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एफ़आईआर यूपी में, खलबली उत्तराखंड में !

 










उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा के थाना दादरी में 20 मई 2022 को एक एफ़आईआर दर्ज हुई. एफ़आईआर करवाने वाले का नाम शीतला प्रसाद है. शीतला प्रसाद उस इलाके के लेखपाल यानि राजस्व विभाग के कार्मिक हैं.












 एफ़आईआर मूलतः जमीन के माफिया बताए जा रहे यशपाल तोमर के खिलाफ है. यशपाल तोमर वही शख्स है, जिसे कुछ वक्त पहले भू माफिया के तौर पर उत्तराखंड एसटीएफ़ ने भी गिरफ्तार किया था.


एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है कि यशपाल तोमर ने चिटहैरा गांव में  अनुसूचित जाति की पट्टे की ज़मीनें का एग्रीमेंट अपने से करवा लिया, जिन्होंने ज़मीनें देने से इंकार किया, उनके विरुद्ध दिल्ली, पंजाब, राजस्थान और उत्तराखंड में फर्जी मुकदमें दर्ज करवाए. यशपाल तोमर सीधे-सीधे ज़मीनें अपने नाम नहीं कर सकता था, इसलिए उसने अपने यहाँ नौकरी करने वाले अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के नाम सैकड़ों बीघा जमीन करवाई. एफ़आईआर के अनुसार जिन अनुसूचित जाति के लोगों के नाम जमीन करवाई गयी,वे बेहद गरीब हैं और पढ़ना-लिखना भी नहीं जानते हैं.

  

एफ़आईआर में चार सौ बीसी यानि धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज़ बनाने जैसे संगीन अपराधों का जिक्र है और भारतीय दंड संहिता की 420,467,468,471 और 506 के तहत दर्ज की गयी है.


एफ़आईआर के अनुसार यशपाल तोमर के अलावा आठ और लोग फर्जी तरीके से ज़मीनें खरीदने, उनका बैनामा अपने नाम करने और जमीन देने में आनाकानी करने वालों को डराने-धमकाने में शामिल थे.











 यशपाल तोमर के अलावा इन आठ में से एक महिला भी शामिल हैं. आश्चर्यजनक रूप से यशपाल तोमर के अलावा एफ़आईआर में नामजद आठ आरोपियों में से तीन का संबंध उत्तराखंड के आईएएस और आईपीएस अफसरों से है.


इनमें से एक दक्षिण भारतीय आईएएस हैं और एक उत्तर भारतीय. एफ़आईआर से ही ज्ञात हुआ कि आईपीएस अफसर बिहार के निवासी हैं और एफ़आईआर में दर्ज महिला, उनकी माँ हैं.











सीधा-सरल तर्क यह हो सकता है कि आईएएस-आईपीएस के रिश्तेदार धोखाधड़ी से जमीन खरीदने में संलिप्त हैं, इसमें इन अफसरों का क्या दोष ? लेकिन दक्षिण भारत के चेन्नई निवासी एम.भास्करन को उत्तर प्रदेश के तहसील दादरी के चिटहैरा गांव के नाम और लोकेशन का भी ठीक से अंदाज होगा, यह बात आसानी से हजम नहीं होती. यही बात कंकड़ बाग पटना की निवासी श्रीमति सरस्वती देवी पत्नी श्री रामस्वरूप पर भी लागू होती है. जमीन खरीदने के खेल का अलीगढ़ निवासी के.एम संत के पास हो सकता है कि स्व-अनुभव भी हो क्यूंकि वे उत्तर प्रदेश कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस हैं.  जिन आईएएस और आईपीएस अफसरों के परिजन और रिश्तेदार जमीन घोटाले में माफिया के साथ नामजद हैं, वे अतीत में हरिद्वार के डीएम-एसएसपी रहे हैं और एफ़आईआर में उल्लेख है कि यशपाल तोमर ने ज़मीनें हड़पने के लिए लोगों को डराने-धमकाने के लिए जिन जगहों पर एफ़आईआर करवाई, उनमें हरिद्वार का कनखल भी शामिल है.


बहरहाल, “सुंदर”, “संत” का यह स्वरूप उत्तराखंड के लिए बेहद अफसोसजनक है. उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है, जहां आम तौर पर जघन्य अपराध अपेक्षाकृत कम होते हैं. लेकिन उत्तराखंड की नौकरशाही के शिखर पर बैठे हुए अफसरों के परिजन और रिश्तेदार ऐसे जघन्य अपराधों में संलिप्त हैं, यह उत्तराखंड के लिए शर्मिंदगी और चिंता का सबब है. जिनके ससुर का नाम एफ़आईआर में है, वे तो वर्तमान मुख्यमंत्री को भी अत्यंत “सुंदर” प्रतीत होते हैं !


यूं यह पहला अवसर भी नहीं है, जब उत्तराखंड की नौकरशाही पर इस तरह के दाग लगे हैं. उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक रहे बीएस सिद्धू पर रिजर्व फॉरेस्ट की जमीन कब्जा करने का आरोप एनजीटी में सिद्ध हुआ और एनजीटी ने सिद्धू पर चालीस लाख रुपया जुर्माना भी लगाया. उत्तराखंड के एक वरिष्ठ आईएएस अफसर जो सत्ताधीशों को अत्यंत प्रिय थे और राज्य के मुख्य सचिव भी बने,उन  पर आरोप लगा कि जिस वक्त शराब माफिया पौंटी चड्ढा की फ़ाइरिंग में हत्या हुई,वे मौके पर मौजूद थे. गुजरात कैडर के आईएएस अफसर मोहम्मद शाहिद, तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के निजी सचिव रहते हुए 2015 में एक स्टिंग में  शराब माफियायाओं को व्यापार का गुर सिखाते देखे गए.



राज्य के सर्वोच्च नौकरशाहों का इस तरह अपराधों में संलिप्त होना या उनके परिजनों का माफियाओं से ऐसा निकट का संबंध होना, ईमानदार,पारदर्शी शासन के लिए बड़ा प्रश्न चिन्ह है. जिनके परिजन और रिश्तेदार, माफियाओं के साझीदार होंगे, वे अपराधों पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए क्या कदम उठा पाएंगे ? भ्रष्ट राजनेताओं के सामने समर्पण करने को उद्यत नौकरशाहों को देख कर हमेशा आश्चर्य होता रहा है. लेकिन इस प्रकरण से समझ में आता है कि भ्रष्ट कारनामों और अपराधियों के संरक्षण में सहभागिता ही अफसरों को नेताओं के सामने भीगी बिल्ली बना देती होगी ! पर सवाल यह उठता है कि जब माफियाओं और अपराधियों से निकटता रखनी है, कई सौ करोड़ रुपए और बेनामी ज़मीनों का चस्का है तो देश की सबसे बड़ी प्रतियोगी परीक्षा पास करने के लिए इतनी मशक्कत क्यूँ करनी है, सीधे ही यशपाल तोमर जैसों के साझीदार क्यूं नहीं बन जाते ?


-इन्द्रेश मैखुरी  

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