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धारचुला : वहां फौज की भर्ती नहीं है भुला !

 








बीते रोज पिथौरागढ़ जिले के धारचुला में एकाएक हजारों युवाओं की भीड़ उमड़ पड़ी. युवाओं की संख्या इतनी अधिक थी कि धारचुला में होटलों में रहने की जगहों कम पड़ गयी, होटलों में खाने के इंतजाम कम पड़ गए.


 हजारों युवा जो धारचुला पहुंचे, ये सिर्फ उत्तराखंड से नहीं थे. इस भीड़ में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार और उड़ीसा तक के युवा थे. पर सवाल है कि क्यूँ उमड़ी विभिन्न प्रदेशों के हजारों युवाओं की भीड़ धारचुला जैसे सीमांत नगर में ? दरअसल धारचुला में भारतीय सेना द्वारा पोर्टरों की भर्ती 25 मई से 29 मई तक होनी है. यह नितांत अस्थायी भर्ती है, जो केवल 179 दिनों के लिए है.










भारतीय सेना में नियमित भर्ती दो सालों से बंद है. सेना में लगभग दो लाख बीस हजार पद रिक्त हैं. कोरोना महामारी के चरम के समय बंद की गयी, बाकी सब चीजें सुचारु हो गयी हैं, लेकिन सेना की भर्ती ही एकमात्र चीज है, जिस पर तब से लगी रोक अब तक बदस्तूर जारी है. भारतीय सेना में लगभग दो लाख बीस हज़ार पद रिक्त हैं. 

 

इसके बीच में भारतीय सेना ने पोर्टरों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया, जिसमें यह उल्लेख है कि भारत, नेपाल और भूटान के नागरिक इसमें शामिल हो सकते हैं.


एक स्थानीय न्यूज़ पोर्टल के अनुसार सेना की दो सालों की रुकी भर्ती के बीच भारतीय सेना के इस विज्ञापन के चलते युवाओं को यह गलतफहमी हुई कि धारचुला में सेना की नियमित भर्ती जैसी कोई बात होने वाली है.











विज्ञापन को लेकर हुई गलतफहमी अपनी जगह है, लेकिन देश में रोजगार संकट की तरफ भी यह पूरा घटनाक्रम इंगित करता है. मात्र 179 दिनों की अस्थायी भर्ती में हजारों युवा, देश के अलग-अलग हिस्सों से देश के अंतिम छोर पर बसे धारचुला पहुँच जा रहे हैं, तो सोचिए कि रोजगार का कितना गंभीर संकट है !  











कुल 600 पदों के लिए छह हजार से अधिक युवा धारचुला पहुँचे तो इस संकट की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है. सिर्फ विज्ञापन से उपजी गलतफहमी से लोग धारचुला नहीं पहुंचे थे, रोजगार की जद्दोजहद उन्हें वहां खींच लायी थी. इसी जद्दोजहद का नतीजे के तौर पर वे धारचुला में पोर्टर की भर्ती में शामिल हो रहे थे और जोशीमठ की पोर्टर भर्ती का ऑनलाइन फार्म भी भर रहे थे !










पूरा धारचुला बाजार इन युवाओं से पट गया. युवाओं की भीड़ को देखते हुए व्यापार मंडल ने स्थानीय प्रशासन को इंतजाम करने को कहा तो व्यापार मंडल के दबाव में धारचुला का ब्लॉक सभागार इन युवाओं के रात रहने के लिए खोला गया, लेकिन बमुश्किल सौ युवा ही उसमें आ पाये. अधिकांश युवाओं ने सड़क किनारे, दुकानों के शटर के बाहर ही ठंड में रात गुजारी.









धारचुला नगर में जब युवाओं का यह रेला उमड़ा हुआ था, उसी वक्त वहां से लगभग 65 किलोमीटर दूर धारचुला तहसील के गुंजी गाँव में उत्तराखंड के  मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी साइकिल रैली की शुरुआत के लिए मौजूद थे. 




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यह आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत आयोजित कार्यक्रम था. ज़ाहिर सी बात है कि सारा प्रशासनिक अमला मुख्यमंत्री की आवभगत के लिए गुंजी में मौजूद रहा होगा.


यह विडंबना है कि 75 साल की आज़ादी के बाद भी युवाओं के लिए स्थायी एवं नियमित रोजगार का मसला किसी पहाड़ की चोटी फतह करने से कम नहीं है. युवाओं के रोजगार का संकट हल करिए, तभी सही मायनों में आज़ादी का अमृत महोत्सव होगा, मुख्यमंत्री जी, वरना युवा तो बेरोजगार के जहर का घूंट पीने को अभिशप्त है !  


-इन्द्रेश मैखुरी

  

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