युद्ध होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए, इससे बचने के कुछ और विकल्प हो सकते थे/हैं या नहीं, इस पर बात हो सकती है, अलग- अलग राय हो सकती है.
लेकिन युद्धोन्माद कतई नहीं होना चाहिए, युद्ध का उन्माद, युद्ध से अधिक भयावह संवेदनहीन कृत्या है,. यह उस बात का बेजा, बेहूदा लाभ उठाने की चेष्टा है, जिसमें हासिल होने वाली किसी भी चीज में युद्धोन्माद फैलाने वालों का रत्ती भर योगदान नहीं होता. ना उनकी किसी चीज के प्रति जवाबदेही है और ना ही किसी क्षति का सामना उन्हें करना है, उन्हें तो बस छाती ठोक कर युद्ध- युद्ध का जाप करना है.
भारत -पाकिस्तान के मध्य जो हो रहा है, उसे अभी भारत सरकार ने तो युद्ध घोषित नहीं किया. लेकिन युद्धोन्माद को टीआरपी बटोरने के अवसर के रूप में देख रहे गोदी चैनलों न केवल युद्धोन्माद को हवा दे रहे हैं,बल्कि युद्ध घोषित करने का जिम्मा भी उन्होंने अपने सिर ले लिया है !एक टीवी एंकर ने तो अपने एक्स हैंडल पर बकायदा युद्ध शुरू होना का ऐलान कर दिया ! ऐसा लगा जैसे सेना और भारत सरकार ने उनको युद्ध का ऐलान करने की पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी दे दी हो !
टी वी चैनलों द्वारा घोषित कथित युद्ध की कवरेज के नाम पर वो जैसी छिछोरी हरकतें कर रहे हैं, उसे देख कर स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया के 180 देशों में यह 151 नंबर पर क्यों है !
सैन्य युद्ध कोई खेल या हंसी ठट्टा या मनोरंजन की चीज नहीं है, जिसका घर बैठे मज़ा लिया जाए. इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है और उन्हें भी चुकानी पड़ती है, जो युद्ध के विजेता कहे जाते हैं , सर्वाधिक तो वे और उनके अपने चुकाते हैं, जिनकोे सीधे मोर्चे पर मुकाबिल होना होता है. एसी स्टूडियो में फर्जी खबरों के ग्राफिक्स परोसने वाले या फिर सुरक्षित घरों के अंदर दुबक कर सोशल मीडिया पोस्ट पर युद्ध का "मजा" लेने वालों को इसकी कीमत सबसे बाद में या शायद बिल्कुल भी नहीं चुकानी पड़ती, इसलिए वे सर्वाधिक युद्ध- युद्ध चिल्लाते हैं !
-इन्द्रेश मैखुरी
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