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उत्तराखंड पुलिस कांस्टेबल भर्ती : बदलते मानक

 











लगभग दस-बारह वर्ष पहले की बात है. उत्तराखंड पुलिस में भर्ती हुए 424 युवाओं को नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. उनका अपराध क्या था ? उनके बारे में कहा गया कि उन्होंने पुलिस कांस्टेबल की जिलावार भर्ती में दो जिलों से आवेदन किया था.  कुल 850 अभ्यर्थी ऐसे थे,जिन्होंने दो जिलों से आवेदन भरा था. उनमें से 425 भर्ती प्रक्रिया के दौरान ही पकड़ लिए गए और शेष प्रशिक्षण के दौरान पकड़े जाने के बाद बर्खास्त कर दिये गए.


दो जिलों से आवेदन करने के कारण बर्खास्त किए गए ये प्रशिक्षु पुलिस कर्मी बहुत सालों तक सड़क से लेकर अदालत तक संघर्ष करते रहे, लेकिन बात नहीं बनी. 2014 में जा कर इनकी पुनर्बहाली का निर्णय हो सका.














यह उस दौर का किस्सा है, जब पुलिस कांस्टेबलों की भर्ती जिलावर होती थी. यह किस्सा इसलिए याद आया क्यूंकि आजकल भी उत्तराखंड में 1521 पदों के लिए पुलिस कांस्टेबलों की भर्ती चल रही है. लेकिन आज समाचार पत्रों में खबर है कि अब पुलिस कांस्टेबलों की जिलावार भर्ती नहीं होगी.













लगभग दशक भर पहले, जो जिले का मानक सैकड़ों युवाओं की बर्खास्तगी का सबब बना, वह अब मानक ही नहीं होगा !  


पहले जिलेवार भर्ती का मानक क्यूँ था और अब क्यूँ नहीं है, इसका कोई संतोषजनक जवाब नहीं है. समाचार पत्रों में छपी खबर के अनुसार, इस बार पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग करवा रहा है, इसलिए कांस्टेबल भर्ती की मेरिट  राज्य स्तर पर जारी होगी.


अव्वल तो उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग तमाम भर्ती परीक्षाओं में अपनी लचर कार्यप्रणाली के लिए सवालों के घेरे में है. अभी हाल में ही इस आयोग ने 48 विभागों में 600 सहायक लेखाकार पदों की भर्ती इसलिए रद्द कर दी क्यूंकि आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों में से 400 प्रश्न गलत थे. इससे पहले जुलाई 2020 में हुई वन दारोगा की परीक्षा में भी 1800 में से 332 प्रश्न हटाने पड़े थे.


खैर यह तो हुई उस आयोग की सक्षमता की बात, जिसके जिम्मे, पाँच वर्ष के लंबे अंतराल के बाद हो रही कांस्टेबल भर्ती सौंपी गयी है. लेकिन सवाल है कि क्या जिलेवार भर्ती का मानक सिर्फ इस आधार पर बदल देना चाहिए कि इस बार परीक्षा कराने वाली एजेंसी बदल गयी है ? क्या यह चयन के मानक बदलने का तर्कसंगत आधार है ?


जिलेवार भर्ती में सभी जिलों के अभर्थियों के पास भर्ती होने का अवसर अधिक मौजूद होता था. खास तौर पर पर्वतीय जिलों के युवा, जो दुर्गम-दुष्कर स्थितियों में भर्ती परीक्षा की राह देख रहे थे, उनके पास भी जिले की मेरिट में स्थान बना लेने का अवसर होता था. लेकिन प्रदेश के स्तर पर एक मेरिट बनाने से उनके लिए यह अवसर भी उनके दुर्गम भूगोल की तरह दुर्गम हो जाएगा.


 कांस्टेबल भर्ती के लिए शारीरिक दक्षता की परीक्षा तो जिलेवार हो रही है. 10 जिलों में शारीरिक दक्षता परीक्षा 15 मई से शुरू हो चुकी है. तीन जिलों- रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी में शारीरिक दक्षता परीक्षा, चार धाम यात्रा की वजह से 15 जून से आयोजित की जाएगी.  











सवाल यह भी है कि जब शारीरिक दक्षता परीक्षा जिलेवार हो सकती है तो फिर कांस्टेबल भर्ती का समग्र परिणाम, जिलावर घोषित करने में क्या समस्या है ? परीक्षा एजेंसी बदले जाने के तर्क के बावजूद, यह प्रश्न तो है कि एक ही भर्ती में शारीरिक दक्षता तो जिलेवार मापी जाएगी और मेरिट प्रदेश स्तर पर बनेगी,यह दोहरा मानदंड क्यूँ है ?


पाँच साल के लंबे अंतराल बाद हो रही पुलिस कांस्टेबल की भर्ती को जिलेवार ही किया जाना चाहिए ताकि प्रदेश के पुलिस बल में सभी जिलों का समुचित प्रतिनिधित्व हो सके.


-इन्द्रेश मैखुरी  

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