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रिटायर होने का वक्त आ गया है सरकार !




एक सरकारी आदेश सोशल मीडिया में घूम रहा है,जो उत्तराखंड सचिवालय प्रशासन के अपर सचिव की तरफ से अपर मुख्य सचिव,प्रमुख सचिव और सचिवों को भेजा गया है.पत्र कहता है कि उत्तराखंड में सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारियों,जिनकी आयु 50 वर्ष पूरी हो चुकी है,उन्हें तीन महीने का नोटिस दे कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने का का शासनादेश 05 मई 2020 को मुख्य सचिव द्वारा निकाला जा चुका है.  





प्यारी उत्तराखंड सरकार, पहली बात तो यह जाननी है कि क्या यह आदेश असली है ? असली होने या न होने की बात इसलिए पूछनी पड़ती है क्यूंकि अजब-गज़ब राज्य है,हमार. यहाँ कुछ भी “मुमकिन” है ! अभी ज्यादा दिन नहीं बीते जब परिवहन सचिव के दस्तखतों वाला आदेश निकला, जिसमें आर.टी.ओ. का तबादला किया गया था. आदमी जॉइनिंग-रिलिविंग की प्रक्रिया में गया तो पता चला कि ऐसा कोई आदेश ही नहीं है.इसी सरकार के कार्यकाल में छुट्टी के आदेश तो कई बार,कुछ महापुरुषों ने घर बैठे अपने लैपटॉप से सरकार के नाम से निकाल दिये ! इसलिए यह तस्दीक करना आवश्यक है कि आदेश असली है या नहीं. फूल वालों की सरकार में “सुमन” साहब के नाम से निकले आदेश में ऐसा न हो जनता का अंग्रेजी वाला फूल बन जाये ! बहरहाल, यदि आदेश असली नहीं है तब आगे जो कुछ भी लिखा जा रहा है,उसे लिखा हुआ देख कर भी न लिखा हुआ माना जाये. लेकिन यदि आदेश असली है तो फिर जो भी होता हो-नजर रखी जाये,नजर उतारी जाये या बतर्ज एक फिल्मी गीत-भेज दे चाहे जेल में ..... यह लिखा है सो लिखा है.



तो प्यारी उत्तराखंड सरकार आपके मुख्य सचिव बड़े कारसाज़ अफसर हैं, भाई ! चारों तरफ कोरोना का कहर है. दुनिया भर में चिंता यह है कि लोगों की जीविका के साधन कैसे बचाए और विकसित किए जाएँ. प्रधानमंत्री  निजी क्षेत्र वालों से कह रहे हैं कि इस आपदा काल में अपने कर्मचारियों को नौकरी से ना निकालें.   और ऐसे में मुख्य सचिव रोजगार पाये हुए लोगों को ही सिर्फ उम्र और योग्यता की मनमानी व्याख्या करके घर भेजने का आदेश निकाल रहे हैं ! नए लोगों को रोजगार देने पर पाबंदी का आदेश और पुराने लोगों को रिटायरमेंट की उम्र से पहले घर भेजने का आदेश ! यानि बेटे-बेटी को रोजगार देना नहीं है और रोजगार पाये माँ-बाप को भी घर भेज देना है ! वाह,रे लोक कल्याणकारी सरकार !
 अपने लिए तो रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी रौब-दाब,गाड़ी-बंगले का जुगाड़ और कर्मचारी को रिटायरमेंट की उम्र तक पहुँचने से दस बरस पहले ही घर भेजने का इंतजाम ! क्या कहने इस दूरदृष्टि और न्याय प्रियता के  !


प्यारी सरकार,कुर्सी दुलारी सरकार,चलो ठीक है,प्रदर्शन और उम्र का पैमाना स्वीकार कर लेते हैं. लेकिन यह पैमाना नीचे के कर्मचारियों से शुरू हो होने के बजाय ऊपर से शुरू किया जाये. यह सरकार से ही शुरू किया जाये. उक्त पत्र में लिखा है कि जो बीमार रहते हैं,कार्य करने में सक्षम नहीं हैं, कार्यालय में अनुपस्थित रहते हैं,सत्यनिष्ठा संदिग्ध है, उन्हें अनिवार्य रूप से रिटायर कर दिया जाये.


इस पैमाने के हिसाब से देखें तो सरकार सबसे पहले रिटायर कर देने के योग्य है. लोगों के जीवन से सरकार अनुपस्थित है. कोरोना काल में तो यह चर्चा लोग करते ही रहे कि सरकार सबसे पहले क्वारंटीन हो गयी. अस्पताल, सरकार निजी हाथों में सौंप रही है,स्कूल-कॉलेज-पॉलिटैक्निक पर ताले लगा रही है,रोजगार आउटसोर्सिंग वाले देंगे और नीति विश्व बैंक वाले बना कर देंगे ! ऐसे में सरकार की जरूरत ही क्या है !  



इस कार्यक्षमता के इस ब्यौरे के साथ जो उम्र का पैमाना है,उसे भी देख लेते हैं. मुख्यमंत्री जी समेत अधिकांश मंत्री पचास वर्ष की आयु सीमा को काफी पहले  पार कर चुके हैं. जो पचास पार नहीं भी हैं,युवाओं वाली तेजी, उनके भी केवल जुबान में ही है. और जुबान कैंची की तरह चलाते रहने के लिए सरकार में रहना कोई जरूरी तो है नहीं. वो तो कहीं भी चलायी जा सकती है.आराम से घर में रहिए और जुबान को धार दीजिये.



इस पचास पार वालों को रिटायरमेंट के फॉर्मूले में हम सरकार के साथ हैं. बस अर्ज इतनी है कि शुरुआत सरकार अपने से घर से करे. उम्र के इस पैमाने के साथ यह तो समझना ही होगा कि यदि एक खास उम्र के बाद व्यक्ति यदि  सरकार का काम करने लायक नहीं है तो फिर सरकार चलाने लायक कैसे रह जाएगा ?


-इन्द्रेश मैखुरी  

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