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उत्तराखंड लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष के इस्तीफे पर चंद बातें

 







 डॉ.राकेश कुमार ने उत्तराखंड लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष पद से बीते रोज इस्तीफा दे दिया है. 









खबरों के अनुसार वे छह साल के लिए नियुक्त किए गए थे, लेकिन 18 महीने में ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफे के साथ ही उन्होंने उत्तराखंड लोकसेवा आयोग में अपनी उपलब्धियों का ब्यौरा भी जारी किया है.











हुआ यूं कि डॉ.राकेश कुमार के इस्तीफे के साथ ही उनकी उपलब्धियों का बखान भी पोर्टल्स और सोशल मीडिया में होने लगा. एकाएक प्रश्न उठा कि बीते कुछ अरसे से तमाम गलत वजहों से चर्चा में रहे आयोग के अध्यक्ष के महिमामंडन का इतना लंबा-चौड़ा चिट्ठा कहाँ से निकल आया ! हमारे देश में यह चलन तो है कि व्यक्ति दुनिया से चला जाये तो उसके सारे गुनाहों पर पर्दा डाल कर लोग बस उसकी तारीफ ही करते हैं, उसे भला आदमी बताते नहीं अघाते ! पर यह पहली बार देखा कि आदमी ने आयोग से इस्तीफा दिया और तुरंत उसकी तारीफ़ों के पुल बांधे जाने लगे, गोया वह इन्हीं तारीफ़ों के पुलों पर गाड़ी दौड़ा कर घर वापस जाने वाला हो !


थोड़ा दरियाफ्त करने पर मालूम पड़ा कि तारीफ़ों की यह कसीदाकारी डॉ. साहब खुद ही अपने लिए कर गए हैं. तारीफ़ों के पुल जो यहां-वहां तामीर किए जा रहे हैं, उनके रेत, गारे, सीमेंट के सप्लायर डॉ. साहब खुद ही हैं. उन्होंने अपनी तारीफ़ों के पुल बनाए और कॉपी-पेस्ट पत्रकारिता वालों ने उन उपलब्धियों के पुलिंदों को तत्काल महानता के किस्सों के तौर पर प्रचारित-प्रसारित कर दिया !  


यह इसी साल के जनवरी के महीने की बात है कि उत्तराखंड लोकसेवा आयोग द्वारा डॉ.राकेश कुमार की सदारत में पटवारी भर्ती परीक्षा आयोजित की गयी और उस परीक्षा का पेपर लीक हो गया. इस परीक्षा का पेपर लीक कराने वाला कोई और नहीं बल्कि उत्तराखंड लोकसेवा आयोग के अतिगोपन का अनुभाग अधिकारी संजीव चतुर्वेदी बताया गया. गौरतलब है कि पटवारी और अन्य परीक्षाएँ, उत्तराखंड लोकसेवा आयोग को राज्य सरकार द्वारा तब सौंपी गयी, जब उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (यूकेएसएसएससी) द्वारा आयोजित परीक्षाओं में धांधली पकड़ी गयी. जाहिर सी बात है कि डॉ.राकेश कुमार की अध्यक्षता वाले आयोग से यह अपेक्षा थी कि वह परीक्षा साफ-सुथरे तरीके से हो, लेकिन वहाँ तो पहले ही कौर में पेपर लीक की मक्खी निकल आई !


डॉ.राकेश कुमार अध्यक्षता में ही उत्तराखंड लोकसेवा आयोग ने 12 फरवरी 2023 को पटवारी भर्ती की परीक्षा पुनः कराई. कुछ जगह से शिकायत आई की उक्त परीक्षा के पेपर की सील पहले से टूटी हुई थी. पेपर के सील पहले से टूटे होने के मामले में पुलिस के जरिये सफाई देते हुए उत्तराखंड लोकसेवा आयोग द्वारा कहा गया कि “...प्रत्येक प्रश्नपत्र पर सील लगाई होती है, जिसकी कभी-कभी यातायात के दौरान टूटने की संभावना हो सकती है...”








 यह बेहद हास्यास्पद एवं कुतर्की किस्म का स्पष्टीकरण था. पेपर या उसकी सील, काँच या मिट्टी की नहीं होती, जो सड़क के हिचकोलों से चूर-चूर हो जाये !

05 मार्च 2023 को उत्तराखंड लोकसेवा आयोग ने कनिष्ठ सहायक की परीक्षा कराई. उक्त परीक्षा के प्रश्नपत्रों के अलग-अलग सेटों में प्रश्नों का क्रमांक एक समान था. जब इस मामले में सवाल उठा तो डॉ.राकेश कुमार की अध्यक्षता वाले आयोग ने सफाई दी कि प्रश्नपत्रों के “सभी सीरीज में प्रश्नों का क्रमांक एक समान होने से परीक्षा की सुचिता किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं हुई है.” 











