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संवेदनहीनता की इंतहा


संयुक्त अरब अमीरात से टिहरी गढ़वाल निवासी कमलेश भट्ट का शव भारत आया और दिल्ली में शव को हवाई जहाज से नीचे ही नहीं उतरने दिया गया. ऐसा सिर्फ कमलेश भट्ट के शव के साथ ही नहीं हुआ बल्कि दो और लोगों-जसगीर सिंह और संजीव कुमार के शव के साथ भी ऐसा ही सलूक हुआ.ये दोनों पंजाब के रहने वाले थे. इन तीनों के शव अबु धाबी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से दिल्ली भेजे गए परंतु उन्हें नीचे ही नहीं उतरने दिया गया. 






यू.ए.ई. में भारत के राजदूत पवन कपूर का वहाँ के अखबार गल्फ टाइम्स में बयान छपा है कि वे इस घटना से हैरत में हैं. कपूर का यह भी कहना है कि वे कोरोना के संक्रमण से हुई मौत वाले शवों को भारत नहीं भेज रहे हैं. फरवरी में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका में भारत सरकार के जवाब के अनुसार विदेश से मृतकों के शव भारत लाने के लिए जो आवश्यक दस्तावेज़ चाहिए,उनमें संबन्धित देश के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी  मृत्यु प्रमाणपत्र,जिसमें मृत्यु के कारण का उल्लेख हो,संबन्धित देश के उच्च आयोग से अनापत्ति प्रमाण पत्र, शव के संलेपन का प्रमाण पत्र और पासपोर्ट की कैन्सल प्रति.




कमलेश भट्ट और अन्य दो युवाओं के शवों के मामले में ऐसा कोई नहीं कह रहा है कि उनके पास उक्त दस्तावेज़ नहीं थे.
यू.ए.ई. के अखबार खलीज टाइम्स के अनुसार भारतीय दूतावास,भारतीय अधिकारियों के साथ इस मसले को सुलझाने में लगा हुआ है. पर भारत पहुँच चुके शवों को,जो कोरोना संक्रमित भी नहीं थे,उन्हें वापस भेज कर मसला सुलझाने की कैसी कवायद कर रही है,भारत सरकार ? राजदूत विदेश में भारत सरकार का प्रतिनिधि होता है. इस पूरे प्रकरण में जिस तरह से राजदूत के प्रमाणपत्र को तक देश में स्वीकार नहीं किया गया तो भारत सरकार ने क्या एक तरह से अपने ही एक प्राधिकारी को नीचा नहीं दिखाया ? मृत लोगों के शवों जैसे संवेदनशील मसले पर राजदूत के प्रमाणपत्र की उसके देश में कोई हैसियत नहीं है तो राजनयिक-कूटनीतिक मसलों पर उसकी बात को दूसरा देश,उसके देश की सरकार की बात कैसे समझेगा ?




फर्ज कीजिये कि कुछ अन्य दस्तावेजों की आवश्यकता थी तो क्या देश पहुँच चुके  शवों को वापस भेजना ही उन दस्तावेजों को हासिल करने का रास्ता था ? क्या यह मृत व्यक्ति की गरिमा से खिलवाड़ नहीं है ? अपने जवान बेटा की मौत का गम झेल रहे परिजनों को भारत सरकार ऐसे संवेदनहीन व्यवहार के जरिये किस बात की सजा दे रही है ?




खलीज टाइम्स में छपी रिपोर्ट बता रही है कि जिस दौरान दिल्ली में तीन युवाओं के शवों को उतारने से इंकार किया गया,लगभग उसी समय अबु धाबी से चेन्नई एयरपोर्ट पर दो शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया. क्या भारत सरकार में कोई यह बता सकता है कि एक ही देश में ये दो पैमाने क्यूँ हैं ?




गल्फ टाइम्स लिखता है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर खाड़ी देशों से केरल के लोगों के शवों को भारत लाये जाने में विलंब के मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया है. क्या ऐसे संवेदनशीलता की अपेक्षा उत्तराखंड की सरकार से भी की जा सकती है ?





अँग्रेजी न्यूज़ पोर्टल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार मृतक कमलेश भट्ट के परिजनों ने भारत सरकार की संवेदनहीनता के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है. उक्त रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस संजीव सचदेवा के समक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के लिए प्रस्तुत याचिका में केंद्र की तरफ से जवाब देते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता मनिंदर आचार्य ने कहा कि यह इस तरह का एकलौता  मामला है और भारत सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर बनाने की प्रक्रिया में लगा हुआ है,ताकि भविष्य में इस तरह की दिक्कत न हो. यह जवाब सरकारी ढीलेपन और संवेदनहीनता को खुद ही प्रकट कर देता है. काश कि संवेदनशील होने का भी कोई स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर होता भारत सरकार के पास !


-    इन्द्रेश मैखुरी 





नोट- चित्र वरिष्ठ पत्रकार श्री वेद भदोला जी के फ़ेसबुक अकाउंट से साभार लिया गया है.

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