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क्या इतनी सी बात के लिए थाने बुलाया जाएगा, मुकदमा किया जाएगा ?

 










प्रति,

1.                 श्रीमान पुलिस महानिदेशक महोदय,

   उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय, देहरादून(उत्तराखंड)

 

2.                श्रीमान वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक महोदय,

      नैनीताल (उत्तराखंड)

 

 

 

महोदय,

        फेसबुक पर कोई लिखे कि “जोशीमठ में सरकार के प्रयास नाकाफी- तो क्या इस बात के लिए जांच होगी, क्या जांच, एक कोतवाली से दूसरी कोतवाली ट्रांसफर होगी ? क्या इस वाक्य में कोई आपत्तिजनक या भड़काऊ या विधि विरोधी बात है ?  क्या यह ऐसी बात है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के दायरे से बाहर है ? क्या उत्तराखंड ऐसी अवस्था में पहुँच चुका है, जहां सरकार की जरा सी आलोचना करते ही व्यक्ति को पुलिस तलब कर लेगी ?












यह सवाल मैं इसलिए पूछ रहा हूँ क्यूंकि हमारी पार्टी- भाकपा(माले) के राज्य कमेटी सदस्य कॉमरेड कैलाश पांडेय को हल्द्वानी कोतवाली से मोबाइल नंबर 9410518019 से फोन आया. फोन करने वाले व्यक्ति ने उन्हें बताया कि वो हल्द्वानी कोतवाली से बोल रहे हैं. फोन करने वाले का कहना था कि कॉमरेड कैलाश पांडेय ने फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट लिखी है. दरियाफ़्त करने पर बताया कि “जोशीमठ को लेकर सरकार के प्रयास नाकाफी”-इस शीर्षक को लेकर श्रीनगर(गढ़वाल) कोतवाली में मामला है, जो हल्द्वानी ट्रांसफर हुआ है ! सहज ही यह प्रश्न मन में आता है कि यह  कहना मात्र, क्या इतना संगीन अपराध है कि मामला एक कोतवाली में दर्ज होगा और फिर वहाँ से दूसरी कोतवाली हस्तांतरित होगा ? गढ़वाल से कुमाऊँ मण्डल तक मामले के पहुँचने से तो ऐसा लगता है कि पूरे राज्य की पुलिस ही इस मामले में लगी हुई है ! ऐसे निरुद्देश्य किस्म के मामलों की जांच पर अपना समय लगा कर उत्तराखंड पुलिस को क्या हासिल होगा ?      

 

कॉमरेड डॉ.कैलाश पांडेय, भाकपा(माले) की केंद्रीय कमेटी के सदस्य हैं. ढाई-तीन दशक से सामाजिक सरोकारों से जुड़े हैं. तीन विषयों में गोल्ड मेडलिस्ट हैं. एक ऐसे व्यक्ति को, एक सामान्य सी पोस्ट के लिए, जो उनका बयान भी नहीं है, बल्कि अखबार में छपी हुई बात है, पुलिस जांच का सामना करना होगा ? और यह विशिष्टता का मसला नहीं है बल्कि किसी भी सामान्य व्यक्ति को इतनी सी बात लिखने के लिए या शेयर करने के लिए पुलिस जांच का सामना क्यूँ करना पड़े ? प्रसंगवश यह भी कहना है कि जोशीमठ में यदि सरकार के प्रयास नाकाफी नहीं होते तो तीन महीनें से सैकड़ों की तादाद में बारिश और बर्फबारी के बीच भी स्थानीय महिला-पुरुष आंदोलन क्यूँ कर रहे होते ?


  महोदय, इतनी सी बात के लिए पुलिस द्वारा जांच किया जाना और जांच के लिए कोतवाली तलब करना, निश्चित ही उत्पीड़नकारी कार्यवाही है, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के संवैधानिक अधिकार का अतिक्रमण है. इस कार्यवाही पर लगाम लगाई जाये. साथ ही यह भी निवेदन करना है कि पुलिस को अपनी ऊर्जा और समय, इस तरह के निरर्थक मामलों पर नहीं खर्च करना चाहिए. उम्मीद है कि आप इस बात का संज्ञान लेते हुए कॉमरेड कैलाश पांडेय को कोतवाली तलब करने की कार्यवाही और इस निरर्थक जांच पर रोक लगाएंगे.


सधन्यवाद,

सहयोगाकांक्षी,

इन्द्रेश मैखुरी

राज्य सचिव

भाकपा(माले)

उत्तराखंड  

      


(यह पत्र व्हाट्स ऐप और ईमेल के जरिये भेज दिया गया है)                  

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