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केंद्र सरकार की टूल खिट-खिट !

 


खोदा पहाड़ निकली चुहिया-वाली कहावत की मिसाल देखनी हो तो दिशा रवि प्रकरण में जिस टूलकिट के इर्दगिर्द इतनी हवा बांधी गयी,उसे पढ़ कर समझ सकते हैं. दिशा रवि को जमानत देते हुए नयी दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने उस टूलकिट को अपने 18 पृष्ठों के फैसले में पूरा ही उद्धृत किया है. अदालत के फैसले में उल्लिखित टूल किट की सामग्री को पढ़ कर कोई भी समझ सकता है कि इसमें न देश के खिलाफ कुछ है, न कोई हिंसा भड़काने की बात है. किसान आंदोलन के पक्ष में फोटो,वीडियो संदेश साझा करने, 23 जनवरी से किसान आंदोलन के पक्ष में ट्विटर पर हैशटैग चलाने और उसमें प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री को टैग करने जैसी बातें उक्त टूल किट में कही गयी हैं. 26 जनवरी की किसान परेड में शामिल होने और विभिन्न देशों में किसान आंदोलन के समर्थन में भारत के दूतावासों पर प्रदर्शन करने का आह्वान टूल किट में है. अदालत ने लिखा कि इस आह्वान से विदेशों में भारतीय दूतावासों में कहीं हिंसा होनी की कोई जानकारी नहीं है,इसलिए ये कोई अपराध नहीं है.  






अपने फैसले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने लिखा कि नागरिक किसी लोकतांत्रिक देश की अंतर आत्मा के रक्षक होते हैं,उन्हें सिर्फ सरकार की नीतियों का विरोध करने के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता. उन्होंने लिखा कि सचेत और सक्रिय नागरिक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र के लक्षण हैं. यह मुख्य बात है जो वर्तमान केंद्रीय सत्ता और उसके समर्थकों की समझ से बाहर है.


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की व्याख्या करते हुए अदालत ने कहा कि इसमें अपनी अभिव्यक्ति के लिए वैश्विक श्रोता जुटाना भी शामिल है. यह विचित्र विरोधाभास है कि जिस सरकार के मुखिया,अमेरिका में जा कर -अब की बार ट्रंप सरकार- का नारा लगाते हैं,जिस सरकार के समर्थक अमेरिका में ट्रंप को राष्ट्रपति बनने की कामना के लिए यज्ञ करते हैं,उसी सरकार और उसके समर्थकों को किसान आंदोलन के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय एकजुटता देश विरोधी प्रतीत होती है !  


 यदि ट्विटर या अन्य आभासी माध्यमों पर चलने वाले अभियानों को कोई सरकार अपने को उखाड़ फेंकने का षड्यंत्र बताती है तो या तो वह हुकूमत बेहद डरी हुई है या अत्यंत षड्यंत्रकारी है. दोनों ही दशा में देश को किसी और से ज्यादा ऐसी हुकूमत से खतरा है.


टूलकिट में अदानी-अंबानी के खिलाफ भी अभियान (वह भी ऑनलाइन ही) चलाने का आह्वान किया गया है. तो क्या सरकार के दो प्रिय पूँजीपतियों के खिलाफ अभियान चलाने या उनके विरुद्ध बोलने को भी देश के खिलाफ अभियान चलाना समझा जा रहा है ?


सरकार में बैठे हुए लोग तो इस सब को षड्यंत्र समझ रहे थे पर क्या दिल्ली पुलिस में एक भी ऐसा अफसर नहीं है,जो कह सकता कि सरकार बहादुर आपकी देश के विरुद्ध षड्यंत्र की पूरी थ्योरी बकवास और बचकानी है,जो दुनिया भर में हमारे लोकतंत्र को हंसी का पात्र बना देगी ?


-इन्द्रेश मैखुरी

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