8-9 दिसंबर को उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में भाजपा की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने ग्लोबल इन्वैस्टर्स समिट आयोजित करवाया.
इस समिट के आयोजन से पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने देश
और विदेश के तमाम शहरों में, इस समिट के लिए रोड शो किए. बताया
गया कि इन रोड शोज(road shows) के जरिये निवेशकों को रिझाया भी
जा रहा है और इन्वैस्टर्स समिट में बुलाया भी जा रहा है.
रोड शोज के जरिये जो निवेश के एमओयू की भारी भरकम राशि
की बौछार करने का सिलसिला शुरू हुआ, वह देहरादून में आयोजित
ग्लोबल इन्वैस्टर्स समिट तक जारी रहा. बताया गया कि निवेश के जितने एमओयू हो गए हैं, उनकी कुल रकम साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये बैठती है. यानि उत्तराखंड में साढ़े
तीन लाख करोड़ रुपये का निवेश होने वाला है.
साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को देख कर यह आभास होना
लाज़मी है कि उत्तराखंड अब समृद्धि के द्वार पर आकर खड़ा हो चुका है. एक बार एमओयू के
कागजात में मौजूद यह धनराशि धरातल पर उतरी तो उत्तराखंड में चहुं ओर खुशहाली ही खुशहाली
होगी ! पर सारा पेंच तो इस धनराशि के धरातल पर उतरने का ही है. साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये
का आंकड़ा सामने रख कर अखबारों की हैडलाइन बनाई जा सकती है, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद की पीठ भी ठोक सकते हैं, लेकिन असल बात यह है कि क्या ये एमओयू और इनमें वर्णित धनराशि जमीन पर उतरेगी
?
यह प्रश्न इसलिए है क्यूंकि अनुभव यह बताता है कि एमओयू
की धनराशि सड़क पर उतरना दूर की कौड़ी ही होता है. देश भर में ऐसे इन्वैस्टर समिट होते
हैं, उनमें एमओयू की बड़ी-बड़ी धनराशि का प्रचार भी होता है. फिर वक्त के थपेड़ों में एमओयू और उनमें
उल्लिखित कई लाख करोड़ रुपए की धनराशि जाने कहाँ बिला जाती है !
इन्वेस्टर्स सम्मिट का यह आइडिया प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का है. गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए 2003 में उन्होंने वहाँ निवेशकों
के ऐसे सम्मेलन का सिलसिला शुरू किया था, जो वहाँ भी और वहाँ की देखादेखी देश के तमाम अन्य राज्यों में भी होते हैं.
वहाँ इस कार्यक्रम के लिए ही 135 करोड़ रुपये में एक कन्वेन्शन सेंटर भी बनवाया गया
था. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी ऐसा कन्वेन्शन सेंटर बनाने का
ऐलान किया है.
गुजरात में भी बड़े-बड़े
एमओयू की चर्चा इन्वैस्टर समिट के दौरान होती है. लेकिन धरातल पर बहुत मामूली रकम ही
उतरती है.
न्यूज़क्लिक में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 2003 से
2017 के बीच 76515 परियोजनाओं के एमओयू हुए, लेकिन उनमें से आधे भी धरातल पर नहीं उतर सके.
गुजरात के 2011 के
इन्वेस्टर्स सम्मिट का आंकड़ा देखिये. इस वर्ष 21 लाख करोड़ के एम.ओ.यू. पर दस्तखत
हुए.लेकिन धरातल पर बमुश्किल 1 प्रतिशत धनराशि ही उतर सकी.
न्यूज़क्लिक की रिपोर्ट
के अनुसार गुजरात सरकार के अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा प्रकाशित गुजरात की 2017-18 की सामाजिक आर्थिक रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख
है कि 1983 से मध्य 2017 तक गुजरात सरकार के 2.75 लाख करोड़ रुपये के निवेश में, प्रति एक करोड़ में कुल चार लोगों के लिए ही रोजगार का सृजन हुआ.
