08 जुलाई को अमरनाथ में बादल फटने के चलते हुए तबाही
से लगभग 17 तीर्थयात्री प्राण गंवा बैठे और 48 के करीब घायल हो गए, कई लोग लापता बताए
जा रहे हैं.
इस दुर्घटना की जो तस्वीरें और वीडियो सामने आए हैं, उन्हें देख कर
लगता है कि किसी तरह की या तो दुर्घटना की कोई आशंका नहीं थी या फिर उस ओर ध्यान ही
नहीं था. तस्वीरों और वीडियो में दिख रहा है कि सैकड़ों की तादाद में टेंट लगे हैं, ऊपर से जब भारी
मात्रा में पानी आया तो वह उस पूरे इलाके में घुसा, जहां पर टेंट लगे थे. अमरनाथ गुफा के
सामने ही 100 मीटर की दूरी पर पूरी टेंट कॉलोनी बसाई गयी थी.
अंग्रेजी अखबार- इंडियन एक्सप्रेस ने इस पूरी दुर्घटना में बरती गयी लापरवाही पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी निरुपमा
सुबरामणियम और बशारत मसूद की रिपोर्ट बताती है कि पिछले साल भी उसी जगह पर बाढ़ आई थी, लेकिन फिर भी वहां पर न केवल टेंट कॉलोनी बनाई गयी,
बल्कि लंगर लगाने की अनुमति भी दी गयी.रिपोर्ट के अनुसार ऐसा इसलिए किया गया ताकि ज्यादा
से ज्यादा लोगों को ठहराया जा सके.
पिछले साल चूंकि
अमरनाथ यात्रा कोरोना की वजह से नहीं चली थी, इसलिए ऐसी बड़ी दुर्घटना
नहीं हुई. उस समय वहां लगे सुरक्षा कर्मियों के टेंट तो बहे, लेकिन किसी को चोट नहीं आई थी.
इस तरह देखें तो पिछले साल के अनुभव से यह मालूम था कि
उस सूखे क्षेत्र में बाढ़ आ सकती है. यह आशंका थी, इसीलिए श्री
अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने उस नाले के मुहाने पर, गुफा के पास एक
दो फीट की दीवार बनाई थी. लेकिन 08 जुलाई को जैसे ही भारी मात्रा में पानी आया,वह दीवार पानी के प्रचंड वेग के सामने मामूली सिद्ध हुई और क्षण भर में पूरी
टेंट कॉलोनी उस पानी की चपेट में थी.
यह गौरतलब है कि 2019 के बाद पहली बार अमरनाथ यात्रा हो
रही थी. इंडियन एक्सप्रैस की रिपोर्ट के अनुसार 30 जून
को यात्रा शुरू होने के दिन से लेकर 08 जुलाई तक लगभग 1.13 लाख लोग यात्रा कर चुके
थे.अनुमान है कि 6 से 8 लाख लोग इस बार यात्रा में शामिल होंगे.
इंडियन एक्सप्रेस
ने एक अधिकारी के हवाले से लिखा है कि सारा ज़ोर यात्रा की बढ़ी हुई संख्या दर्शाने पर
था, इसलिए यह जानते हुए भी कि वह इलाका बाढ़ की आशंका वाला क्षेत्र है, इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
धार्मिक आस्था अपनी जगह है, पर उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर मानवीय गतिविधियां, उस संवेदनशील परिस्थितिकी वाले क्षेत्र के लिए घातक हो सकती हैं और इसका नुकसान
निश्चित ही मनुष्य को भी झेलना पड़ेगा. 2013 की केदारनाथ त्रासदी से लेकर 2022 के अमरनाथ
तक का सबक यही है कि प्राकृतिक जल निकास के मार्ग में अवरोध पैदा करना, किसी भी आपदा की विभीषिका को कई गुना बढ़ा सकता है. परंतु 2013 के बाद भी कोई
सबक नहीं लिया गया और अभी भी कोई सबक लिया जाएगा, इसमें संदेह
है.
-इन्द्रेश मैखुरी
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