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चन्द्रशेखर आजाद की जयंती : क्रांतिकारियों को झूठ और दंगाई मानसिकता के दलदल में मत घसीटिए मिश्रा जी !


आज भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रांतिकारी धारा के सेनापति चंद्रशेखर आजाद का जयंती है.


 हालांकि आजाद के जन्म की तारीख किसी दस्तावेज़ में दर्ज नहीं है. तब 23 जुलाई की तिथि कैसे निर्धारित हुई ? इसका रोचक विवरण आजाद के साथी भगवान दास माहौर की पुस्तक “यश की धरोहर” में मिलता है.




माहौर जी लिखते हैं कि आजाद की शहादत के बाद आजाद की माता जगरानी देवी,उनके और आजाद के एक अन्य साथी सदाशिवराव मल्कापुरकर के साथ रही. 


उनका देहांत 22 मार्च 1951 को भगवान दास माहौर के घर पर ही हुआ. माहौर लिखते हैं कि साथ रहते हुए उन्होंने माता जी से आजाद के बाल्यकाल के बारे में बहुत सारी बातें जानी. आजाद के जन्म के बारे में माता जी ने बताया कि चन्द्रशेखर का जन्म सावन सुदी दूज सोमवार को दिन के दो बजे हुआ था. बक़ौल माहौर “संवत माता जी को विस्मृत हो गया था. मैंने पुराने पंचांगों को देख कर आजाद की जन्मतिथि का निश्चय किया जो है तारीख 23 जुलाई सन 1906.”


चंद्रशेखर आजाद,इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में पुलिस से लड़ते हुए 27 फरवरी 1931 को शहीद हुए. इस वर्ष उनके शहादत दिवस पर इन पंक्तियों के लेखक ने “समकालीन जनमत” में एक विस्तृत लेख आजाद और उनकी वैचारिकी के संदर्भ में लिखा था. उस लेख को इस लिंक पर जा कर पढ़ा जा सकता है – https://samkaleenjanmat.in/chandrashekhar-azad-was-the-leader-of-the-revolutionary-movement


चंद्रशेखर आजाद को उनके जन्मदिन पर बहुत सारे लोगों ने याद किया. लेकिन दिल्ली दंगों के लिए काफी कुख्याति अर्जित कर चुके कपिल मिश्रा ने इस मौके का इस्तेमाल भी कीचड़ उछालने के लिए किया. मिश्रा ने एक वैबसाइट का लिंक लगाते हुए लिखा “नेहरू ने करवाई थी चन्द्रशेखर आजाद की हत्या की साजिश. नेहरू ने अंग्रेजों से की थी चंद्रशेखर आजाद की मुखबिरी.” 



 गौरतलब यह है कि कपिल मिश्रा के उक्त ट्वीट में न तो चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिन का जिक्र है,न उनके प्रति किसी श्रद्धांजलि की अभिव्यक्ति ! जाहिर सी बात है कि ट्वीट आजाद को श्रद्धांजलि देने के लिए नहीं, नेहरू पर कीचड़ उछालने के लिए किया गया है. प्रश्न यह है कि नेहरू पर कीचड़ उछालने का आधार क्या है ? जिस वैबसाइट के लिंक को मिश्रा ने अपने ट्वीट के साथ लगाया है,उसमें भी इस जानकारी का कोई स्रोत या संदर्भ नहीं दिया गया है. एक खालिस गप्प है,जिसे परोसा गया है.


तो हकीकत क्या है ? चंद्रशेखर आजाद क्या नेहरू से मिले थे ? चन्द्रशेखर आजाद और नेहरू की मुलाक़ात हुई थी. इस बात का जिक्र चंद्रशेखर आजाद के साथी विश्वनाथ वैशम्पायन द्वारा लिखित पुस्तक- अमर शहीद चंद्र शेखर आजाद- में है. इस पुस्तक का सम्पादन करके प्रख्यात लेखक सुधीर विद्यार्थी ने राजकमल प्रकाशन से पुनः प्रकाशित करवाया. क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल रहे प्रख्यात लेखक यशपाल ने अपनी पुस्तक-सिंहावलोकन- में इस मुलाक़ात का उल्लेख किया. स्वयं जवाहर लाल नेहरू ने अपनी जीवनी- मेरी कहानी- में आजाद से मुलाक़ात का जिक्र किया है.






