उत्तराखंड निर्वाचन आयोग के सचिव, राहुल गोयल बाबू, ये जो आपके निर्वाचन आयुक्त हैं ना - श्रीमान सुशील कुमार , ये रिटायरमेंट के बाद दूसरी नौकरी कर रहे हैं.
इनकी यदि ये रिटायरमेंट के बाद वाली दूसरी नौकरी चली भी जाए तो इनको ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा.पंचायत चुनाव में नियम कानूनों का जनाजा निकालने के लिए यदि इन पर कोई कार्रवाई होगी भी तो फर्क सिर्फ रिटायरमेंट के बाद वाली दूसरी नौकरी पर पड़ेगा. पहली नौकरी का पेंशन पट्टा तो बना ही रहेगा.
पर बाबू राहुल गोयल आप तो पहली ही नौकरी कर रहे हो, रिटायरमेंट की बेला भी अभी दूर है ! तो नियम कानूनों से ऐसा खिलवाड़ क्यों कर रहे हो कि उच्च न्यायालय तक झुंझला जा रहा है !
कोई सरकार, कोई सत्ता कितनी ही अपराजेय ही क्यों न दिखे, जाती जरूर है. इसलिए किसी पार्टी विशेष की सरकार के लिए लठैती करने के बजाय किसी भी अफसर को नियम कायदों के साथ रहना चाहिए. सरकारी नौकरी के प्रति वफादारी और सरकार वाले दल के प्रति वफादारी दो अलग- अलग बातें हैं. इनका घालमेल अत्याधिक हानिकारक हो सकता है.
सरकारी नौकरी के प्रति वफादारी के बजाय सरकार वाली पार्टी के प्रति प्रेम यदि अत्याधिक हिलोरें मार रहा हो और लगने लगे कि संविधान के प्रति ली गयी शपथ गौण और धाकड़- हैंडसम के प्रति वफादारी की कसम अत्याधिक प्रबल है तो तत्काल सरकारी नौकरी त्याग कर सरकार वाले दल में शामिल हो जाना चाहिए. तब वहां ट्रोल आर्मी, वोट लपक- कुर्सी झपट सेना आदि आदि का लठैत बनने की छूट रहेगी !
लेकिन जब तक आप सरकार वाली पार्टी की नहीं बल्कि सरकार की नौकरी में हैं, तब तक सरकारी कायदे कानूनों का पालन करने के बजाय सरकार वाली पार्टी को सलाम बजाने पर सवाल उठेंगे ही ! Because ultimately you are public servant you know, किसी पार्टी के चाकर नहीं जन सेवक हैं आप !
-इन्द्रेश मैखुरी
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