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पैली अपणा लगौलु रे !

 







यूं अखबारों में खबर है कि उत्तराखंड में बेरोजगारी की दर कम हो रही है. लेकिन उसके साथ-साथ सहकारिता विभाग के तहत जिला सहकारी बैंकों में नियुक्ति घोटाले और इस प्रकरण पर छापेमारी की भी बड़ी-बड़ी खबरें हैं. बेरोजगारी कम हो तो रोजगार के लिए मार-मार क्यूँ होगी ?


अखबार बता रहे हैं कि सहकारी बैंको में चेयरमैन और निदेशक जैसे भारी-भरकम पदों पर बैठे लोगों के बच्चों और नाते-रिशतेदारों की नियुक्ति चपरासी जैसे पदों पर सिफ़ारिश से हुई.







साधो, यह तो चिंता का प्रश्न है, इतने बड़े-बड़े अधिकारी, पदाधिकारी और नेता गणों को अपने बच्चों और नाते-रिश्तेदारों को चपरासी से जैसे मामूली पदों पर “चिपकाने” को घोटाला कहा जा रहा है. अरे भाई, ये इतने बड़े-बड़े लोग इन सहकारी बैंकों को ही अपनी संततियों और नातेदारों के नाम कर देते तो क्या कर लेते आप ! लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ! बच्चे को बना भी क्या रहे हैं- चपरासी ! उसमें भी इतनी हाय-तौबा !


महकमे का नाम है- सहकारिता, काम है- सहकार यानि जनता- सह और नेता,अफसर- कार अर्थात कारनामा करें ! तो यही तो सहकार चल रहा है, ये सहकारिता में !


लेकिन इतने कारनामों के बावजूद भी यदि नेता, अफसरों को अपने बच्चों और रिश्तेदारों को चतुर्थ श्रेणी के पदों पर लगवाना पड़ रहा है तो सोचिए कि रोजगार का कितना बड़ा संकट है. बड़े-बड़े लोगों के बच्चे चपड़ासी बन रहे हैं तो छोटे-छोटे लोगों के बच्चे कहाँ जाएँगे !


सहकारिता पर ही इतना हल्ला क्यूँ है ? इससे पहले भी तो देहरादून के मेयर ने अपनी बेटी को पीआरडी के जरिये अकाउंटेंट बनवा दिया था.  तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष और वर्तमान सरकार में मंत्री का बेटा भी उपनल के जरिये ही जेई बन सका. बाद में  हल्ला-गुल्ला मचने पर हटाना पड़ा, फिर चुनाव से पहले विधानसभा में सेटल किए जाने की चर्चा थी, पता नहीं “बेचारा” “सेटल” हो पाया कि नहीं !


भई, बेरोजगारी बहुत बढ़ गयी है, बेरोजगारी दूर होना बहुत जरूरी है, सरकार-सत्ता का जो हिस्सा हैं, उनकी संततियों की बेरोजगारी तो प्राथमिकता के आधार पर दूर होनी चाहिए ! अगर न हो सकी तो नेता जी भाषण देंगे कि मुझे वोट दो, मैं बेरोजगारी दूर करूंगा और लोग मखौल उड़ाएंगे कि अपने बच्चे को चपड़ासी तो बना न सका, बड़ा आया हमारी बेरोजगारी दूर करने वाला, हूंह !


तो ये नेता-अफसर लोग अपने बच्चों / रिश्तेदारों को नौकरी लगा कर बेरोजगारी दूर करने की स्वयं की योग्यता को सिद्ध कर रहे हैं ! नादान लोग हैं कि इस क्षमता प्रदर्शन को घोटाला बताते हैं !


प्रख्यात लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी ने तो काफी पहले ही इस “क्षमता प्रदर्शन ” पर लिख दिया था :


 “पढ़ी लिखी बेकार बैठ्यान,

नेता जी हमरा छोरों को भी ख्याल रख्यान

  पैली अपणा लगौलु रे !”

(पढ़ लिख कर बेकार बैठे हैं,

नेता जी हमारे बच्चों का भी ख्याल रखना

पहले अपने लगाऊँगा रे !)


-इन्द्रेश मैखुरी

 

 

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