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असनोड़ा परिवार की स्वागत योग्य पहल


यह कठिन समय है. कोरोना के कहर के चलते तमाम दैनंदिन गतिविधियां बाधित हैं. ऐसे समय में किसी परिवार के मुखिया का दुनिया से चले जाना, उस परिवार के लिए और भी मुश्किल स्थिति पैदा कर देता है. परिजन या आत्मीय जन का किसी परिस्थिति में बिछोह हृदयविदारक ही होता है. पर इस कोरोना काल में  स्थिति और कठिन हो जाती है. परंपरागत धार्मिक तौर तरीके वालों के लिए भी बंदिश है कि जो कुछ करना है,लॉकडाउन की पाबंदियों के दायरे में ही करना है.




इस सब के बीच जो रास्ता असनोड़ा परिवार ने अपनाया,वह हमेशा के लिए विदा हो चुके अपने आत्मीय जन को याद करने का सबसे बेहतर रास्ता है.  गैरसैंण निवासी वरिष्ठ पत्रकार पुरुषोत्तम असनोड़ा का बीते 15 अप्रैल को एम्स ऋषिकेश में उपचार के दौरान देहावसान हो गया. असनोड़ा जी पत्रकार होने के साथ-साथ गैरसैंण में पुस्तकों की दुकान चलाते थे. इस दुकान में वे सिर्फ किताबें बेचते नहीं थे,बल्कि जरूरतमन्द छात्र-छात्राओं को अपनी तरफ से निशुल्क दे दिया करते थे. यह काम वे बेहद खामोशी से करते थे.

असनोड़ा जी के परिवार ने धार्मिक कर्मकांड करने के बजाय, श्रद्धांजलि देने के लिए,उनका ही तरीका चुना. लॉकडाउन अवधि में रोजी-रोटी के संकट का सामना कर रहे लोगों को असनोड़ा परिवार ने लगभग 25 किलो का राशन किट वितरित किया. ऐसे परिवार जो बेहद जरूरतमंद,उनको चिन्हित किया गया और फिर जरूरतमंद 31 परिवारों को राशन का यह किट दिया गया,जिसमें दाल,चावल,आटा,चीनी,चायपत्ती,मसाले,तेल,साबुन आदि सामग्री है.

 जिन परिवारों को सामग्री दी गयी,उनमें कुछ स्थानीय निर्धन परिवार हैं तो कुछ नेपाली मजदूर हैं. असनोड़ा परिवार का इरादा है कि वह जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को कॉपी-किताबें देने के  पुरुषोत्तम असनोड़ा जी के सिलसिले को जारी रखे.



असनोड़ा परिवार की यह पहल स्वागत योग्य और अनुकरणीय है. 

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