप्रयाग के दूरस्थ इलाके से टिहरी में बादशाहीथौल क्यूँ जाएगा
? यह गुत्थी भी सुलझा देते हैं. पहला तो यह कि बादशाहीथौल
से देहरादून चंद घंटे का रास्ता है. दूसरा यह कि है तो श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, बादशाहीथौल, टिहरी में पर इसका एक कैंप
कार्यालय, देहरादून में दून विश्वविद्यालय के परिसर में भी है.
तो जो सहायक अध्यापक से सीधा सहायक कुलसचिव
हो सकता है, वह देहारादून के कैंप कार्यालय में भी तो रह सकता
है ! वैसे भी उनके प्रतिनियुक्ति पत्र की पहली पंक्ति में लिखा है कि उनकी प्रतिनियुक्ति
“श्रीदेव सुमन विश्वविद्यालय, बादशाहीथौल, टिहरी के शासकीय कार्यों के सुचारु रूप से सम्पादित किए जाने हेतु ” की जा रही है. शासकीय कार्य
कहाँ संपादित होंगे-जहां शासन बैठेगा अर्थात देहरादून में !
तो भाई दुर्गम वालो, तबदला सत्र के
शून्य होने पर रुदन-क्रंदन न मचाओ, प्रतिनियुक्ति जैसी जुगाड़
की “कला” में महारत हासिल करो, वरना तबादला
सत्र से ज्यादा तबादला संभावना शून्य है !
-इन्द्रेश मैखुरी
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