आजाद से नेहरू की मुलाक़ात के संदर्भ में “सिंहावलोकन” में यशपाल जी लिखते हैं कि “1931 के शुरू की बात कह रहा था एक दिन आजाद गोलमेज़ सम्मेलन की आशाओं और आंशंकाओं के संबंध में पंडित जवाहर लाल नेहरू से बात करने आनंद भवन गए.” इस प्रसंग में यशपाल लिखते हैं कि आजाद ने नेहरू से मुलाक़ात की बात कटरे के मकान में सुनाई थी. इस मुलाक़ात से आजाद संतुष्ट नहीं थे. यशपाल आगे लिखते हैं कि आजाद ने उनसे कहा कि “एक दिन तुम पंडित नेहरू से जा कर मिलो.”  तब वे(यशपाल) और शिवमूर्ति सिंह फरवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह में नेहरू से मिले. इस मुलाक़ात का ब्यौरा भी यशपाल ने विस्तार से लिखा है. यशपाल लिखते हैं कि उन्होने नेहरू से कहा कि वे आतंकवादी नहीं क्रांतिकारी हैं. रूस जा कर अनुभव हासिल करने के लिए नेहरू से धन की व्यवस्था करने को उन्होंने कहा. तत्काल तो नेहरू ने कुछ नहीं दिया.  यशपाल लिखते हैं कि तीसरे दिन शिवमूर्ति सिंह ने उन्हें पंद्रह सौ रुपए दिये और कहा कि शेष का प्रबंध नेहरू जी कर रहे हैं. दरअसल यशपाल ने नेहरू के पूछने पर बताया था कि रूस जाने के लिए पाँच-छह हजार रुपया लगेगा. नेहरू से अपनी मुलाक़ात के संदर्भ में यशपाल लिखते हैं “लौट कर मैंने बातचीत का ब्यौरा आजाद को बताया तो उन्हें काफी संतोष हुआ.”



यशपाल के इस वर्णन से क्या निष्कर्ष निकलता है ? पहला यह कि चन्द्रशेखर आजाद 1931 के शुरुआत में जवाहर लाल नेहरू से मिले थे. फरवरी में आजाद नहीं बल्कि यशपाल और शिवमूर्ति सिंह नेहरू से मिले थे. इसलिए आजाद का आनंद भवन से निकल कर अल्फ्रेड पार्क जाने का प्रश्न ही नहीं उठता. शिवमूर्ति सिंह ने नेहरू से यशपाल और शिवमूर्ति की मुलाक़ात के तीसरे दिन नेहरू के दिये रुपये यशपाल को लाकर दिए. यशपाल के विवरण के अनुसार उसके अगले दिन चंद्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क गए और वहाँ उनकी शहादत हुई. घटनाक्रम के ब्यौरे से साफ है कि जिस दिन आजाद की शहादत हुई,वे आनंद भवन से नहीं अपने ठिकाने से ही अल्फ्रेड पार्क गए थे.


नेहरू अपनी जीवनी- मेरी कहानी-में आजाद के साथ अपनी मुलाक़ात का तफसील से वर्णन करते हैं. नेहरू ने लिखा कि उन्होंने कोशिश की कि आजाद उनके दृष्टिबिंदु के कायल हो जायें. पर ऐसा नहीं हुआ. चंद्रशेखर आजाद के पुलिस के हाथों शहीद होने के बारे में नेहरू ने लिखा, “दो-तीन हफ्ते बाद ही जब गांधी-इरविन की बातचीत चल रही थी,मैंने दिल्ली में सुना कि चन्द्रशेखर आजाद पर इलाहाबाद में पुलिस ने गोली चलाई और वह मर गया.”


यशपाल और नेहरू की पुस्तकों के ब्यौरे से स्पष्ट है कि चंद्रशेखर आजाद की शहादत के मामले में नेहरू पर कीचड़ उछालने का कुत्सा प्रयास किया जा रहा है.



एक व्यक्ति या एक राजनेता के तौर पर निश्चित ही नेहरू से ढेरों असहमतियाँ हैं या हो सकती हैं. उनकी जायज आलोचना भी हो सकती है. लेकिन एक व्यक्ति जो देश की आजादी की लड़ाई में लगभग नौ साल तक जेल में रहा,उसे मुखबिर कहना,दरअसल उस पूरे स्वतन्त्रता संग्राम पर ही कीचड़ उछालना है.कपिल मिश्रा राजनीति में जहां पहुँच गए हैं,वहाँ उनके पास देने या उछालने को कीचड़ के अलावा कुछ है भी नहीं.



 बहुत साल से अपने आई.टी. सेल के जरिये व्हाट्स ऐप में इस तरह के कई झूठ इतिहास के नाम पर परोसे जा रहे हैं. यह भी रोचक है कि विश्वनाथ वैशम्पायन,यशपाल और भगवान दास माहौर की पुस्तकों में आजाद की मुखबिरी करने वाले का नाम भी साफ-साफ लिखा गया है. पर इन मुखबिरों के खिलाफ न कपिल मिश्रा और न आई.टी. सेल एक शब्द बोलता है. इन मुखबिरों से बिरादराना है क्या ?कई साल व्हाट्स ऐप पर प्रसारित करने के बाद ये झूठ, ट्विटर की आभिजात्य दुनिया में भी फैलाये जाने शुरू कर दिए गए  हैं. इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और विकृत इतिहास बोध गढ़ने की ऐसी कोशिशों को समूल नष्ट करना ही सच्चा देशप्रेम है.



चंद्रशेखर आजाद दंगाईयों के नहीं,क्रांतिकारियों के नायक हैं.

चंद्रशेखर आजाद को इंकलाबी सलाम.  


-इन्द्रेश मैखुरी

 


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1 Comments

  1. ये बात सही कहि भैजी कपिल मिश्रा ऐसी जगह पहुंच गए जहां उनके पास कीचड़ के सिवाय कुछ देने के लिए नहीं है

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