लेकिन इस बात का कोई जवाब नहीं है कि यदि प्रश्नपत्रों की सभी सीरीज में प्रश्नों का क्रमांक एक ही रहना है तो प्रश्नपत्रों को अलग-अलग सीरीज में छापने का औचित्य क्या था ?  


2016 के बाद उत्तराखंड में 2022 में पीसीएस की परीक्षा आयोजित हो सकी. पीसीएस प्री की परीक्षा में लगभग दर्जन भर सवाल गलत थे. सवालों के गलत होने के इस क्रम के रोकने के आयोग ने नायाब नुस्खा निकाला. किसी प्रश्न के गलत होने का दावा करने पर पचास रुपया फीस लगा दी गयी ! यह अद्भुत किस्म का न्याय, डॉ.राकेश कुमार की अध्यक्षता वाले आयोग ने किया कि गलत प्रश्न का जुर्माना भी, परीक्षार्थियों से ही वसूला गया !


 ऐसा नहीं कि ये सब बातें पहले लिखी या बोली नहीं गयी बल्कि इससे अधिक ही लिखा-बोला गया है. लेकिन डॉ. राकेश कुमार के इस्तीफे के साथ कल जो तारीफ़ों के पुल बांधे गए, उसकी बुनियाद में क्या-क्या गैरजिम्मेदारना है, यह बताना आवश्यक है, इसलिए पुनः इस सब का दोहराव आवश्यक हो गया.  


डॉ.राकेश कुमार आईएएस थे. उन्होंने सरकारी सेवा से वीआरएस लिया. उत्तराखंड तो बना ही इसलिए है कि रिटायरमेंट के बाद अफसरों के लिए सरकारी गाड़ी- बंगले का इंतजाम बदस्तूर बना रहे. यहां यह चलन है कि इधर अफसर रिटायर हुआ नहीं और उधर उसके हाथ में नया नियुक्ति पत्र आया नहीं !


लेकिन इसमें भी डॉ.राकेश कुमार का मामला थोड़ा विशिष्ट है. उन्होंने इसलिए वीआरएस नहीं लिया था कि वे जल्द रिटायर होने वाले थे. उनके वीआरएस लेते समय अखबारों में खबरें छपी थी कि वे दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर थे और उन्होंने प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़ाने का आवेदन दिया. उस समय छपी खबरों के अनुसार जब उनकी प्रतिनियुक्ति अवधि बढ़ाने की अर्जी मंजूर नहीं हुई तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इस बात से तो ऐसा प्रतीत होता है कि वे राज्य में नहीं लौटना चाहते थे. लेकिन उसके कुछ दिनों के बाद ही वे उत्तराखंड लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष के तौर पर उत्तराखंड आ गए.


हैरानी प्रकट की जा रही है कि डॉ.राकेश कुमार ने अचानक इस्तीफा क्यूं दिया ? प्रश्न यह नहीं है, सही प्रश्न यह है कि जब उनकी नाक के नीचे पेपर लीक की घटना हो गयी तो उन्हें हटाया क्यूं नहीं गया, उन पर जांच क्यूं नहीं बैठाई गयी ?  


सवाल तो यह भी है कि कोई उत्तराखंड लोकसेवा आयोग या ऐसे ही किसी भी और आयोग का अध्यक्ष बनने के लिए आईएएस की नौकरी क्यूं छोड़ेगा ? आखिर ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं, उत्तराखंड लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष पद में कि डॉ.राकेश कुमार ने आईएएस छोड़ कर यह पद मंजूर किया ?  अखबारों ने लिखा कि वे राजनीतिक दबाव से परेशान थे ! राजनीतिज्ञों की कृपा से मिले पद पर बैठ कर, अगर डॉ.राकेश कुमार उनकी कृपा से मुक्त रहने का ख्वाब देख रहे थे तो उनसे भोला और नादान कौन है, दुनिया में ?  


कुल जमा बात यह है कि उत्तराखंड में सरकारी नौकरी की आस लगाए युवाओं की राह में कई कांटे हैं, राकेश कुमार साहब ने भी, उन कांटों को कम करने के लिए कोई ठोस काम तो किया नहीं. डॉ.राकेश कुमार तो फिर कहीं,कोई और पोस्ट रिटायरमेंट असाइनमेंट पा जाएँगे, उनका ही कोई सेवानिवृत्त नौकरशाह बंधु-बांधव, उत्तराखंड लोकसेवा की गद्दी पर सत्ता द्वारा बैठा दिया जाएगा. लेकिन राज्य में रोजगार के अवसरों की जो लूट मची है, वो कब रुकेगी, रोजगार के लुटेरों को सजा कब होगी, यह बड़ा सवाल है !


-इन्द्रेश मैखुरी   

      

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1 Comments

  1. उत्तराखण्ड लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष की अजब-गजब कहानी।

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