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पूजा सिंघल को निरंतर सत्ता संरक्षण प्राप्त रहा : माले विधायक

 









झारखंड में आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल के ठिकानों पर मारे गए ईडी के छापे में करोड़ों रुपये नगद मिले और लगभग 150 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गयी. झारखंड की विधानसभा में जनमुद्दों की सशक्त आवाज़, भाकपा (माले) के विधायक कॉमरेड विनोद कुमार सिंह ने ईडी के छापों के बाद अपने फेसबुक पेज पर लिखी पोस्ट में लिखा कि वे लगभग एक दशक से पूजा सिंघल के भ्रष्ट आचरण का मसला लगातार झारखंड की विधानसभा में उठाते रहे हैं. पूजा सिंघल, किस तरह हर सत्ता का संरक्षण लगातार पाती रही हैं, इसका ब्यौरा भी भाकपा(माले) विधायक ने अपनी पोस्ट में दिया है.














भाकपा(माले) के विधायक विनोद कुमार सिंह लिखते हैं :

शायद 2011 की बात है। मैं विधानसभा समिति के स्थल निरीक्षण में चतरा गया हुआ था। हमारे साथ समिति में अरूप चटर्जी ,और जनार्दन पासवान भी थे। जिला में समीक्षा के दौरान मैंने देखा कि मनरेगा की योजना में दो NGO को तत्कालीन उपायुक्त पूजा सिंघल के द्वारा करोड़ो रूपये अग्रिम भुगतान किए गए है। जबकि कार्य रिपोर्ट में कार्य की तस्वीर नही दिख रही थी। कुछ आधी अधूरी थी। मैंने स्थानीय विधायक जनार्दन जी से बात की, उन्होंने भी शंका जताई। फिर हम तीनों ने कुछ गांव जाकर निरीक्षण का फैसला लिया। कई योजना धरातल में थी ही नही,कुछ कुआँ आधे अधूरे मिले भी तो उनका भुगतान मजदूरों को नही मिला। एक किसान ने अपना सर दिखाया कि मजदूरी भुगतान नही होने के कारण मजदूरों ने उनका सर फोड़ दिया। जबकि उन सभी योजना के नाम पर निकासी हो चुकी थी। आकर हम सभी ने एक संक्षिप्त रिपोर्ट विधान सभा मे दिया , ग्रामीण विकास विभाग को सौंपा, और एक उच्चस्तरीय जांच की मांग की। जाहिर है रिपोर्ट ठंडे बस्ते में रही।








लेकिन फिर मैंने अपने जांच के तथ्यों पर विधानसभा में सवाल उठाया, और अंततः तत्कालीन आयुक्त हजारीबाग नितिन मदन कुलकर्णी को हमारे सवाल पर जांच के लिए सौपा गया। उन्होंने अपनी जांच में पूर्ण रूप से पूजा सिंघल को जिम्मेवार माना। इसी मध्य खुट्टी से एक मनरेगा घोटाला की रिपोर्ट आई, उस समय भी वहाँ की उपायुक्त पूजा सिंघल थी, हमारे प्रश्न पर राम विनोद सिन्हा पर तो FIR हुआ लेकिन वरीय अधिकारी पर करवाई नही हुई। तबतक पलामू में भी क्रय में गड़बड़ी की शिकायत आई। फिर मैंने सरकार से प्रश्न पूछा कि आयुक्त हजारीबाग के रिपोर्ट पर करवाई क्यो नही तो सरकार ने कहा कार्मिक विभाग समीक्षा कर रही है। मुझे 2010 से 2014 के अंतिम दो विधानसभा सत्र चित्रपट की तरह याद है जब भी उक्त घोटाला से सम्बंधित हमारा प्रश्न सूची में रहता था तो उसका नम्बर आने से पहले किसी और सवाल पर हंगामा हो कर सदन स्थगित हो जाता।


पिछले विधानसभा के रघुबर दास जी के कार्यकाल में अरूप चटर्जी ने भी मामले को उठाने की कोशिश की। लेकिन सरकार टालती रही। बल्कि नितीन मदन कुलकर्णी के जांच रिपोर्ट के आधार पर करवाई करने के बजाय एक और जांच कराकर उस पर लीपापोती की गई। क्लीन चिट दी गयी।


और अंततः आज के छापे के बाद स्प्ष्ट है कि सरकारों ने हमेशा भ्रस्ट अधिकारियों के बचाव का काम ही किया है।अपनी जरूरत के हिसाब से करवाई की है। वर्तमान सरकार अब भी सचेत हो और लंबित मामलों पर करवाई करे।


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