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मुख्यमंत्री,जमीन और “अपने”


बधाई दीजिये मुख्यमंत्री ने जमीन खरीदी. मुख्यमंत्री होना ही अपने आप में बधाई की बात है ; भाग की भताग हो तो और बधाई की बात है ! मुख्यमंत्री का बोलना,चलना,फिरना सब बधाई की बात है. तो जमीन खरीदी है,इसलिए बधाई देना तो बनता है. बधाई के अवसरों का वैसे ही टोटा है तो कम से कम यह अवसर आया है तब तो बधाई दे ही देनी चाहिए !




फर्ज़ कीजिये कि मुख्यमंत्री गैरसैंण में जमीन न खरीदते तो क्या होता ? वे गैरसैंण जाते और मुख्यमंत्री के स्टैंडर्ड का कोई होटल तो वहाँ है नहीं तो फिर बेचारे कहाँ रहते है ? मजबूरन मुख्यमंत्री जी को रामलीला मैदान में चंद्र सिंह गढ़वाली की मूर्ति के बगल में रात गुजारनी पड़ती. या फिर सड़क पर जो प्रतीक्षालय है,वहीं सोना पड़ता बेचारों को ! अगले दिन अखबारों में खबर होती कि मुख्यमंत्री को न मिला स्टैंडर्ड का होटल,सड़क किनारे बिताई रात ! बताइये राज्य की कैसी कच्ची होती ! अरे दारू वाली कच्ची नहीं,बेइज्जती खराब वाली कच्ची ! दारू वाली कच्ची के मामले में तो सरकार पक्की वालों के लिए है,उनकी दुकानों की नीलामी न होने की चिंता में घुली जाती है,बेचारी सरकार ! हर महीने-दो महीने में विज्ञापन निकालती है कि आओ जान से प्यारो,आँख के तारो,इन शराब की दुकानों का सूनापन दूर करो,इन्हें गुलजार करो !


तो नाशुक्रे  पहाड़ियो, मुख्यमंत्री ने तुम्हारी कच्ची होने से बचा ली ! मुख्यमंत्री ऐसा ही होना चाहिए जमीन से जुड़ा. घाट-घाट,धार-धार,खाल-खाल की जमीन का पता रखे. मौका पड़े तो अपने लिए खरीद ले,मौका लगे तो अपनों को सब बेच दे. अपने समझते हैं कौन होते हैं,सत्ता के ? अरे जनता नहीं रे लाटे पहाड़ियो ! सत्ता के अपने होते हैं,दारू वाले,खनन वाले और ज़मीनों का सौदा करने वाले ! ये अपने ही सत्ता में पहुंचाने के लिए माल-मत्ता लगाते हैं और सत्ता आई तो फिर उगाहते हैं !


और ये सब ऐसा क्यूँ करते हैं,अजी जनता की खातिर ! रेत-बजरी,जमीन और दारू किसको चाहिए,जनता को ना ! ये परोपकारी धर्मात्मा लोग पैसा लगाते हैं,ताकि जनता को सुयोग्य नेता मिले,जो कुशलता से जनता की खातिर रेत-बजरी,दारू बिकवा सके. कुछ ना मुराद विघ्न संतोषी,ऐसे भले मानुषों को माफिया कहते हैं. कहने वाले कहते रहते हैं पर ऊपर जिन अपने लोगों की बात कही थी,वो “अपने” यही हैं. बाकी धर्मेंद्र की खानदानी फिल्मे “अपने” का गीत याद करिए “बाकी तो सपने होते हैं,अपने तो अपने होते हैं” और सत्ता के “अपनों” का चेहरा दिमाग में फिट कर लीजिये !


सिर्फ एक बात अपनी  उपबुद्धि में नहीं बैठी : मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि यह रिर्वस पलायन का रास्ता है ! यह समझ न आया कि जहां से उन्होंने पलायन ही नहीं किया,वहाँ जमीन खरीदना रिर्वस पलायन कैसे है !


-इन्द्रेश मैखुरी

  

 

 

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4 Comments

  1. मुख्यमंत्री जी को ऐसे ही जगह जगह मानसूनी ,सुखी जैसी राजधानियां घोषित कर वहां भी जमीन खरीद देनी चाहिए अगर इससे रिवर्स पलायन होता है तो ....

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  2. सही मुद्दा उठाया।

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