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कॉमरेड के.पी. चंदोला को याद करते हुए

 







कॉमरेड के.पी. चंदोला यानि कांति प्रसाद चंदोला, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य थे, भाकपा(माले) की राज्य कमेटी के सदस्य और ट्रेड यूनियन संगठन एक्टू के प्रदेश उपाध्यक्ष थे. 15 दिसंबर 2023 को फेफड़े संबंधी दिक्कतें से काफी अरसे तक जूझने के बाद लगभग 73 वर्ष की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.










वे इंटर कॉलेज में गणित-विज्ञान के प्रवक्ता थे. एक प्रतिबद्ध शिक्षा रहे, जो हमेशा शिक्षण और शिक्षा को लेकर संवेदनशील थे. शिक्षण कार्य के दौरान ही पौड़ी में अपने जनसरोकारों के लिए प्रख्यात दिवंगत राजेन्द्र रावत “राजू के जरिये वामपंथी राजनीति से उनका संपर्क हुआ. पौड़ी से तबादला हो कर वे श्रीनगर (गढ़वाल) आए तो उस जमाने में भाकपा(माले) की धारा के संगठन- आईपीएफ़ (इण्डियन पीपल्स फ्रंट) से उनका संपर्क हुआ और उसके बाद वे भाकपा(माले) के सदस्य बने.










वे एक दुबली-पतली काया के बेहद अनुशासित और समय के पाबंद व्यक्त थे. किसी भी कार्यक्रम में तय समय से दस-पंद्रह मिनट पहले पहुँचना, यह वे निरंतर किया करते थे. वे सरकारी सेवा में प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए थे. लेकिन उनके साथ रहते हुए महसूस होता था कि वे स्वयं को कभी आगे नहीं रखते थे बल्कि पीछे रह कर अपना काम करते रहते थे. उम्र में करीब तीन दशक का अंतर होने पर भी वे ऐसे पेश आते थे, जैसे हम ही बड़े हों और वे जूनियर !








लेकिन आचार-व्यवहार की इस साधारणता के बावजूद कॉमरेड के.पी.चंदोला बेहद उसूलों वाले और दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति थे.










 सरकारी इंटर कॉलेज में लंबे समय तक प्रवक्ता पद पर रहने के बाद उनका प्रधानाचार्य पद पर प्रमोशन हुआ. प्रधानाचार्य के रूप में जिस इंटर कॉलेज में उनकी पोस्टिंग हुई, उसकी ख्याति – कल्याण केंद्र- यानि खुली नकल वाले कॉलेज की थी. सत्र के शुरू में ही वे जब उस इंटर कॉलेज में प्रधानाचार्य बन कर पहुँचें तो उस इंटर कॉलेज की कल्याण केंद्र वाली छवि बदलने के इरादे को प्रदर्शित करते हुए उन्होंने ऐलान किया कि अब साल भर पढ़ाई होगी और परीक्षाओं में नकल बिलकुल नहीं होगी. अपनी बात को धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने प्रधानाचार्य होने के बावजूद खुद भी नियमित क्लास पढ़ाना शुरू किया. लेकिन शायद नकल करने-कराने वालों को दुबली पतली काया और मुलायम स्वर वाले प्रधानाचार्य की बेहद गंभीरता पूर्वक कही बात से ज्यादा भरोसा अपने नकल करने-कराने के हुनर पर था. इसलिए उन्होंने इस बात की ज्यादा परवाह नहीं की.


बहरहाल इंटरमीडियट की परीक्षाएँ आयीं. पहला पर्चा हिन्दी का हुआ और साल भर पहले की गयी घोषणा के अनुरूप प्रधानाचार्य के.पी. चंदोला ने नकल नहीं होने दी. इससे नकल करने-कराने वाले बौखला गए और उन्होंने नकल रोकने वाले प्रिंसिपल को सबक सीखने के लिए बेहद आपराधिक और कातिलाना योजना बनाई. रात को जहां चंदोला जी रहते थे, उस इलाके की बिजली काट दी गयी, उनके मकान मालिक के दरवाजे का कुंडा बाहर से बंद कर दिया गया ताकि कोई मदद के लिए बाहर न आ सके. इसके बाद लाठी-डंडों से लैस दस-पंद्रह लड़कों ने चंदोला जी के कमरे का दरवाजा तोड़ने की कोशिश शुरू की. स्थित भांप कर साहसिक निर्णय लेते हुए चंदोला जी ने दरवाजा खोल दिया. वे एक हाथ से हमलावरों के डंडों से अपना सिर बचाते रहे और दूसरे हाथ से हमलावरों से भिड़े रहे. रिटायरमेंट के मुहाने पर खड़े दुबली-पतली काया वाले प्रधानाचार्य का यह जीवट देख कर कुछ देर में हमलावर लड़कों के पांव उखड़ गए और वो भाग खड़े हुए.


