कोरोना की दूसरी लहर से निपटने के प्रति केंद्र की
मोदी सरकार एक तरह से उदासीन रवैया अपनाए रही.
उसने कोई फैसला लेने के बजाय गेंद को राज्याओं के पाले में सरका देना ही श्रेयस्कर
समझा. उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र सरकार से जो सवाल पूछे,उनसे भी स्पष्ट होता है कि केंद्र सरकार महामारी की इस आपातकालीन घड़ी में अपनी
जिम्मेदारियों से किनाराकशी ही करती रही है.
फोटो साभार : उच्चतम न्यायालय वैबसाइट
कोरोना के मामले में स्वतः संज्ञान याचिका पर उच्चतम न्यायालय
में न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एल.नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एस.रविंद्र भट की खंडपीठ ने सुनवाई की.
वैक्सीन की खरीद के लिए राज्यों द्वारा अंतरराष्ट्रीय
टेंडर आमंत्रित करने के मामले पर टिप्पणी करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा “हमारे सामने
परिदृश्य है, जहां विभिन्न नगर निगम और राज्य वैश्विक टेंडर जारी
कर रहे हैं. हम जानना चाहते हैं कि क्या यह सरकार की नीति है कि हर नगर निगम,हर राज्य को वैक्सीन हासिल करने के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया गया है ! उच्चतम
न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि “आज के दिन तक इसकी व्याख्या करने वाला कोई नीति दस्तावेज़(पॉलिसी
डॉक्यूमेंट) हमने नहीं देखा. हम फाइलें देखना चाहते हैं. इसके
पीछा का तर्क जानना चाहते हैं. यह कहना कि केंद्र कम कीमत पर वैक्सीन खरीदेगा और निर्माताओं
को कीमत अपनी मर्जी से तय करने की छूट है.....हम इसके पीछे का तर्क जानना चाहते हैं.”
खंडपीठ ने कहा कि “भारत के संविधान का अनुच्छेद 1 कहता
है कि भारत राज्यों का संघ है. जब संविधान कहता है तो हम संघीय शासन को मानते हैं,तो भारत सरकार को वैक्सीन खरीदनी होगी और उसका वितरण करना होगा. राज्यों को
झटका झेलने के लिए उनके हाल पर नहीं छोड़ा जा सकता.”
उच्चतम न्यायालय ने यह भी पूछा कि केंद्र सिर्फ 45 वर्ष
से ऊपर वालों को ही मुफ्त वैक्सीन क्यूँ दे रहा है ? अदालत ने कहा
“क्या हम कह सकते हैं कि 18-45 वर्ष की पचास प्रतिशत आबादी वैक्सीन की कीमत वहन कर
पाएगी ? कतई नहीं.”
न्यायालय ने कहा
कि केंद्र और राज्यों के लिए वैक्सीन की अलग-अलग कीमत नहीं हो सकती. केंद्र को सुनिश्चित
करना चाहिए कि वैक्सीन पूरे देश में एक ही कीमत पर मिले.
कोविन पर रजिस्ट्रेशन का मामला पिछले कई दिनों से लोगों
के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है. इस पर भी अदालत ने बेहद तीखी टिप्पणी की. अदालत ने
केंद्र सरकार से कहा, “आप डिजिटल इंडिया,डिजिटल इंडिया कहते रहते हैं,लेकिन आप जमीनी हकीकत से
वाकिफ नहीं हैं. आप पंजीकरण करवा सकते हैं पर डिजिटल डिवाइड का जवाब आप कैसे देंगे.
“सबको कोविन पर पंजीकरण करवाना है. पर क्या ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए इस ऐप पर
रजिस्ट्रेशन करवाना संभव है ? उनसे आप ऐसा करने की उम्मीद कैसे
करते हैं ?”
चूंकि यह उच्चतम न्यायालय का मामला है तो इन सब सवालों
का सामना अदालत में मौजूद केंद्र सरकार के सबसे बड़े वकील यानि सॉलिसिटर जनरल तुषार
मेहता को करना पड़ा. लेकिन असल में तो इन सवालों के जवाब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
और उनके मंत्रिमंडल से पूछने की जरूरत है. उच्चतम न्यायालय अब इस मामले में दो हफ्ते
बाद सुनवाई करेगा. न्यायालय ने तब तक केंद्र से इन सब मसलों पर शपथ पत्र दाखिल करने
को कहा है.
उच्चतम न्यायालय के इन सब सवालों से यह तो स्पष्ट हो ही
गया कि इस भीषण महामारी में केंद्र सरकार का रवैया उस शतुरमुर्ग की तरह था,जो संकट सामने पड़ने पर रेत में सिर डाल कर समझता है कि खतरा टल गया.
-इन्द्रेश मैखुरी
(उच्चतम न्यायालय की कार्यवाही का ब्यौरा लाइव लॉं से साभार.
इस विवरण को इस लिंक पर जा कर पढ़ सकते हैं :
3 Comments
पर दो हफ्ते बाद सुनवाई समझ से परे है। आला अदालत की टिप्पणियां सिर माथे
ReplyDeleteन्याय की मंथर गति
Deleteझूठों के लिये कैसा सवाल कैसा शपथ पत्र
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