ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग, रुद्रप्रयाग
के कुछ पहले नरकोटा के निकट लगभग तीन दिन बाद खुल सका. 31 मई की शाम यह बंद हो गया
था. कहा गया कि 01 जून को दोपहर 12 बजे तक राजमार्ग खुल जाएगा. 01 जून को कहा गया
कि काम तो चल रहा है,शायद
शाम 6 बजे तक सड़क खुल जाये. लेकिन अंततः सड़क 02 जून की शाम को जा कर हल्के वाहनों
के लिए खोली जा सकी.
इस सड़क पर श्रीनगर(गढ़वाल) से रुद्रप्रयाग की दूरी
लगभग 30 किलोमीटर है. जो वैकल्पिक रास्ता श्रीनगर(गढ़वाल) से रुद्रप्रयाग की तरफ
आने के लिए उक्त राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने की दशा में प्रयोग किया जा रहा था,वह था बड़ियारगढ़-सौराखाल-तिलवाड़ा मोटर मार्ग. इसमें रुद्रप्रयाग शहर और चमोली जिले की तरफ जाने
वाले जवाड़ी पहुँचने के बाद नीचे रुद्रप्रयाग नगर से लगे हुए जवाड़ी बाईपास पर उतर सकते
हैं. जहां राष्ट्रीय राजमार्ग से श्रीनगर से रुद्रप्रयाग लगभग एक घंटे में पहुँच
जाते हैं,वहीं इस मार्ग से यह दूरी लगभग सवा सौ किलोमीटर हो
गयी,जो तकरीबन चार घंटे में पूरी होती है.
राष्ट्रीय राजमार्ग के बंद होने की दशा में इस मार्ग
पर एक घंटे की यात्रा को चार घंटे में पूरा करने के दौरान ही ख्याल आया कि हम तो
इस समय महामारी के दौर से गुजर रहे हैं. ऐसे में किसी को आपातकालीन स्थिति में
चमोली या रुद्रप्रयाग जिलों से श्रीनगर(गढ़वाल) स्थित मेडिकल कॉलेज ले जाने की
आवश्यकता पड़ी हो तो ? 01 मई को उस मार्ग पर गुजरते हुई कम
से कम पाँच-छह एंबुलेंस दिखी थी. हो सकता है कि ये एंबुलेंस इसी इलाके के मरीजों
को ले जा रही हों,लेकिन किसी एक भी मरीज को चमोली या
रुद्रप्रयाग जिले के ऐसे इलाकों से लाया जा रहा हो,जिसे
तत्काल चिकित्सीय देखरेख की आवश्यकता हो तो एक घंटे के सफर का, राष्ट्रीय राजमार्ग बंद होने के चलते, चार घंटे के
सफर में बदल जाना तो ऐसे मरीजों के लिए जानलेवा हो जाएगा !
01 मई को जिस राष्ट्रीय राजमार्ग के पहले, दोपहर बारह
बजे तक और फिर शाम छह बजे तक खुलने की बात कही गयी थी,आखिरकार वह उस दिन नहीं खुला. अगले दिन अखबार में खबर छपी की लोक निर्माण
विभाग के इंजीनियर ने सड़क न खुल पाने के दोष निवारण के लिए धारी देवी मंदिर में
पूजा अर्चना की.
यह सीधे-सीधे अपने नकारेपन और प्रकृति के बेतरतीब
दोहन को देवता की आड़ में छुपाने की कोशिश है. पहाड़ बेतरतीब तरीके से काट रहा है,ठेकेदार,इंजीनियर और सरकारों का गठजोड़ और सड़क
खुलवानी हो तो जाएँगे मंदिर में ! क्या कमाल है ! जिस समय उनकी मशीनें पहाड़ को
रौंद रही होती हैं,उस समय वे स्वयं को ही ईश्वरीय शक्तियों
से लैस समझ रहे होते हैं, जो किसी भी चीज का ध्वंस कर सकते
हैं,किसी को भी मटियामेट कर सकते हैं. लेकिन इस बेतरतीब
अवैज्ञानिक कटाई और तोड़फोड़ के दुष्परिणाम जैसे ही सामने आने लगें तो फौरन कातर
मुद्रा में मंदिर चले जाओ और न केवल जाओ बल्कि उस जाने का प्रचार भी करो ! ऐसा
इसलिए करो ताकि पहाड़ों को जिस बेदर्दी और अवैज्ञानिक तरीके से तोड़ा-फोड़ा जा रहा है,उसे देवता के दोष का मुलम्मा चढ़ा कर ढका जा सके. यह सरासर पाखंड है,लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए रचा गया प्रपंच है.
जिस सड़क की यहां चर्चा हो रही है,वह केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना है. 2017 के उत्तराखंड
विधानसभा चुनावों के पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देहरादून आए तो उन्होंने
इसकी घोषणा की. उन्होंने इसे “ऑल वैदर रोड” कहा था. फिर बाद में गुपचुप तरीके से
इसका नाम - चार धाम परियोजना- कर दिया गया.
