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एनटीपीसी पर प्रदूषण फैलाने के लिए जुर्माना

 


जोशीमठ में 7 फरवरी को आई आपदा में रैणी में ऋषिगंगा परियोजना के बहने के अलावा तपोवन स्थित निर्माणाधीन तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना की बैराज साइट और सुरंग में मलबा भर गया,जिसमें कई लोग मारे गए.


जल प्रलय से हुई तबाही तो अपनी जगह है,लेकिन यह भी बात सामने आई कि इस तरह की आपदा से निपटने के लिए परियोजना निर्माता कंपनी-एनटीपीसी के सुरक्षा इंतजाम या तो थे ही नहीं या अपर्याप्त थे. यहाँ तक कि आपातकालीन स्थिति की सूचना देने वाला साइरन तक परियोजना की साइट पर आपदा के दिन तक नहीं था और यह आपदा के बाद वहां लगाया गया.


इस तरह की लापरवाही के अलावा प्रदूषण फैलाने के मामले में भी एनटीपीसी को दोषी पाया गया है. उत्तराखंड के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनटीपीसी को तपोवन-विष्णुगाड़ परियोजना के परियोजना क्षेत्र में मलबा निस्तारण के मानकों के उल्लंघन का दोषी पाया और इसके लिए 07 दिसंबर 2020 को एनटीपीसी पर  57 लाख 96 हजार रुपये का जुर्माना किया.






उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पाया कि कंपनी के मक डम्पिंग साइटों पर मलबे का ढाल 60 डिग्री है,जो कि मानकों से दोगुना है. मलबे में पानी का प्रवेश हो रहा था,जिसके चलते भारी तादाद में मलबे के नदी में बहने की आशंका प्रकट की गयी. उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 29 जून 2020 को परियोजना स्थल का निरीक्षण करके परियोजना निर्माता कंपनी-एनटीपीसी को मलबा निस्तारण स्थलों को दुरुस्त करने को कहा.इसके लिए क्या-क्या किया जाना है,इसके विस्तृत निर्देश बोर्ड ने दिये. लेकिन इन निर्देशों के चार महीने के बाद जब अक्टूबर 2020 में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम ने पुनः परियोजना स्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि बोर्ड के निर्देशों का पालन नहीं किया गया है. बोर्ड ने पाया कि एनटीपीसी नदी(धौलीगंगा) को प्रदूषित कर रही है. इसलिए बोर्ड ने एनटीपीसी पर जुर्माना कर दिया.

उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किए गए पर  57 लाख 96 हजार रुपये के जुर्माने के खिलाफ एनटीपीसी द्वारा राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण(एनजीटी) में अपील की गयी.

यह गौरतलब है कि एनजीटी में की गयी अपील में एनटीपीसी ने अपने काम के दुरुस्त होने की कोई दलील नहीं प्रस्तुत की, ना ही उसकी ओर से यह कहा गया कि उनके मलबा निस्तारण स्थालों से नदी प्रदूषित नहीं हो रही है. बल्कि 2004 से इस इलाके में परियोजना निर्माण में लगी कंपनी ने मलबा निस्तारण स्थलों  को दुरुस्त करने के लिए एक टाइम टेबल पेश किया,जिसमें विभिन्न स्थलों को दुरुस्त करने के लिए मई 2021 से लेकर अगस्त 2021 तक कि तिथि बता दी.


एनजीटी के आदेश का लिंक :https://greentribunal.gov.in/gen_pdf_test.php?filepath=L25ndF9kb2N1bWVudHMvbmd0L2Nhc2Vkb2MvanVkZ2VtZW50cy9ERUxISS8yMDIxLTAyLTE4LzE2MTM3MjgxMTQ2MjA4NDE4MDk2MDJmODk3MjA3NDc2LnBkZg==



एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदेश कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली एनजीटी की प्रमुख पीठ ने अपने 10 पृष्ठों के फैसले में लिखा कि अपीलकर्ता ने स्वयं यह स्वीकार कर लिया है कि मलबा निस्तारण स्थलों का मानकों के अनुरूप रखरखाव नहीं हो रहा है. यह स्पष्ट है कि मलबा निस्तारण स्थलों के रखरखाव में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के मानकों का अनुपालन नहीं हो रहा है. एनजीटी की प्रमुख पीठ ने एनटीपीसी की अपील खारिज करते हुए,इस कंपनी से जुर्माना वसूलने का आदेश कर दिया.


एनजीटी के उक्त आदेश से स्पष्ट है कि एनटीपीसी पर्यावरण प्रदूषण के प्रति लापरवाह बनी हुई थी. परियोजना स्थल पर सुरक्षा इंतज़ामों में भी उसकी लापरवाही पहले ही उजागर हो चुकी है. एनटीपीसी जैसी बड़ी कंपनी के लिए यह आसान है कि वह 57लाख 96 हजार रुपये का हर्जाना भर दे. लेकिन इस इलाके के पर्यावरण को जो नुक्सान उसने पहुंचाया है और सुरक्षा इंतज़ामों में लापरवाही की जो कीमत लोगों को अपनी जान के रूप में चुकानी पड़ी है,उसकी भरपाई कैसे होगी ? सवाल तो यह भी है कि यह सरकार की कैसी नवरत्न कंपनी है,जो ना पर्यावरण के मानकों की परवाह करती है और ना ही सुरक्षा इंतज़ामों की ?


-इन्द्रेश मैखुरी    

  

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