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एम्स ऋषिकेश इलाज ही नहीं करता, इलाज की शिकायत पर अभद्रता भी करवा देता है !

 


एम्स यानि ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्सेस (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान), देश में चिकित्सा का सबसे प्रमुख संस्थान है. दिल्ली के मुख्य एम्स पर बढ़ते दबाव के चलते देश के विभिन्न कोनों में एम्स खोले गए. उत्तराखंड में एम्स 2012 में ऋषिकेश में खोला गया है.


बीते कुछ वर्षों में ऋषिकेश में स्थित एम्स अपनी चिकित्सीय गुणवत्ता के इतर कारणों के लिए चर्चा में रहा है. एक ही प्रदेश के लोगों के नियुक्ति पाने से लेकर तमाम ऐसी चर्चाएँ हैं, जो चिकित्सा के उच्चतर संस्थान को अच्छी रौशनी में नहीं प्रस्तुत करती.


ऐसा ही एक ताजातरीन मामला है, जब अखबार में मरीज से पैसे मांगे जाने की खबर छपी तो एम्स में कार्यक्रम का कवरेज करने आए पत्रकार से ही अभद्रता करवा दी गयी.


हुआ यूं कि चमोली जिले से एक युवा राहुल की गर्भवती पत्नी रेफर हो कर इलाज के लिए एम्स, ऋषिकेश पहुंची. एम्स में जब राहुल की पत्नी इलाज के लिए तड़प रही थी और कोई उसे तवज्जो नहीं दे रहा था तो उक्त युवक ने ऋषिकेश प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजीव खत्री से संपर्क किया. राजीव खत्री के प्रयास से उक्त युवक की पत्नी को भर्ती तो कर लिया गया.  लेकिन ऑपरेशन के लिए युवक से तीस से पैंतीस हज़ार रुपये मांगे गए और नवजात गहन देखभाल इकाई (एनआईसीयू) के लिए पाँच हज़ार रुपये प्रतिदिन की मांग की गयी. उक्त युवक ने यह बात राजीव खत्री को बताई तो इस आशय का समाचार, अखबार में छप गया. अखबार में एम्स का पक्ष भी छपा. उसमें एम्स के जनसंपर्क अधिकारी संदीप कुमार ने पैसे मांगने को गलत बताया और जांच कर कार्रवाई की बात बयान में कही.







 बयान तो ठीक ही था, लेकिन लगता है कि एम्स को खबर छपना बेहद नागावार गुजरा.

इसीलिए जब अगले दिन एक कार्यक्रम की कवरेज के सिलसिले में राजीव खत्री और अन्य पत्रकार एम्स पहुंचे तो वहां सुरक्षा गार्ड ने उन्हें फोटो डिलीट करने और कार्यक्रम स्थल से बाहर जाने को कहा तथा उनके साथ अभद्रता की. इसके खिलाफ पत्रकार, जनसंपर्क अधिकारी के कार्यालय के बाहर धरने पर बैठ गए. जनसंपर्क अधिकारी ने सुरक्षा कर्मी के विरुद्ध जांच कर कार्रवाई का भरोसा तो दिलाया, लेकिन हुआ कुछ नहीं. इससे प्रतीत होता है कि अपने विरुद्ध खबर छापे जाने की घटना से एम्स प्रशासन रुष्ट रहा होगा और उसने अपनी खीज उतारने के लिए सुरक्षा कर्मी को औज़ार की तरह इस्तेमाल किया.










यह तो स्पष्ट होना ही चाहिए कि एम्स जैसे ख्यातिलब्द्ध संस्थान में गर्भवती महिला के ऑपरेशन और एनआईसीयू में रखने के पैसे की मांग कौन, क्यूँ और कैसे कर रहा था. एम्स ऋषिकेश के प्रशासन को स्पष्ट करना चाहिए कि उसने इस मामले में कोई जांच की या नहीं, यदि जांच की तो परिणाम क्या निकला और किस पर, क्या कार्रवाई की गयी ?


एम्स प्रशासन को पत्रकारों पर खीज उतारने और उनके विरुद्ध बदले की भावना से कदम उठाने के बजाय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि एम्स, ऋषिकेश में आने वाले मरीजों के साथ संवेदनशीलता से पेश आया जाये और अस्पताल के भीतर उनकी हर संभव मदद करने की कोशिश की जाये. एम्स ऋषिकेश यदि सही कारणों के लिए चर्चा में रहे, यही एम्स और वहाँ आने वाले मरीजों के हित में भी होगा. पत्रकारों से अभद्रता से जैसे हथकंडे अपना कर तो छिछालेदर ही होगी !      

   

-इन्द्रेश मैखुरी

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