अगले दिन पुलिस में शिकायत हुई और उन लड़कों की गिरफ्तारी भी हुई. लेकिन चंदोला जी उस हमले के बाद भी बेहद सामान्य थे. न उन लड़कों के प्रति उनके मन में कोई कटुता थी और ना ही कोई ऐसा भाव कि उन्होंने कोई बहुत बड़ा कारनामा कर दिया, ऐसा कोई प्रदर्शन, उन्होंने किया. बल्कि उन लड़कों के भविष्य के प्रति भी वे चिंतित ही थे.  


लेकिन शिक्षा की बेहतरी के लिए एक साधारण से दिखने वाले शिक्षक का असाधारण कारनामा तो यह था ही !









सेवानिवृत्ति से पहले भी शिक्षक और कर्मचारी आंदोलन से उनका बेहद गहरा जुड़ाव था. साथ ही शिक्षक और कर्मचारियों के बीच वैज्ञानिक चेतना के प्रसार के लिए वे निरंतर सक्रिय रहे. 











सेवानिवृत्ति के बाद वे ट्रेड यूनियन मोर्चे पर और भाकपा(माले) को संगठित करने और बढ़ाने के काम में जुटे ही रहे. जब तक वे श्रीनगर(गढ़वाल) में रहे तो वहां ट्रेड यूनियनों के राष्ट्रीय आह्वान के लिए लोगों को संगठित करना हो या फिर मई दिवस का कार्यक्रम हो, उसमें लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करवाने के लिए वे  जम कर लगते थे. अपने घर से पैदल आकर, सभी दफ्तरों में पैदल-पैदल घूम कर ही वे सभी लोगों से कार्यक्रम में उतरने का आह्वान करते थे.










देहरादून जाने के बाद वहां की ट्रेड यूनियन गतिविधियों और वाम-जनवादी संगठनों के कार्यक्रमों में वे हमारे स्थायी प्रतिनिधि थे. लॉकडाउन के दौरान भी घर से देशव्यापी प्रतिवाद में वे शामिल होते, खुद पोस्टर लिखते और फिर लाल झण्डा थामे अपना फोटो खिंचवा कर भेजते थे.









बीते कुछ समय से स्वास्थ्य की दिक्कतों के चलते, उनके लिए कहीं आना-जाना संभव नहीं रहा था, लेकिन खराब स्वास्थ्य के बावजूद भाकपा(माले) की राज्य कमेटी की ऑनलाइन बैठकों में वे लगभग अंत तक शामिल होते रहे.

कम्युनिस्ट विचारधारा और पार्टी के प्रति उनके मन में बेहद गहरा सम्मान था.











पार्टी के रांची(2013) और मानसा(2018) महाधिवेशनों में वे प्रतिनिधि के तौर पर वे शामिल हुए. इसके अलावा एक्टू के राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए थे.


 पार्टी महाधिवेशन में प्रतिनिधि बनाए जाने पर उन्होंने कहा – “ मैंने तो कभी सोचा नहीं था कि मुझे पार्टी महाधिवेशन में प्रतिनिधि बनने का मौका मिलेगा !” यह बात दरअसल पार्टी के प्रति उनके गहरे सम्मान और प्रतिबद्धता की ही अभिव्यक्ति थी, वरना पद से ही नहीं, प्रतिबद्धता, जीवट और इंसानियत के लिहाज से वे आदमी तो बहुत बड़े थे.

साधारण से दिखने वाले ऐसे असाधारण मनुष्यों से ही यह दुनिया रहने लायक जगह बनती है.

बेहद सुलझे हुए, भले इंसान और प्रतिबद्ध व प्यारे कॉमरेड के.पी. चंदोला को लाल सलाम, आखिरी सलाम !

-इन्द्रेश मैखुरी

 

   

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