2018 में उत्तराखंड के
साथ ही उत्तर प्रदेश में भी ऐसा ही इन्वैस्टर समिट हुआ. उत्तर प्रदेश के इन्वैस्टर
समिट में 4.28 लाख करोड़ रुपये के 1045 एमओयू हुए थे. दो साल बाद फरवरी 2020 में उत्तर
प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने विधानसभा में बताया कि 1045 एमओयू में से 90
पर ही काम शुरू हुआ. यह निवेश के दावों का महज नौ प्रतिशत था.
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र
सिंह रावत ने भी 2018 में इन्वैस्टर समिट करवाया था. उस समय भी एक लाख पच्चीस हज़ार
करोड़ रुपये के एमओयू होने का दावा किया गया था. निवेशकों के लिए जमीन के कानून में
ढील दे कर प्रवाधान कर दिया गया कि औद्योगिक प्रयोजन के लिए कोई जितना मर्जी चाहे जमीन
खरीद ले, उस पर कोई सीलिंग नहीं होगी और यह
भी प्रावधान कर दिया गया कि ऐसी जमीन का भू उपयोग भी स्वतः बदल जाएगा.
इतने सब के बावजूद भी
जमीन पर कोई निवेश और उससे उपजी हुई समृद्धि कहीं नज़र नहीं आ रही है. स्वयं त्रिवेंद्र रावत ने बयान दिया है कि उनके समय
में किए गए एमओयू का फॉलो अप किया जाना चाहिए !
यह तो हुई इन्वैस्टर समिट
और उसमें होने वाले एमओयू की भारी भरकम धनराशि के धरातल पर उतरने की हकीकत बताते आंकड़ों
की बात.
लेकिन देहरादून में 8-9
दिसंबर 2023 को हुई इन्वैस्टर समिट का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने जो कुछ कहा, उससे ऐसा प्रतीत हुआ
हुआ कि भारी भरकम तामझाम वाले इस आयोजन से, बहुत कुछ हासिल होने
की उम्मीद तो उनको भी नहीं है.
प्रधानमंत्री के भाषण
में उनका चिरपरिचित दर्प तो था ही. उनका दावा था कि सीमा के गांवों को उनकी सरकार ने
अंतिम गाँव नहीं, पहला
गाँव नाम दिया है. सवाल तो यह है कि एक देश में पहला गाँव, कितने
गाँव को कहा जा सकता है ?
प्रधानमंत्री के भाषण की सबसे रोचक टिप्पणी थी कि- मेड इन इंडिया की तर्ज पर वेड इन इंडिया आंदोलन शुरू करने की जरूरत है. यह एक स्तरहीन किस्म की तुकबंदी थी, जो इस बात को दर्शा रही थी कि जुमला उछालने में माहिर प्रधानमंत्री की, जुमला उछालने की क्षमता अब चुकने लगी है.
प्रधानमंत्री ने अमीर
लोगों से नाराजगी जताते हुए कहा कि वे शादी करने विदेश क्यूँ जा रहे हैं ? प्रधानमंत्री जी लोग शादी करने ही विदेश नहीं जा रहे
हैं बल्कि आपके राज में तो लोग लाखों की तादाद में देश की नागरिकता त्याग कर विदेश
जा रहे हैं. स्वयं विदेश मंत्री एस.
जयशंकर द्वारा संसद में दिये गए ब्यौरे के अनुसार सिर्फ 2022 में ही 225620 लोगों ने
भारतीय नागरिकता त्याग दी. 2015 में 131489, 2016 में 141603, 2017 में 133049, 2018
में 134561, 2019 में 144017, 2020 में
85256 और 2021 में 163370 लोगों ने देश की नागरिकता छोड़ दी.
कोई प्रधानमंत्री जी को
बताए कि सिर्फ देश में शादी करने से, यह देश छोड़ने वालों का आंकड़ा नहीं बदलने जा रहा है. देश छोड़ने वालों की यह
भारी संख्या तो उनके उस गुड गवर्नेंस के दावे पर भी करारा तमाचा है, जिसका दम, उन्होंने इन्वैस्टर समिट के अपने बड़बोले उद्घाटन
भाषण में भरा.
