cover

तो ये सब भी हाईकोर्ट ही करवाएगा ?

 








26 अप्रैल 2021 को देहरादून के जिलाधिकारी की ओर से ऑक्सीजन सप्लायर्स की सूची जारी की गयी थी. यह सूची और कोई नहीं,जिला मजिस्ट्रेट जारी कर रहे थे,इसलिए इसे विश्वसनीय मानते हुए सोशल मीडिया पर व्यापक तौर पर शेयर किया गया. जिस किसी ने देहारादून में ऑक्सीजन के बारे में जानकारी चाही,उसे जिलाधिकारी देहारादून के हस्ताक्षरों वाली यह सूची भेज दी गयी.





कल 28 अप्रैल को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने अनु पंत की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए निर्देश दिया कि जिलाधिकारी देहरादून द्वारा जारी की गयी ऑक्सीजन सप्लायर्स की सूची त्रुटिपूर्ण है,इसलिए जिलाधिकारी देहरादून इस सूची को दुरुस्त करें और देहरादून जिले के लोगों को ऑक्सीजन और ऑक्सीजन सप्लायर्स की जानकारी दें. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया था कि जिलाधिकारी देहरादून द्वारा जारी की गयी दस ऑक्सीजन सप्लायर्स की सूची में से केवल तीन ही के पास ऑक्सीजन है. अदालत ने याचिकाकर्ता की बात मानते हुए जिलाधिकारी को सूची दुरुस्त करने के आदेश जारी कर दिये.


पर प्रश्न तो यह है कि ऑक्सीजन सप्लायर्स की सूची दुरुस्त करवाने के लिए भी यदि उच्च न्यायालय जाना पड़ रहा है तो फिर यह नौकरशाही और सरकारी तंत्र है,किस काम का ? वैसे इससे नीचे की बात नौकरशाही सुनती भी नहीं है. जिलाधिकारी देहरादून ने ही 27 अप्रैल को देहरादून के विभिन्न अस्पतालों के लिए नोडल अफसरों की एक सूची जारी की थी. परंतु उक्त सूची में नोडल अफसरों के फोन नंबर नहीं थे. इस बाबत ट्विटर और फेसबुक पर सवाल उठे,जिलाधिकारी देहरादून के व्हाट्स ऐप पर भी अनुरोध किया गया पर कोई जवाब नहीं आया. लगता है नोडल अफसरों की लिस्ट में फोन नंबर जुड़वाने के लिए भी किसी को हाईकोर्ट जाना पड़ेगा !


जिस जनहित याचिका में उच्च न्यायालय ने जिलाधिकारी,देहरादून को सूची दुरुस्त करने का आदेश दिया,उसी याचिका में याचिकाकर्ता ने मांग की कि रियल टाइम पोर्टल के जरिये बेड,ऑक्सीजन आदि की उपलब्धता के बारे में लोगों को जानकारी दी जाये. रोचक यह है कि राज्य के महाधिवक्ता ने इस बात के जवाब में कहा कि राज्य सरकार युद्ध स्तर पर महामारी से लड़ रही है,इसलिए तत्काल इस सुझाव को लागू करना संभव नहीं होगा. अलबत्ता उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार की ओर से महाधिवक्ता की इस लचर दलील को स्वीकार नहीं किया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस तरह के रियल टाइम पोर्टल की व्यवस्था करे. राजस्थान और तेलंगाना जहां ऐसे पोर्टल काम कर रहे हैं,राज्य सरकार उन राज्यों से समन्वय स्थापित करे. उच्च न्यायालय ने कहा कि यह राज्य का नैतिक कर्तव्य और संवैधानिक बाध्यता है कि वह अपने नागरिकों की महामारी से रक्षा करे. राज्य को हर हाल में यथासमय,वस्तुस्थिति की महत्वपूर्ण जानकारी लोगों को देनी चाहिए. अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि राज्य में एक ही प्लाज्मा बैंक है,इसलिए सरकार को ब्लड बैंकों को प्लाज्मा लेने और अस्पतालों को देने के लिए तैयार करना चाहिए.


एक अन्य याचिका की सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एस.चौहान और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने देहरादून,हरिद्वार और हल्द्वानी में तीस हजार से पचास हजार टेस्ट प्रति दिन कराने के निर्देश दिये. इसमें घर से सैंपल लेने की सुविधा को बढ़ाने का भी निर्देश दिया गया.


इस फैसले में अदालत ने हल्द्वानी के सुशीला तिवारी मेडिकल कॉलेज के ठेका कर्मचारियों के लिए अस्पताल में या अस्पताल के निकट आवास की व्यवस्था करने को कहा .


अदालत ने अस्थायी शव दाह स्थलों की व्यवस्था और शव दाह के लिए लकड़ियों के पर्याप्त इंतजाम का आदेश भी राज्य सरकार को दिया.


वेक्सीनेशन के पंजीकरण की व्यवस्था को भी दुरुस्त करने का निर्देश अदालत ने दिया है. अदालत ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी की दिक्कत है,वहां सरकार को वैकल्पिक उपायों के बारे में विचार करना चाहिए.


अदालत द्वारा दिये गए निर्देश ऐसे हैं,जिन पर रोज़मर्रा का काम करने वाली किसी भी संवेदनशील सरकार को खुद ही कार्यवाही करनी चाहिए. यदि अस्पतालों में बेड की सूचना,नोडल अफसरों के फोन नंबर की सूचना, कोरोना के चलते जान गँवाने वालों के शव सही किटों में डालने जैसे आदेश अदालत को देने पड़ रहे हैं तो सवाल यह है कि सरकार क्या कर रही है,उसकी नौकरशाही क्या करती है ?


-इन्द्रेश मैखुरी

Post a Comment

0 Comments