( द वायर में अंग्रेजी में प्रस्तुत रिपोर्ट का हिंदी अनुवाद)
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी- लेनिनवादी) लिबरेशन, जो राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ चुनाव आयोग द्वारा चलाए जा रहे "विशेष गहन पुनर्रीक्षण" (एसआईआर) का विरोध करने में अग्रिम पांत में रही है, ने अब गैरकानूनी तरीके से वोटरों के नाम काटे जाने के प्रथम दृष्टया सबूत, उन कुछ विधानसभा क्षेत्रों से प्रस्तुत किये हैं, जहां उसके कार्यकर्ताओं ने भौतिक सत्यापन किया है.
गौरतलब है कि अपनी सत्यापन की जमीनी कवायद के बीच भाकपा (माले) ने जो पहली दो शिकायतें दर्ज कराई हैं, वो उन गांवों से जुड़ी है, जिनमें यादवों की बहुलता है - उस समुदाय की जो कि राष्ट्रीय जनता दल के समर्थन का स्रोत माना जाता है. पार्टी ने यह भी पाया कि विभिन्न दलित समुदायों के वोटरों के नाम भी काटे गए हैं.
पार्टी ने जारी एक बयान में एक राजनीतिक कार्यकर्ता और बूथ स्तरीय सहायक (बीएलए) अमित कुमार पासवान द्वारा बिहार के दरभंगा जिले के जिलाधिकारी को लिखी शिकायत को रेखांकित किया.
पासवान ने अपनी शिकायत में दावा किया कि बहादुरपुर विधानसभा क्षेत्र के बांधबस्ती गांव के जिन 59 लोगों के नाम मसौदा मतदाता सूची में काट दिये गए हैं, उनमें से 20 जीवित और इसी गांव में रहते हुए मिले हैं.
पार्टी ने कहा कि "इस बूथ में कुल 818 मतदाता हैं. इन 818 वोटरों में से मसौदा एसआईआर सूची में 59 नाम काटे गए. धरातल पर मौजूद भाकपा (माले) की टीम ने पाया कि इन 59 में से 20 लोग उसी बूथ में रहते हैं, जिनकी उपस्थिति भौतिक रूप से सत्यापित की गयी है."
साथ ही पार्टी ने कहा कि " इस नाम काटे जाने के बारे में आश्चर्यजनक यह है कि दो लोग- मोतीलाल यादव और ध्यानी यादव, जिनका नाम शिकायत पत्र में क्रम संख्या 1 और 10 पर है- उनका नाम 2003 की मतदाता सूची में था और फिर भी वे चुनाव आयोग द्वारा की जा रही मताधिकार से सामूहिक तौर पर वंचित करने की कार्रवाई का हिस्सा हैं." पार्टी ने आरोप लगाया कि एसआईआर की सारी कवायद हाशिये के लोगों को मताधिकार से वंचित करना का षड्यंत्र है और पार्टी ने इसे "वोटबंदी" नाम दिया है.
चुनाव आयोग ने कहा कि एसआईआर की मसौदा सूची से 65 लाख नाम काटे गए हैं, जिसको चुनाव आयोग द्वारा आपत्तियों व प्रतिदावों के बाद सितंबर में संशोधित किया जाएगा.
भाकपा (माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने भी ऐसा ही दावा फेसबुक पेज पर की गये पोस्ट में किया, जहां उन्होंने आरा जिले के एक विधानसभा क्षेत्र में मसौदा मतदाता सूची में नाम काटे जाने की पांच शिकायतें पोस्ट की हैं.
पार्टी ने एक वीडियो भी जारी किया जिसमें एक भाकपा (माले) कार्यकर्ता, फुलवारी विधानसभा क्षेत्र के धाराचयक नामक एक यादव बहुल गांव में कुछ ऐसे वोटरों से बात कर रहा है, जिनके नाम काट दिये गये हैं. पार्टी का दावा है कि इस गांव के बूथ संख्या 83 और 84 में से 180 वोटरों के नाम काटे गए और इनमें से अधिकांश अपने घरों में ही मिले. पार्टी ने पूछा कि अगर एक गांव में यह हालत है तो पूरे राज्य के 90000 से अधिक बूथों में "मताधिकार से वंचित किये जाने" की व्यापकता कितनी होगी. " सामूहिक रूप से मताधिकार से वंचित किया जाना, हमारे संविधान और हमारे लोकतंत्र पर धब्बा है. कई पत्रों और अनुरोधों के बावजूद चुनाव आयोग नाम काटे जाने के कारणों को सूचीबद्ध नहीं कर रहा है. यही तौर तरीका बिहार के विभिन्न जिलों में अपनाया जा रहा है. जिले और राज्य के अधिकारियों के सामने शिकायत दर्ज करवाने के बावजूद, चुनाव आयोग की प्रेस विज्ञप्तियों में "शिकायत" वाले कॉलम में यह संख्या दर्ज नहीं हो रही है. यह हमारी इस शंका को बल प्रदान कर रहा है कि चुनाव आयोग सच को दबाना चाहता है और ऐसी तस्वीर पेश करना चाहता है, जिसमें विपक्षी पार्टियों की छवि धूमिल हो ", पार्टी ने अपने बयान में कहा. पार्टी ने यह भी दावा किया कि जिनके नाम काट दिये गये हैं, चुनाव आयोग उनपर वो फॉर्म 6 भरने का दबाव डाल रहा है, जो कि नए मतदाताओं के पंजीकरण के लिए होता है. " भाकपा (माले) लगातार इस मामले को उठा रही है कि जिन लोगों के वोट काट दिये गये हैं, कैसे फॉर्म 6 उन पर थोप दिया जा रहा है और इस तरह शिकायत करने का कोई तरीका ही नहीं छोड़ा जा रहा है, जिसके चलते चुनाव आयोग को अपने रोज की प्रेस विज्ञप्ति में शून्य शिकायत दर्ज होने की बात कहने की सहूलियत मिल जा रही है", पार्टी ने अपने बयान में कहा. पार्टी की मांग है कि चुनाव आयोग " तत्काल मसौदा मतदाता सूची, सबकी पहुंच के लिए हर पंचायत में प्रदर्शित करे, खास तौर पर काटे गए वोटरों के नाम, जिसमें नाम काटे जाने के कारणों (मृत्यु, स्थायी पलायन, दोहराव, पहुंच से बाहर होना आदि) का ब्यौरा हो."
अनुवाद : इन्द्रेश मैखुरी
मूल अंग्रेजी रिपोर्ट का लिंक :
https://m.thewire.in/article/government/cpiml-first-evidence-wrongful-deletions-bihar-sir
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