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ओपीएस : नयी पेंशन योजना सांसदों और विधायकों पर भी आजमाइए सरकार !

 

01 अक्टूबर 2004 को केंद्र में सत्तारूढ़ अटल बिहारी वाजपई के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन खत्म कर दी. उसके स्थान पर नयी पेंशन योजना लागू की गयी जिसे नेशनल पेंशन सिस्टम का नाम दिया गया. केंद्र सरकार ने 2004 से इसे सभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए लागू कर दिया. इस पेंशन योजना में पूर्ववर्ती पेंशन योजना, जिसे ओल्ड पेंशन स्कीम कहा जाता है,की तरह पेंशन के रूप में कोई निर्धारित राशि मिलने का भरोसा नहीं है. नयी पेंशन योजना कार्मिक के अंशदान पर आधारित है. केंद्र सरकार ने बीते साल नयी पेंशन स्कीम में अपने अंश को 10 प्रतिशत से बढ़ा कर 14 प्रतिशत कर दिया है. इसका आशय यह है कि नयी पेंशन स्कीम में 86 प्रतिशत अंश कार्मिक को ही भरना है. लेकिन सरकार इस पैसे को कहीं भी निवेश कर सकती है,शेयर बाजार में भी ! यदि पैसा डूब गया तो ? इसका कोई जवाब नहीं है.



शिक्षक- कर्मचारी  बीते कुछ सालों से पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग सरकार से कर रहे हैं. आज 01 अक्टूबर को नयी पेंशन स्कीम के लागू होने की तिथि पर शिक्षक-कर्मचारियों द्वारा काला दिवस मनाया गया.





 लेकिन केंद्र सरकार ने शिक्षक और कर्मचारियों की पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग पर कान देने से साफ तौर पर इंकार कर दिया है. बीते कुछ सालों में संसद में पुरानी पेंशन योजना लागू करने संबंधी प्रश्नों के केंद्र सरकार द्वारा दिये गए जवाबों से स्पष्ट होता है कि वह कर्मचारी-शिक्षकों की इस तेजी से लोकप्रिय होती मांग को सुनने के लिए कतई तैयार नहीं है.



  15 जुलाई 2019, 02 दिसंबर 2019 और 16 मार्च 2020 को लोकसभा में पुरानी पेंशन योजना लागू करने संबंधी प्रश्नों के जवाब में केंद्र सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा कि उसका पुरानी पेंशन योजना लागू करने का कोई इरादा नहीं है. 15 जुलाई 2019 को लोकसभा में जवाब देते हुए केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि सरकार जानती है कि ट्रेड यूनियनें और सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग कर रहे हैं.







 लेकिन सरकार ने बेहद सचेत तरीके से नयी पेंशन योजना(नेशनल पेंशन सिस्टम) लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. 16 मार्च 2020  को दिये गए जवाब में वित्त राज्य मंत्री ने साफ कहा कि पुरानी पेंशन योजना की तरफ वापस लौटने का सरकार का कोई इरादा नहीं है.



सैनिकों का हर बात में हवाला देने वाली भाजपा की केंद्र सरकार ने तो अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को तक पेंशन देने से साफ इंकार कर दिया है. 17 मार्च 2020 को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से लोकसभा में दिये गए जवाब में कहा गया कि अर्द्ध सैनिक बलों में 01 जनवरी 2004 के बाद नियुक्त जवान, नयी पेंशन योजना के अंतर्गत ही आते हैं और सैन्य बलों की तर्ज पर अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को पेंशन देने की सरकार की कोई योजना नहीं है.


नयी पेंशन योजना का लाभ संसद में गिनवाते हुए मोदी सरकार के वित्त राज्य मंत्री ने संसद में कहा कि पुरानी पेंशन योजना से नयी पेंशन योजना में रूपांतरण ने अधिक उत्पादक और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिए सरकार के संसाधनों को मुक्त किया है. यदि संसद और विधानसभाओं में प्रवेश मात्र से मिलने वाली लाखों रुपये की पेंशन को बंद कर दिया जाये या वह भी उस तथाकथित नेशनल पेंशन सिस्टम के तहत ले आई जाये तो सरकार के संसाधन और अधिक उत्पादक कार्यों के लिए मुक्त हो सकेंगे ! इस बारे में क्या ख्याल है,मोदी जी ?


-इन्द्रेश मैखुरी     

 

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3 Comments

  1. हमारी भी दिली ख्वाहिश है कि हमारे गरीब सांसद भी इस उत्पादक और नवोन्मेषी पेंशन (नो पेंशन स्कीम NPS) के अन्तर्गत आ कर अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करें।आखिर सबसे ज्यादा मेहनत वही करते हैं इस देश में।

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  2. किसीनों के लिए भी यही तो किया है इन्होनें...पूंजीपतियों के दलाल

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