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नैनीताल की सड़कों पर हेलंग के लिए इंसाफ की आवाज़

 












01 सितंबर को कुमाऊँ भर के आंदोलनकारियों का हुजूम नैनीताल की सड़कों पर उतरा. लंबे अरसे बाद नैनीताल इस तरह के बड़े प्रदर्शनों का गवाह बना, जब मल्लीताल में गोविंद बल्लभ पंत की मूर्ति पर इकट्ठा हुआ आंदोलनकारियों का हुजूम, माल रोड पर निकला, तल्लीताल डाट पर गांधी जी की मूर्ति के सामने, उत्तराखंड आंदोलन के दौरान 01 सितंबर 1994 को घटित खटीमा गोलीकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी और उसके बाद कुमाऊँ कमिश्नरी पर जा कर यह विशाल जुलूस, सभा में तब्दील हो गया.
















 “जल-जंगल-जमीन हमारी नहीं सहेंगे, धौंस तुम्हारी”, “दिल्ली-देहरादून सुनो, उत्तराखंड हमारा है”, “पुष्कर सिंह धामी होश में आओ, संसाधनों के लुटेरों का संरक्षण बंद करो”, “नौकरी के लुटेरों का संरक्षण बंद करो”, “जल-जंगल-जमीन की जंग-हेलंग-हेलंग” जैसे नारों से लगभग तीन-चार घंटे नैनीताल की सड़कें और कमिश्नरी गूँजती रही.












15 जुलाई को चमोली जिले के हेलंग में केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ़) व  उत्तराखंड पुलिस द्वारा महिलाओं से घास छीनने की घटना का प्रतिवाद करने और उत्तराखंड सरकार द्वारा डेढ़ महीने बाद भी किसी दोषी अधिकारी- कर्मचारी पर कोई कार्यवाही न किए जाने के विरुद्ध उत्तराखंड भर के आंदोलनकारी संगठनों का कुमाऊँ मंडल के मंडल मुख्यालय पर यह प्रदर्शन था.














गौरतलब है कि हेलंग में 15 जुलाई को हुई घटना के बाद प्रदेश भर के आंदोलनकारियों ने हेलंग एकजुटता मंच का गठन करके, इस घटना के दोषियों के विरुद्ध निरंतर अभियान चलाया है. इस क्रम में 19 जुलाई को प्रदेश भर में राज्य सरकार को दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही के लिए ज्ञापन भेजे गए. 24 जुलाई को हेलंग में प्रदेश भर के आंदोलनकारी जुटे. 01 अगस्त को पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन आयोजित किए गए. 09 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की वर्षगांठ पर प्रदेश भर की आंदोलनकारी महिलाओं ने हेलंग कूच किया और अब 1 सितंबर को कुमाऊँ कमिश्नरी पर प्रदर्शन हुआ. साथ ही देहरादून में भी गढ़वाल कमिश्नर के कार्यालय पर प्रदर्शन किया गया.












हेलंग की घटना के संदर्भ में आंदोलनकारियों की मांग है कि :

   

·        महिलाओं से घास छीनने, उन्हें छह घंटे हिरासत में रखने और डेढ़-दो साल की बच्ची को एक घंटे तक कस्टडी में रखने वाले सीआईएसएफ़ और पुलिस कर्मियों को निलंबित कर, उनके खिलाफ वैधानिक कार्यवाही अमल में लायी जाये.

·        इस मामले में पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर उत्पीड़ित महिलाओं के विरुद्ध अभियान चलाये हुए चमोली के जिलाधिकारी- श्री हिमांशु खुराना को तत्काल उनके पद से हटाया जाये और पहली बार जिलाधिकारी नियुक्त होने के बाद ऐसी पूर्वाग्रह युक्त कार्यवाही करने को ध्यान में रखते हुए उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर नियुक्त न किया जाये.

·        वन पंचायत नियमावली का उल्लंघन करके ली गयी वन पंचायत की तथाकथित स्वीकृति को रद्द किया जाये, इस अवैध अनुमति को आधार बना कर पेड़ काटने वालों के खिलाफ वैधानिक कार्यवाही की जाये. इसी तरह ग्राम सभा की भी गुपचुप ली गयी तथाकथित अनुमति को निरस्त किया जाये.  

·        टीएचडीसी के विरुद्ध मलबा नदी में डालने और पेड़ काटने के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर, वैधानिक कार्यवाही अमल में लाई जाये. टीएचडीसी व अन्य परियोजना निर्माता कंपनियों के कामों की जनता की भागीदारी के साथ मॉनिटरिंग (अनुश्रवण) की व्यवस्था की जाये.  

·        हेलंग प्रकरण की जांच, उच्च न्यायालय के सेवारत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश से करवाई जाये

इस संदर्भ में राज्य सरकार ने गढ़वाल के कमिश्नर को जांच सौंपी थी. जांच का ऐलान करते हुए, 21 जुलाई को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि कमिश्नर को त्वरित रूप से जांच के आदेश दिये गए हैं. त्वरित रूप से आदेशित जांच की गति का आलम है कि घटना के डेढ़ महीने बाद भी गढ़वाल कमिश्नर न तो मौके पर गए हैं और ना ही उन्होंने सीआईएसएफ़ और पुलिस उत्पीड़न की शिकार महिलाओं से मुलाक़ात की जहमत उठाई है. अलबत्ता दो बार चमोली के अपर जिलाधिकारी जरूर हेलंग में पीड़ित महिलाओं के घर हो आए और आश्वासन दे आए कि उन्हें घास काटने से कोई नहीं रोकेगा और उनके चारागाह की जमीन पर मलबा भी नहीं डाला जायेगा. लेकिन कार्यवाही के नाम पर अब तक निल बट्टे सन्नाटा ही है.

01 सितंबर की नैनीताल की सड़कों पर हुए प्रदर्शन से स्पष्ट हो गए, न केवल हेलंग के मामले में बल्कि जल-जंगल-जमीन की लूट के किसी मामले में प्रदेश के आंदोलनकारी और जनपक्षधर ताक़तें पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. हेलंग मामले में भी वे लड़ाई के नित नए कदमों का ऐलान कर रहे हैं. प्रदेश के संसाधनों की लूट के विरुद्ध यह संघर्ष धीरे-धीरे, सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहा है. पुराने दौर का  नारा, जो इस आंदोन में फिर गूंज रहा है- जल-जंगल-जमीन हमारी, नहीं सहेंगे धौंस तुम्हारी- आशा करनी चाहिए कि यह नारा साकार हो !

-इन्द्रेश मैखुरी    

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