प्रधानमंत्री जी ने अमीर
लोगों से, धन्नासेठों से (यह शब्द उन्होंने
ही प्रयोग किया) का आह्वान किया कि वे अपने परिवार की एक डेस्टिनेशन शादी, उत्तराखंड में जरूर करें ! कुल मिला कर उत्तराखंड में निवेश का इतना ही आइडिया
प्रधानमंत्री जी के पास था !
प्रधानमंत्री जी ने कहा
कि “आप कुछ इनवेस्टमेंट कर पाओ,
न कर पाओ,छोड़ो, हो सकता है सब लोग न करें,कम से कम आने वाले पाँच साल में आपके परिवार की एक डेस्टिनेशन शादी उत्तराखंड
में करिए..... ”
प्रधानमंत्री जी का यह
वाक्यांश बताता है कि उत्तराखंड में निवेश के लिए, उनके डबल इंजन के पास शादी करने के अलावा कोई आइडिया है नहीं. प्रधानमंत्री
जी उत्तराखंड के भाग्य शादी से ही बहुरने होते तो कब के बहुर चुके होते !
धन्नासेठों की शादी उत्तराखंड
में कोई न अनोखी बात है, न यह
प्रधानमंत्री के आह्वान की मोहताज है !
उत्तराखंड में ही 2018 में पहला इन्वैस्टर समिट करवाने
के बाद 2019 में तत्कालीन भाजपाई मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने औली में दक्षिण अफ्रीका
के भगौड़े गुप्ता बंधुओं के बेटों की शादी करवा दी. इस शादी के लिए औली को खोदा गया, उच्च न्यायालय
में झूठा शपथ पत्र दिया गया कि यह जगह बुग्याल ही नहीं है ! जिस समय यह शादी हुई, उस समय दक्षिण
अफ्रीका, अपने देश
के आर्थिक अपराध के भगौड़े गुप्ता बंधुओं का संयुक्त अरब अमीरात से प्रत्यर्पण
करवाने की कोशिश कर रहा था. दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक अपराधियों की औली में यह शादी
200 करोड़ रुपये की बताई गयी थी, जिससे उत्तराखंड, को गुप्ताओं द्वारा वहाँ की गयी गंदगी ही हासिल हुई थी.
इसलिए उत्तराखंड को अमीरों की शादी स्थल बनाने का यह आइडिया, पुराना थका-पिटा है !
उत्तराखंड को शिक्षा, स्वास्थ्य और
रोजगार चाहिए, जल,जंगल, जमीन जैसे संसाधनों पर अधिकार चाहिए. यह आपका डबल इंजन दे नहीं छीन रहा है
प्रधानमंत्री जी ! इसलिए उत्तराखंड को अमीरों का शादी स्थल बनाने का यह जुमला आप उछाल
रहे हैं ! उत्तराखंड को ना तो अमीरों का वैडिंग प्वाइंट बनना है, ना अमीरों की ऐशगाह ! लेकिन आपके पास इससे बेहतर कोई आइडिया नहीं, कोई दृष्टि नहीं है, यह आपके वैचारिक दिवालियेपन का
प्रतीक है ! कुछ सौ करोड़ रुपए में आयोजित इन्वैस्टर समिट की नियति प्रधानमंत्री का
यह वाक्यांश बखूबी बताता है- आप कुछ इनवेस्टमेंट कर पाओ, न कर पाओ,छोड़ो, हो सकता है सब लोग न करें- यानि यह तय है कि अधिकांश
तो इनवेस्टमेंट करेंगे नहीं ! जो करेंगे, वे क्या और कैसा करेंगे, उस पर भी अलग से बात करने की
जरूरत है ! पर अधिकांश नहीं करेंगे यह प्रधानमंत्री जी ने बता दिया !
उत्तराखंड को इनवेस्टमेंट के जरिये समृद्धि का जो
सपना बेचा जा रहा है, उसका
खोखलापन तो प्रधानमंत्री जी ने स्वयं ही स्पष्ट कर दिया ! अपनी समृद्धि का, अपनी खुशहाली का रास्ता, उत्तराखंड को अपने संघर्ष और
जिजिविषा के दम पर खुद तलाशना होगा.
-इन्द्रेश मैखुरी
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