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बिहार : चुनाव और रोजगार का सवाल

 

पटना शहर की विभिन्न दीवारों पर छोटे-छोटे पोस्टर चस्पा हैं, जिन पर लिखा है - घर बैठे कमाएं ! एक तरफ फोन नंबर वाली कोई अनाम एजेंसी है जो घर बैठे ही कमाने का प्रस्ताव देते विज्ञापन है, दूसरी तरफ बिहार की वर्तमान सत्ता  कह रही है कि कमाने का इंतजाम करना उसके बस की बात नहीं है, हां घर जरूर वह सबको बैठा सकती है, बशर्ते कि आदमी के पास घर हो !





बिहार में विधानसभा चुनाव के  पहले चरण के मतदान के दिन यानि 28 अक्टूबर  को पटना की दीघा सीट पर भाकपा(माले) की प्रत्याशी कॉमरेड शशि यादव का  प्रचार करते हमारे प्रचार वाहन के पास एक सज्जन आये.हमारा प्रचार वाहन सुबह के आठ बजे  पटना के एक चौराहे पर खड़ा था.उक्त सज्जन धोती-कुर्ता पहने और माथे पर त्रिशूल के आकार का तिलक लगाए हुए थे. वे अनायास की प्रचार वाहन के पास नहीं आये थे,बल्कि माइक की आवाज़ सुन कर आये थे.बिल्कुल अनजान होते हुए भी वे बात शुरू करते हैं, "अरवल से महानंद तो निकल जाएंगे". वे अरवल सीट पर भाकपा माले के प्रत्याशी कॉमरेड महानंद प्रसाद का जिक्र कर रहे हैं. वे कहते हैं कि वोट देने के लिए उनके साथी मोटरसाइकिलों पर पटना से अरवल के लिए निकले हैं. एक-एक मोटरसाइकिल पर तीन-तीन  लोग गए हैं. अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए वे कहते हैं " इस सरकार में कोई बहाली नहीं है. मेरा बेटा एमएससी है एनवायरमेंट साइंस से पर कोई वैकेंसी निकल ही नहीं रही है."



दीघा विधानसभा क्षेत्र से भाकपा माले की प्रत्याशी कॉमरेड शशि यादव का प्रचार करते हुए रोजगार के लिए चिंतित ऐसे कई लोगों से मुलाकात हुई. ऐसे ही एक दिन प्रचार गाड़ी कुछ संकरी गलियों से गुजर रही थी.एक व्यक्ति ने गाड़ी को हाथ दिया.किन्हीं वजहों से गाड़ी तत्काल नहीं रुकी तो आगे बढ़ती गाड़ी को देख कर उनके चेहरे पर खिन्नता का भाव आ गया,जिसे उन्होंने प्रकट किया.100-200 मीटर आगे जा कर  प्रचार वाहन रुका तो कोई जान पहचान न होने के बावजूद वे बेहद आत्मीयता से बताने लगे कि हमें प्रचार में क्या क्या करना चाहिए और कहां कहां प्रचार के लिए जाना चाहिए. इसके बाद बातचीत रोजगार के मसले पर आ कर ठहर गयी.ठेठ बिहारी अंदाज़ में उक्त सज्जन बोले "बेटा को रोजगार दे नहीं रहा है और बाप को 50 साल में घर भेज दे रहा है.पेंशन पहले ही खतम कर चुका है. ऐसा सरकार काहे चाहिए जी."






आम लोगों में रोजगार को लेकर ऐसी छटपटाहट ही वो वजह है, जिसने रोजगार को बिहार के इस विधानसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बना दिया.शुरुआती तौर पर भाकपा माले के द्वारा उठाये गए  रोजगार के सवाल पर इस जमीनी छटपटाहट ने ही रोजगार को  महागठबंधन के एजेंडे में सबसे ऊपर ला खड़ा किया और महागठबंधन ने घोषणा की कि सरकार बनने पर 10 लाख नौकरियां दी जाएंगे.हालांकि नीतीश कुमार नौकरियां देने के मुद्दे का पैसा न होने जैसे  कुतर्कों के साथ निरंतर विरोध कर रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टनर भाजपा ने भी रोजगार के मुद्दे के बढ़ते ताप को महसूस करते हुए 19 लाख रोजगार देने के वायदा अपने घोषणपत्र में कर दिया है. वैसा वायदा तो भाजपा ने केंद्र में भी हर साल दो करोड़ रोजगार देने का किया था पर नतीजे के तौर पर 45 वर्षों में सर्वाधिक बेरोजगारी ही देश को हासिल हो सकी !
भारत में रोजगार आंकड़ों के आधिकारिक सर्वे -पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार भारत में 2018-19 में बेरोजगारी की दर 5.8 प्रतिशत थी,जबकि बिहार में बेरोजगारी की दर 10.2 प्रतिशत है.इस तरह देखें तो सरकारी आंकड़े के हिसाब से ही बेरोजगारी की औसत दर राष्ट्रीय दर के लगभग दोगुनी है. यही कारण है कि बेरोजगारी को लेकर बिहार में धरातल पर इस कदर बेचैनी है.
पटना में एक बेरोजगार युवा कहते हैं-नीतीश जी के राज में एक भर्ती दो विधानसभा चुनावों के बीच झूलती थी.एक चुनाव में भर्ती की विज्ञप्ति निकलती थी और दूसरे चुनाव से कुछ पहले उस भर्ती की प्रक्रिया कुछ आगे बढ़ती थी.





रोजगार सिर्फ बिहार का ही नहीं पूरे देश का सवाल है. भाकपा(माले) और उसके छात्र संगठन आइसा ने पूरे देश में इस सवाल पर निरंतर अभियान चलाया है. आइसा ने इसके लिए "रोजगार मांगे इंडिया" नाम से अखिल भारतीय स्तर पर मुहिम चलाई.अब बिहार में महागठबंधन ने इसे न केवल बेरोजगारी को चुनावी मुद्दा बनाया है बल्कि इसे हल करने का संकल्प भी जताया है. बेरोजगारी के दंश को झेलते बिहार को निश्चित ही सरकारी नौकरी देने को असंभव घोषित करने वाले सत्ताधारियों के बजाय मंत्रिमंडल की पहली बैठक से रोजगार के सवाल को हल करने की दिशा में बढ़ने का वायदा किया है.
-इन्द्रेश मैखुरी

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