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“आईएनए और उसके नेता जी”

 




आज नेता जी सुभाष चंद्र बोस की जयंती है. 23 जनवरी 1897 में कटक में उनका जन्म हुआ था.






बीते अगस्त में नेता जी सुभाष चंद्र बोस के शहादत दिवस (18 अगस्त 1945) पर उनके सहयोगी और आजाद हिंद फौज के कमांडर,मेजर जनरल शाहनवाज़ खान की पुस्तक “माई मेमोरीज़ ऑफ आई.एन.ए. एंड इट्स नेताजी” (आई.एन.ए. और उसके नेता जी,मेरी स्मृतियों में) के हवाले से नेता जी के संदर्भ में कुछ चर्चा की थी.


उस लेख को इस लिंक पर पढ़ा जा सकता है -

https://www.nukta-e-najar.com/2020/08/netaji-%20difference-ideological-personal-respect-.html


जनरल शाहनवाज़ खान की पुस्तक हमें नेता जी और उनकी कार्यप्रणाली की व्यापक झलक दिखाती है. सुभाष चंद्र बोस ने जापान में आई.एन.ए. बनाई और उसे संचालित करते रहे. जापान एक साम्राज्यवादी देश था. इस को लेकर नेताजी पर काफी सवाल उठते रहे हैं. इंटरनेट पर मौजूद अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का उस दौर का एक दस्तावेज़-राइज एंड फॉल ऑफ आईएनए-जिसे सार्वजनिक किया जा चुका है,उसमें कहा गया कि जापान ने अपने लिए अंग्रेजों से घृणा करने वाली कठपुतली प्राप्त कर ली है. लेकिन जनरल शाहनवाज़ खान की किताब बताती है कि जापानियों के साथ अपने रिश्ते को लेकर नेता जी बेहद स्पष्ट थे. जनरल शाहनवाज़ लिखते हैं कि बोस कहते थे कि यदि वर्तमान भारत में जापानी,अंग्रेजों की जगह लेना चाहें तो हमें उनसे भी लड़ना होगा. वे सैनिकों से कहते थे कि जो भी आईएनए में शामिल हो रहा है,उसे पहले अंग्रेजों से लड़ना होगा और बाद में जरूरत पड़ी तो जापानियों से भी लड़ने को तैयार रहना होगा.





जनरल शाहनवाज़ खान ने लिखा है कि जापान में रहते हुए भी भारत की खबरों पर वे निरंतर निगाह बनाए रखते थे. जब बंगाल में अकाल पड़ा और भूख से मौतें होने लगी तो सुभाष चंद्र बोस इससे काफी व्यथित हुए. उन्होंने बर्मा और अन्य सरकारों से करीब एक लाख टन चावल खरीद कर कलकत्ता भेजने की योजना बनाई. उन्होंने अंग्रेजों को यह प्रस्ताव भिजवाया और सिर्फ इतनी गारंटी चाही कि जो जहाज चावल लेकर आयें, अंग्रेज उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करें. कई बार अंग्रेजों को प्रस्ताव भेजने के बावजूद अंग्रेजों ने नेता जी के प्रस्ताव को अनसुना कर दिया.


अंग्रेजों से सैन्य तरीके से लड़ने और उसके लिए जापानियों की मदद लेने के बावजूद सुभाष चंद्र बोस भारतीय जनता और भारत के नगरों को उस युद्ध के शिकार बनाने के लिए तैयार नहीं थे. जनरल शाहनवाज़ खान ने लिखा कि एक मौके पर जापान के सेनाध्यक्ष ने कलकत्ता पर बमबारी की योजना, नेता जी के सामने रख कर उनकी राय मांगी. नेता जी ने जवाब दिया कि वे कभी नहीं चाहेंगे कि उनके खूबसूरत शहर पर बमबारी के भद्दे घाव लगें. उन्होंने कहा “मैं अपने लोगों को उत्साह और उम्मीद देना चाहता हूँ, बर्बादी और पीड़ा नहीं.” जापानी जनरल से उन्होंने कहा “जब इंफाल पर कब्जा हो जाएगा तो हम बम वर्षक विमानों से बंगाल के लोगों पर बम नहीं हजारों तिरंगे बरसाएंगे. ये तिरंगे बमों से ज्यादा मारक तरीके से अंग्रेजी साम्राज्यवाद को नष्ट कर देंगे.”


जनरल शाहनवाज़ खान लिखते हैं कि नेता जी किसी तरह के धार्मिक या प्रांतीय भेद को न मानते थे और ना ही उसे मान्यता देते थे. वे लिखते हैं कि आईएनए में सबको अपने धर्म के अनुसार आचरण करने की छूट थी और अलग-अलग धार्मिक आचरण की छूट के बावजूद, आईएनए में किसी तरह की कोई सांप्रदायिक भावना नहीं थी. जनरल शाहनवाज़ लिखते हैं कि हम सब एकजुट थे और नेता जी ने हमको इस अहसास पर ला खड़ा किया कि हमारे देश में जो धार्मिक मतभेद और तनाव हैं,वे एक बाहरी ताकत द्वारा पैदा किए गए हैं. जनरल शाहनवाज़ ने लिखा कि हर धर्म के अनुयायी नेता जी के मुरीद थे. वे बताते हैं कि रंगून के एक बड़े व्यापारी- हबीब बेताई ने नेता जी से जुड़ी एक माला प्राप्त करने के लिए अपनी लगभग एक करोड़ की संपत्ति दे दी. इस भावना से ओतप्रोत आईएनए के सैनिक यह विश्वास करते थे कि धर्मों से ऊपर उठकर एक महान,आजाद और एकजुट भारत बनाने के लिए सभी भारतीयों की एकता संभव है.


धार्मिक विभाजन और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के दम पर फल-फूल रही राजनीति के दौर में भारत को इस एकजुटता की भावना की सर्वाधिक जरूरत है. इस एकजुटता की भावना को स्थापित और मजबूत करना  नेता जी सुभाष चंद्र बोस को याद करने का सब से सही तरीका हो सकता है.


नेता जी सुभाष चंद्र बोस की स्मृति को इंकलाबी सलाम,जय हिंद !


-इन्द्रेश मैखुरी  

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