सरकार समर्थक इस सड़क को विकास की इबारत के तौर पर ऐसे
पेश करते हैं जैसे कि कोई नयी सड़क बन रही हो ! रोचक यह कि इस पहले से बनी हुई सड़क
को ही चौड़ा करने के लिए भुवन चंद्र खंडूड़ी की वाहवाही की गयी. उन्हीं के समय
चौड़ीकरण जैसे अजीबोगरीब और बेहूदा शब्द का खूब इस्तेमाल हुआ. अब इसी पहले से बनी
और “चौड़ीकरण” की प्रक्रिया से गुजर चुकी सड़क को पुनः चौड़ा करने को पहाड़वासी सबसे
बड़ा हासिल समझें,यह केंद्र सरकार और उसके समर्थकों की
अपेक्षा है.
वे हमको जो समझाना चाहें पर वे खुद, इस सड़क के काम के बारे में क्या समझते हैं ? सरकार
साफ तौर पर कह रही है कि यह सड़क के सुधार और उसे चौड़ा करने का काम है. केंद्रीय
सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने 04 फरवरी 2021 को लोकसभा में सड़क के काम को इसी
रूप में बताया. सड़क परिवहन मंत्री के अनुसार 825 किलोमीटर सड़क है,जिसके सुधार और चौड़ा किए जाने का काम 12072 करोड़ रुपये में किया जाना है.
इसमें यह रोचक है कि सड़क तो 825 किलोमीटर तक चौड़ी
करनी है,लेकिन यह एक परियोजना नहीं है बल्कि इसे 53 अलग-अलग परियोजनाओं में बांटा
गया है. ऐसा क्यूँ ? ऐसा इसलिए कि बड़ी परियोजनाओं के लिए जो
अनिवार्यता है कि उन पर काम शुरू करने से पहले- पर्यावरण प्रभाव आकलन(ईआईए) करवाना
होता है,उससे बचा जा सके. है ना हैरत की बात 825 किलोमीटर
सड़क चौड़ा करने के लिए दसियों हजार पेड़ काटे जा चुके हैं,पहाड़
मटियामेट किए जा रहे हैं और पर्यावरण पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा,इसका कोई आकलन नहीं,कोई अध्ययन नहीं ! सड़क चौड़ा करने
की इस विशाल परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन न हो,इसका इंतजाम किसने किया-खुद केंद्र सरकार ने !
इस सड़क के मामले में उच्चतम न्यायालय में सिटीजन्स पर
ग्रीन दून द्वारा दाखिल याचिका पर अदालत ने इसके समग्र प्रभावों का अध्ययन करने के
लिए उच्च अधिकार प्राप्त समिति गठित
करने का आदेश जारी किया. अदालत के 08 अगस्त 2018 के आदेश के अनुपालन में केंद्रीय
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने डॉ.रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी.
सड़क की चौड़ाई को लेकर भले ही उक्त कमेटी में दो मत थे,लेकिन इस बात को लेकर कोई मत भिन्नता नहीं थी कि इस परियोजना को
अवैज्ञानिक और अनियोजित तरीके से लागू करने के कारण,इसने
हिमालय के परिस्थितिक तंत्र को पहले ही बहुत नुक्सान पहुंचा दिया है. अवैज्ञानिक
निर्माण, अनियोजित मलबा निस्तारण और पहाड़ों की तीव्र कटान ने
नए भूस्खलनों और संबंधित आपदाओं को निमंत्रण दिया. समिति ने पाया कि एनएच 125 पर
ही 174 ताजा कटे ढलानों में से 102 भूस्खलन संभावित हैं. ऐसी ही स्थिति अन्य जगहों
पर है.
उच्च अधिकार प्राप्त समिति के उक्त निष्कर्ष, इस सड़क पर मच रही तबाही से सही सिद्ध हो रहे हैं. लेकिन उनकी चिंताओं पर
गौर करने के बजाय स्वयं केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने लोकसभा में कमेटी में मत
भिन्नता के नाम पर इसका उपहास उड़ाना ज्यादा बेहतर समझा.
सड़क बंद करने पर जो इंजीनियर देवताओं की दुहाई दे रहे हैं,वे सड़क निर्माण में वैज्ञानिक और पर्यावरणीय पहलुओं को ध्यान में रखें तो यह नौबत ही ना आए. सिर्फ राजनीतिक आकाओं की जी-हुज़ूरी और दरकते पहाड़ों में मुनाफा तलाशने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग को मलबा समझ कर दफन कर दोगे तो मंदिर जाने का नाटक सुर्खियां भले दिला देगा पर तबाही से बचने का रास्ता न मिलेगा !
-इन्द्रेश
मैखुरी
1 Comments
आज तक समझ नहीं आया ये चौड़ी सड़क किसे चाहिए??
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